हिन्दू साम्राज्य दिवसोत्सव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मनाया जाने वाला एक विशिष्ट उत्सव है जो हिंदू समाज को एक अत्यंत गौरवशाली दिवस का स्मरण कराता है। यह उत्सव ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इस तिथि को ही लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व हिन्दू राष्ट्र के पुनरुत्थान का एक महत्वपूर्ण प्रयास संपन्न हुआ था। ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन ही महाराज शिवाजी के राज्याभिषेक के साथ ही भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के समय भारत मुगल आक्रांताओं के क्रूर अत्याचारों से त्रस्त था और देश में निराशा का घोर अंधकार छाया हुआ था ।छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई के सानिध्य में स्वराज का जो संकल्प लिया था उसके लिए वह बिना विचलित हुए अपना कर्म करते रहे और अंततः लक्ष्य तक पहुंचकर हिन्दू पद पादशाही की घोषणा की। जिस प्रकार त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने लंका विजय के पूर्व समाज के हर वर्ग को एकजुट किया और अपनी सेना खड़ी की ठीक उसी प्रकार महाराज शिवाजी ने भी अपना लक्ष्य साधा।
आज से 300 वर्ष पूर्व जब शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था उस समय हिन्दू सामज के लिए विपरीतता की पराकाष्ठा थी और उस समय के विद्वान शूरवीरों के मन में यह विचार भी नहीं आता था कि इस परिस्थिति को बदला जा सकता है। महाराज शिवाजी के राज्याभिषेक के पूर्व तक मुगल शासकों द्वारा हिन्दू समाज पर घनघोर अत्याचार हो रहे थे। मंदिरों और विद्या के केंद्रो का विध्वंस हो रहा था। तलवार के बल पर आम जन का धर्मांतरण किया जा रहा था। हिन्दुओं से जजिया कर वसूला जा रहा था। हिन्दू बहिन -बेटियों की अस्मिता नष्ट की जा रही थी । ऐसी कठिन परिस्थितियों में शिवाजी महाराज ने हिंदू पद पादशाही की स्थापना की और हिंदू समाज और भारत का खोया हुआ आत्मविश्वास पुनः स्थापित करने में सफल हुए। हिंदू साम्राज्य दिवस उस सफलता की महान गाथा को याद करने का पवित्र दिन है।
छत्रपति शिवाती महाराज केवल मराठा सरदार ही नहीं बने अपितु संपूर्ण भारत के जन- जन के नायक बन गये। वह ऐसे महान शासक थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। शिवाजी के अपने जीवन में उनकी सबसे बड़ी नायक उनकी माता जीजाबाई थीं। माता जीजाबाई ने उन्हें बचपन से ही धर्म और राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया और छत्रपति बनने के योग्य बनाया। शिवाजी महाराज ने अपनी विजय यात्रा में महात्मा विदुर, श्रीकृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य, हनुमानजी और भगवान राम सभी के जीवन की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए मुगल शासकों को परास्त किया और हिन्दू पद पादशाही की स्थापना की घोषणा की। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगल आक्रांताओ को परास्त करने के लिए, “जो आपके प्रति जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो” की सफल नीति अपनाई। शिवाजी ने जिस प्रकार धोखेबाज अफजल खां का वध किया वह इसका अप्रतिम उदाहरण है।
छत्रपति शिवाजी मुगल शासन में व्याप्त अथाह भ्रष्टाचार से पूरी तरह परिचित थे अतः उन्होंने ने एक ऐसा शासन तंत्र विकसित किया जो पूरी तरह से भ्रष्टाचार से मुक्त और उस समय के लिए एक आदर्श शासन व्यवस्था का उदाहरण बना।अपने भ्रष्टाचार मुक्त आदर्श शासन के कारण ही शिवाजी अपने राज्य विस्तार में सफल हुए। शिवाजी महाराज मनोवैज्ञानिक कौशल में अत्यंत निपुण थे जिसके कारण अनेक युद्धों में वे सीमित संसाधनों में भी विजय प्राप्त कर सके। छापामार युद्ध शैली में उनकी सेना अत्यंत निपुण थी जिसके कारण औरंगजेब को अनेकानेक युद्धों में पराजय का मुंह देखना पड़ा था ।
