अपर जिला न्यायाधीष,लखनऊ की अदालत ने लगभग 25 वर्ष पुराने हत्या के एक मामले में दो अभियुक्तों राम निरंजन उर्फ राजा कोलंदर तथा उसके साले बच्छराज को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तो प्रयागराज में एक बार फिर नरभक्षी राजा कोलंदर की चर्चा हो रही है। राजा कोलंदर के जघन्य कृत्यों को जानने के लिये पहले अपर जिला न्यायाधीष, लखनऊ के न्यायालय में चल रहे वाद पर संक्षिप्त नजर डालते है। 24 जनवरी 2000 को हरचंदपुर, रायबरेली निवासी 22 वर्षीय मनोज सिंह ड्राइवर रवि श्रीवास्तव के साथ अपनी गाड़ी टाटा सूमो की सर्विस कराने लखनऊ आया। सर्विस कराकर लौटते समय उसे प्रयागराज की बुकिंग मिलती है जिसमें एक महिला और कुछ पुरुष होते हैं। प्रयागराज जाते समय मनोज रास्ते में अपने घर से कोट तथा अन्य कपड़े लेता है। प्रयागराज बुकिंग के कई दिन बाद जब मनोज घर नहीं लौटा तो उसके पिता द्वारा लखनऊ में गुमशुदी की रिर्पोट दर्ज करायी गई। पुलिस को काफी प्रयास के बाद भी उन दोनों के संबंध में कोई सुराग नहीं मिला। कुछ दिन बाद मनोज और ड्राइवर का क्षत-विक्षत शव शंकरगढ़ के जंगल में पाया गया लेकिन सूमो गाड़ी का पता नहीं चला।
प्रयागराज में एक दैनिक समाचार पत्र से जुड़े पत्रकार धीरेन्द्र सिंह का शव 14 दिसम्बर 2000 को रीवा के समीप मिला। शव को कई टुकड़ों में काटा गया था। मामला स्थानीय समाचार पत्र से जुड़ा होने के कारण पुलिस सक्रिय हुई। इस मामले में राजा कोलंदर का नाम आया तो पुलिस उसके फार्म हाउस पहुंची। राजा कोलंदर ने धीरेन्द्र की हत्या को स्वीकार करते हुये बताया कि उनके भाई ने मेरे नाम एफआईआर दर्ज करायी थी इसलिये उसकी हत्या कर दी। पुलिस ने जब उसके फार्म हाउस में छापा मार कर तलाशी ली तो वहां का नजारा देख कर भौचक्की रह गई। फार्म हाउस में पुलिस को कई नरमुंड मिले। मनोज सिंह की टाटा सूमो गाड़ी और उनका कोट, जिस पर रायबरेली के टेलर का स्टीकर लगा था, बरामद हुआ। इसी के बाद राजा कोलंदर द्वारा की गई हत्याओं का खुलासा शुरू हुआ,तो पता चला कि राजा कोलंदर ने एक दो नहीं अपितु 14 हत्यायें की है।
राजा कोलंदर कितनी नृशंसता से हत्या करता था इसके लिये पहले पत्रकार धीरेन्द्र सिंह की बर्बर हत्या से समझते हैं। राजा कोलंदर और धीरेन्द्र सिंह दोनों प्रयागराज के शंकरगढ़ क्षेत्र के रहने वाले थे। राजा कोलंदर की ससुराल शंकरगढ़ क्षेत्र के बेरी बसहरा गांव में थी, वहीं धीरेन्द्र सिंह का भी घर था। दोनों लोगों में पहले से ही जान पहचान थी। घटना के दिन प्रयागराज से घर के लिये निकले धीरेन्द्र सिंह राजा कोलंदर के बुलावे पर उसके फार्म हाउस गये। जहां वह अलाव ताप रहा था। धीरेन्द्र भी बैठ कर अलाव तापने लगे तभी कोलंदर के साले बच्छराज ने पीछे से धीरेन्द्र को गोली मार दी। धीरेन्द्र के मर जाने के बाद उनकी लाश को सूमो में रख कर मध्य प्रदेश के रीवा जनपद की सीमा पर ले गये और वहां उनका सिर और लिंग काट दिया। लिंग और धड़ को एक खेत में गाड़ दिया जबकि सिर को एक पोलिथिन में बांध कर रीवा के बाणसागर तालाब में डाल दिया। धीरेन्द्र की हत्या को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ’’रेयरेस्ट आफ द रेयर’’ कहते हुये राजा कोलंदर और उसके साले बच्दराज को 2012 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी परन्तु धीरेन्द्र सिंह के भाई वीरेन्द्र सिंह, जो कि अधिवक्ता है, ने उच्च न्यायालय की सजा को कम बताते हुये फांसी की सजा दिये जाने हेतु याचिका दायर कर रखी है, जो अभी लम्बित है।
