चित्रकूट धाम, जहां पधारे थे प्रभु श्रीराम
Summary : चित्रकूट, ऐतिहासिक धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। यह झांसी मानिकपुर रेलवे लाइन पर अरण्य तीर्थ है, जो अपनी सांस्कृतिक महत्व के साथ ही आध्यात्मिक महिमा और नैसर्गिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है।
ज्योतिप्रकाश खरे
चित्रकूट, ऐतिहासिक धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। यह झांसी मानिकपुर रेलवे लाइन पर अरण्य तीर्थ है, जो अपनी सांस्कृतिक महत्व के साथ ही आध्यात्मिक महिमा और नैसर्गिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है। सतयुग के प्रणेता, 14 वर्ष के वनवासी जगत को आश्रय प्रदान करने वाले कर्तव्यनिष्ठ भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण एवं माता सीता जी के साथ यहीं चित्रकूट में निवास कर अपने पावन पुनीत कमल स्वरूपी चरणों से इस भूमि को पवित्रता एवं उज्जवलता प्रदान की थी। ऐतिहासिक दृष्टि से भी चित्रकूट की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। प्राप्त शिलालेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सन् 525 ई. तक गुप्त साम्राज्य का वर्चस्व था। सम्राट हर्ष (वि.सं. 952-982) ने अपने शासन काल में यहां किसी ब्राह्मण जातीय सामन्त को नियुक्त किया था। इसके उपरांत चित्रकूट चन्देल राजाओं के अधिकार क्षेत्र में रहा। तेरहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में बघेलों का अधिकार हुआ, जो अंतिम बघेल राजा रामचंद्र ने 1559 ई. में अकबर का दासत्व स्वीकार कर लिया और तब से औरंगजेब के समय तक चित्रकूट मुगलों के आधीन रहा। सन् 1683 ई. में औरंगजेब ने चित्रकूट की यात्रा की थी, तब उसने बाला जी मंदिर के बाबा बालकदास के आध्यात्मिक प्रभाव में आकर 8 गांव और 330 बीघा जमीन मंदिर के नाम मांफी प्रदान की थी। आज भी बालाजी मंदिर में इस आशय का दान पात्र उपलब्ध है। इस समय तक चित्रकूट के आस-पास अनेक गांव बस गये थे। चित्रकूट नाम का गाँव भी बस चुका था। उस समय बालाजी मंदिर भी निश्चित बन चुका होगा।
औरंगजेब के कुछ दशक पूर्व संत तुलसीदास ने इस क्षेत्र में रहकर साधना की थी। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने चित्रकूट का पर्याप्त समसामयिक परिचय भी दिया है। तुलसीदास के अनुसार चित्रकूट का आध्यात्मिक महत्व सर्वोपरि है। चित्रकूट में सावन झूला, नवरात्रि, दीपावली, रामनवमी तथा विवाह पंचमी सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण पर तथा प्रत्येक माघ की अमावस्या पर मेले का आयोजन किया जाता है। इन पर्वों पर सैकड़ों श्रद्धालु चित्रकूट की गरिमा बढ़ाते हैं।
रामघाटः चित्रकूट में मंदाकिनी गंगा पर बने घाटों में सबसे प्रमुख घाट रामघाट है। कहते हैं कि इस घाट पर स्नान करने से पुण्य मिलता है। रामघाट पर स्थित भरत मंदिर, पर्णकुटी मंदिर, तुलसीदास मंदिर, यज्ञवेदी मंदिर तथा जगदीश मंदिर दर्शनीय हैं। मंदाकिनी के ठीक सामने वाले तट पर स्थित विजावर मंदिर कला की दृष्टि से बहुत आकर्षक मंदिर है। रामघाट से कुछ दूरी पर ही स्थित बालाजी मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक सद्भाव की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है।
कामदगिरिः धार्मिक भावना से चित्रकूट आने वाला हर श्रद्धालु मंदाकिनी स्नान और कामदगिरि की परिक्रमा अवश्य करता है। जनश्रुति है कि वनवास के समय भगवान श्री राम कामदगिरि का आश्रय लेकर 12 वर्ष तक चित्रकूट में रहे थे। कामदगिरि की परिक्रमा 5 किलोमीटर की है।