छत्रपति शिवाजी महाराज ब्राह्मणों, गायों और मंदिरों की रक्षा को अपनी राज्यनीति का लक्ष्य घोषित किया था। छत्रपति शिवाजी सदा स्वराज की स्थापना के लिए लड़े । उनका अपने सैनिकों को स्पष्ट आदेश था कि भारत के लिए युद्ध करें किसी राजा या राज्य विशेष के लिए नहीं। शिवाजी की रणनीति अद्वितीय थी और उनके कुशल गुप्तचरों का जाल पूरे भारत में फैला हुआ था। शिवाजी के शासनकाल में व युद्धों के दौरान महिलाओं का विशिष्ट सम्मान रखा जाता था। युद्ध के दौरान सैनिकों को विशिष्ट दिशा निर्देश रहते थे कि युद्ध में परास्त सेना की महिलओं को सम्मान की दृष्टि से ही देखा जायेगा व उनकी सुरक्षा की जायेगी। शिवाजी महिलाओ से छेड़छाड़ या दुराचार करने वाले आरोपी को कड़ा दंड देते थे जिस कारण समाज में उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय नौसेना के जनक माने जाते हैं । शिवाजी की नौसेना अत्यंत शक्तिशाली और आयुधों से युक्त थी। शिवाजी ने अंडमान द्वीप समूह निगरानी चौकियों का निर्माण कराया जहां से शत्रुओं पर दृष्टि रखी जाती थी। मराठा नौसेना ने कई बार अंग्रेजी, डच, पुर्तगाली नौसेना पर सफल हमले किये थे और विजयी रही। शिवजी ने अपनी दूरदर्शिता और रणनीति से भारतीय नौसेना के इतिहास में ऐसी छाप छोड़ी कि उन्हें आधुनिक भारतीय नौसेना का जनक कहा जाने लगा। शिवाजी के शासन में धार्मिक सहिष्णुता थी और उनके शासन में कहीं भी दूसरे धर्मों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था।
शिवाजी के शासनकाल में हिन्दुओं की घर वापसी का व्यापक अभियान भी चलाया गया क्योंकि उस समय मुगल शासकों के अत्याचारों के भय के कारण भारी संख्या में हिन्दू समाज ने इस्लाम को अपना लिया था। यह हिन्दू समाज के भविष्य व अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बना हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन का हर पक्ष हमारा मार्गदर्शन करता है ।शिवाजी महाराज का चरित्र, नीति कुशलता और उद्देश्य की पवित्रता की आज हमारे समाज को आवश्यकता है।शिवाजी के राजनैतिक विचार आज भी प्रासंगिक हैं। शिवाजी इसलिए हमारे आदर्श हैं क्योकि उन्होंने शून्य से सृष्टि का निर्माण किया। शिवाजी का नेतृत्व विजीगीषु और प्रतिकूलता को पराजित करने वाला था। शिवाजी में परिस्थितियों को समझने का चातुर्य भी था और दूरदृष्टि भी। छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अतिभव्य और आदर्श है। नई पीढ़ी को शिवाजी के जीवन का अध्ययन करना चाहिए ओर उनके गुणों अपनाने का प्रयास भी करना चाहिए।
छत्रपति शिवाजी की अमर विजयी गाथा को जन -जन तक पहुंचाने के लिए ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू साम्राज्य दिवसोत्सव मनाता है। वर्तमान समय में हिन्दू साम्राज्य दिवसोत्सव मनाना इसलिए भी प्रासंगिक है क्योकि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय की परिस्थिति और वर्तमान परिस्थिति में काफी समानता है। उस समय भी हिन्दू समाज पर चारों ओर संकट के बादल थे और वह अपना आत्मविश्वास खो बैठा था। छत्रपति शिवाजी महाराज के अदम्य साहसिक प्रयासों से वह खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आ पाया था।
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