पत्रकार धीरेन्द्र की हत्या की जांच जैसे जैसे आगे बढ़ी वैसे वैसे नरभक्षी के तमाम घृणित औा बर्बर कारनामें सामने आये। उसने कुल 14 हत्यायें करना स्वीकार किया जिसमें रायबरेली के मनोज सिंह, ड्राइवर रवि श्रीवास्तव और धीरेन्द्र का नाम भी शामिल था। उसके घर से पुलिस को एक डायरी के साथ कुछ नरमुंड बरामद हुये। बरामद नरमुंडो के बारे में पता चला कि वह अशोक कुमार संतोष, काली प्रसाद, मुइन आदि लोगों के है जिनकी हत्या कोलंदर ने की थी। डायरी के आधार पर ही 14 हत्याओं का राज खुला। पुलिस को पूछताछ में कई ऐसे तथ्य मिले जिसने उसे इंसान से नरभक्षी की श्रेणी में खड़ा कर दिया। वह हत्या के बाद शरीर के टुकड़े करके मांस को भून कर खाता था, सूप बना कर पीता था। राजा कोलंदर प्रयागराज स्थित आयुद्ध डिपो छिवकी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था। उसने अपने साथ काम करने वाले काली प्रसाद श्रीवास्तव की हत्या इसलिये कर दी थी कि क्योंकि उसे कायस्थ की खोपड़ी का जूस पीना था और भेजे (दिमाग) का मांस खाना था। उसने सुना था कि कायस्थ का दिमाग बहुत तेज होता है यदि वैसा दिमाग मिल जाय तो बड़े से बड़ा काम आसान हो जायेगा। कायस्थ का दिमाग पाने की लालसा में उसने काली प्रसाद श्रीवास्तव की हत्या करके उनके दिमाग और खोपड़ी से निकले मांस आदि को भून भून कर खाया और खोपड़ी को उबाल कर सूप पीता रहा। वह शहर से लगभग 35 किमी दूर अपने फार्म हाउस में एक के बाद एक हत्या करके अपनी सनक पूरी करता रहा और किसी को इसकी भनक नही तक नहीं लग रही थी।
राजा कोलंदर और उसके साले बच्छराज को धीरेन्द्र सिंह की हत्या के मामले में पहले ही आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है। अब अपर जिला न्यायाधीष लखनऊ द्वारा भी मनोज कुमार सिंह और रवि श्रीवास्तव की हत्या के मामले में राजा कोलंदर और उसके साले बच्छराज को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। सजा सुनाये जाने से पहले राजा कोलंदर ने न्यायालय से अपनी सफाई में एक शब्द नहीं कहा अपितु सजा सुनाये जाने के बाद भी वह मुस्कुराता रहा। उसके चेहरे पर सजा का कोई पछतावा नहीं था।
नरभक्षी कोलंदर का शौक भी अलग तरह का था। जरा जरा सी बात पर हत्या करने में उसे मजा आता था। हत्या के बाद शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देना, मांस को भून भून कर खाना, खोपड़ी का सूप पीना, नरमुंड़ को घर में सजा कर रखना तथा हत्या के बाद उसका विवरण एक डायरी में लिखना उसका शौक था। हत्या करने के बाद कई लोगों के नरमुंड़ और उनके धड़ को उसने अपने फार्म हाउस के समीप खेतों में गाड़ दिया था। अब गांव वाले वहां खेती करने भी नहीं जाते हैं। उसकी क्रूरता उसके दिमाग में इतना अंदर तक थी कि उसने अपनी पत्नी का नाम फूलन देवी रखा था जो उस समय सबसे कुख्यात दस्यु के रुप में जानी जाती थी। अपने दो बेटों का नाम अदालत और जमानत तथा बेटी का नाम आन्दोलन रखा था।
फिलहाल तो नरभक्षी उन्नाव जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है लेकिन इस फैसले के बाद उसकी क्रूरता के शिकार तमाम परिवारों के जख्म फिर ताजा हो गये है। स्व धीरेन्द्र सिंह के 28 वर्षीय पुत्र संदीप सिंह ने मीडिया से कहा कि हमारा तो पूरा परिवार उजड़ गया है। ऐसे लोगों को फांसी की सजा मिलनी चाहिये।
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