हनुमान धाराः यह रामघाट से तीन किलोमीटर दूर पूर्व पर्वत श्रेणी के शिखर पर स्थित आकर्षक दर्शनीय स्थल है। यहां एक निर्मल निर्झर धारा शिला पर उत्कीर्ण हनुमान जी की मूर्ति पर गिरती है। हनुमान धारा के समीप ही पंचमुखी हनुमान, सीता रसोई भी दर्शनीय स्थल है।
सती अनुसुइया आश्रमः यह स्थल रामघाट से लगभग 15 किलोमीटर चित्रकूट-सतना राजमार्ग से थोड़ा हटकर घने जंगलों पहाड़ों के बीच स्थित है। यह चित्रकूट के सर्वप्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है। यहां का प्राकृतिक दृश्य बड़ा ही मनोहारी है। यहां पर परमहंस आश्रम, पुराना अनुसुइया मंदिर, वनप्रासी राम मंदिर, योगिनी शिला, हनुमान मंदिर आदि दर्शनीय हैं। अनुसुइया के तपोबल से मंदाकिनी गंगा का उद्गम यहां सहस्त्र धाराओं में देखा जा सकता है।
गुप्त गोदावरीः यह स्थल सतना राजमार्ग पर पश्चिम में आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुप्त गोदावरी प्रकृति की एक विलक्षण कारीगरी का साक्षात प्रमाण है। यहां पीले पहाड़ के भीतर जल स्रोत प्रवाहित है, जो कि स्वयं में एक आश्चर्य है। गुप्त गोदावरी में दो गुफाएं हैं। बड़ी गुफा का मार्ग संकरा है, किंतु अंदर पर्याप्त स्थान है। यहां पत्थरों का प्रकृति कटाव बहुत ही आकर्षक है। गुंबद की भांति तना हुआ पहाड़ बिना किसी आधार के थमा है। मध्य में एक बड़ी प्रस्तर शिला लटक रही है, जिसे लोग खटखटा चोर कहते हैं। गुप्त गोदावरी में दूसरी गुफा संकरी किंतु काफी लंबी है। इसमें दो-तीन फुट गहरे पानी में घुसकर जाना पड़ता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के निवास हेतु देवताओं द्वारा निर्मित गुफाएं हैं, जहां भगवान की सेवा में गोदावरी नदी की गुप्तधारा प्रवाहित हो रही है।
स्फटिक शिलाः यह रामकथा से जुड़े चित्रकूट के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से भी मनोहारी है। स्फटिक शिला चित्रकूट में श्रीराम जी का एक विशेष लीलास्थल माना जाता है। स्फटिक शिला में एक श्वेत प्रस्तर शिला पर अंकित चरण चिह्नों पर श्रद्धालु जन अपनी श्रद्धा निवेदित करते हैं।
जानकी कुण्डः यह कुण्ड मंदाकिनी तट पर स्थित है। कहा जाता है कि वनवास काल में यहां सीता जी स्नान करती थीं। सीता जी के चरण चिह्न यहां पत्थरों पर अंकित हैं।
प्रमोद वनः यह मंदाकिनी तट पर स्थित है। यहां लक्ष्मी-नारायण मंदिर के अलावा कांच का मंदिर दर्शनीय है।
राम शैय्याः कामदगिरि से पश्चिम में लगभग तीन किलोमीटर दूर बिहारा गांव के पास एक पर्वत की गोद में राम शैय्या नामक स्थान है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, सीता मां और अनुज लक्ष्मण ने यहां कभी शयन किया था।
भरत कूपः भरत कूप के संबंध में जनश्रुति है कि श्रीराम जी के अभिषेक के लिए भरत जी द्वारा लाया गया समस्त तीर्थों का जल इसी पवित्र कूप में डाल दिया गया था इसीलिए भरत कूप का स्नान समस्त तीर्थों के स्नान के समान माना जाता है।
अन्य प्रमुख खबरें
आठ साल में योगी ने बदली यूपी की तस्वीर
संपादकीय
05:48:40
संभल से सिकंदरा तक 'गाजी मेले' पर गाज
संपादकीय
10:00:38
ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ बनाम मोदी का ‘इंडिया फर्स्ट’
संपादकीय
07:56:22
चित्रकूट धाम, जहां पधारे थे प्रभु श्रीराम
संपादकीय
10:18:28
महाकुंभ से सनातनी विरासत को ‘संजीवनी’
संपादकीय
10:22:02
औरंगजेब की मजार पर सुलग उठी संतरा नगरी
संपादकीय
07:49:55