12 जून को ’’अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’’के बोर्ड आफ गवर्नर्स द्वारा पारित एक प्रस्ताव में कहा गया कि ईरान द्वारा परमाणु अप्रसार दायित्वों का पालन नहीं किया जा रहा है। इस प्रस्ताव के अगले दिन 13 जून को इजरायल द्वारा ईरान के ’’परमाणु कार्यक्रम’’ से जुड़े ठिकानों पर बड़े हमले किये गये। हमले के तत्काल बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा कि इजरायल द्वारा आपरेशन ’’राइजिंग लायन’’ शुरू किया गया है, जो इजरायल के अस्तित्व पर ईरान की ओर से होने वाले खतरे के लिये एक टारगेटेड सैन्य अभियान है। यह अभियान तब तक जारी रहेगा जब तक जरूरी होगा। इस हमले पर ईरान की ओर से प्रतिक्रिया में बताया गया कि इजरायल के हमले में तेहरान और अन्य रिहायसी इलाकों को भी निशाना बनाया गया है। वहीं ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने कहा कि हमले करने की सजा इजरायल को भुगतनी होगी। इसके बाद ईरान ने पलटवार करते हुये इजरायल के तेल अवीव, हाइफा और पेटाह टिकवा पर बड़ी संख्या में मिसाइलें दाग कर अपने मंसूबे जाहिर कर दिये।
इजरायल का यह हमला पहले से ही अनुमानित था। वाल स्ट्रीट जनरल ने अपनी एक रिर्पोट में पहले ही लिखा था कि यदि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने से जुड़े अमेरिकी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता है तो इजरायल हमले के लिये तैयार है। इतना ही नहीं अमेरिका द्वारा इराक स्थित अपने दूतावास को आंशिक रूप से खाली करना और मध्य पूर्व में स्थित सैन्य ठिकानों से सैन्य परिवारों को वापस भेजने के आदेश से भी इजरायली हमले के कयास लगाये जा रहे थे। इस प्रकार की खबरों के बाद ईरान ने कहा था कि यदि इजरायल हमला करता है तो इसके लिये वह अमेरिका को जिम्मेदार मानते हुये उसके ठिकानों पर जबाबी हमला करेगा। ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु अप्रसार नीतियों को लेकर चल रही वार्ता के बीच ही अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा ईरान के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करने के बाद ही इजरायल ने हमला कर दिया। यद्यपि हमले के तत्काल बाद अमेरिका ने खुद का बचाव करते हुये कहा था कि इस हमले में उसकी किसी तरह की कोई भूमिका नहीं है।
इजरायली हमले के कुछ ही देर बाद अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा था कि इजरायल ने ईरान के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई की है, हम ईरान पर हुये हमले में शामिल नहीं है। हमारी प्राथमिकता क्षेत्र में अमेरिकी सेना की रक्षा करना है लेकिन कुछ घंटों के बाद ही अमेरिका के रुख में बदलाव दिखायी पड़़ने लगा और वह इजरायल के साथ खड़ा हो गया है। कुछ समीक्षको का मानना है कि इजरायल- ईरान के इस युद्ध के पीछे अमेरिका है। अमेरिका पिछले एक अर्से से ईरान पर परमाणु अप्रसार नीति पर हस्ताक्षर के लिये दबाव बना रहा था। कई बार ट्रंप की ओर से हमले और प्रतिबंधों की धमकियां दी गई। इजरायल भी नहीं चाहता है कि ईरान परमाणु बम बनाकर उसके सामने चुनौती खड़ी करे।
अब अमेरिका ईरान को लगातार गम्भीर धमकियां दे रहा है। ताजे घटनाक्रम में ट्रंप ने ईरानी नेता को बिना शर्त आत्मसमर्पण के लिये कहा है, ट्रंप के बयान से यह स्पष्ट होता है कि खामेनेई को अपनी बात रखने का कोई अधिकार नहीं है। ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका का ईरान के हवाई क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण है, जहाँ F-16, F-22 और F-35 जैसे लड़ाकू विमान तैनात हैं। उनके कहने का मतलब था कि अमेरिका कभी भी ईरान में भारी विनाश कर सकता है। ट्रंप ने अपने एक ट्वीट में ईरानी नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को चेतावनी देते हुये कहा कि अमेरिका को उनके छिपने का सही ठिकाना मालूम है, उसको मारना आसान है लेकिन फिलहाल अभी मारने का इरादा नहीं है। इन धमकियों के बीच ट्रंप ने कहा है कि यदि अमेरिकी सैनिक या नागरिकों पर हमले हुये तो बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
अमेरिका का प्रयास है कि इसी युद्ध के दबाब में ईरान से परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह बंद करने की गारंटी ले ली जाय। ट्रंप के प्रभुत्व वाले जी-7 देशों के सम्मेलन में भी इजरायल को समर्थन मिला और मध्य पूर्व में अस्थिरता के लिये ईरान को जिम्मेदार बताया गया। इस बीच जी-7 के शिखर सम्मेलन को छोड़ कर ट्रंप का वापस लौट जाना, ईरानी लोगों को तेहरान खाली करने की चेतावनी देना, मध्य पूर्व में सैनिकों की तैनाती बढाने का आदेश और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने जैसे फैसले को लेकर पूरे विश्व में बेचैनी है। कयास लगाये जा रहे है कि अमेरिका इस युद्ध में कुछ खास करने की तैयारी में है।
इजरायल द्वारा युद्धक विमानों और मिसाइल से किये जा रहे हमले का पलटवार ईरान द्वारा किया जा रहा है लेकिन ईरान समर्थित प्राक्सी समूह अभी तक शांत बने हुये हैं। सर्वविदित है कि ईरान एक लम्बे समय से इराक,यमन, सीरिया,फिलीस्तीन और लेबनान जैसे देशों में इस्लामी समूहों, हिज्बुल्लाह, हमास, हूती, फिलिस्तीनी इस्लामिक जेहाद सहित इराकी शिया और मिलिशिया संगठनों को धन और हथियार मुहैया कराता रहा है, और इन्हीं के सहारे वह इजरायल और अमेरिका के हितो को चुनौती देता रहा है। पिछले दिनों इजरायली हमलों में ईरान के समर्थन वाले प्राक्सी समूहों को काफी नुकसान पहुंचा है, परन्तु माना जा रहा है कि यदि अमेरिका इजरायल के पक्ष में उतरा तो यह प्राक्सी समूह भी ईरान के साथ खुलकर युद्ध में आयेंगे। इसके अतिरिक्त ईरान मध्य पूर्व में स्थित अमेरिकी ठिकानों पर हमला कर सकता है क्योंकि ईरान के पास सैन्यकर्मियों के साथ ही मिसाइल और ड्रोन की बड़ी रेंज है।
इजरायल और ईरान के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका की भूमिका भले ही आग में घी डालने वाली है, लेकिन रूस, चीन, फ्रांस जैसे महाशक्ति कहे जाने वाले देशों के साथ-साथ विश्व के अधिकांश देश इस संघर्ष का शान्ति पूर्ण हल चाह रहे हैं। महाशक्तिशाली देशों की बात करें तो रूस और चीन के ईरान से घनिष्ठ संबंध है। ईरान ने यूक्रेन युद्ध के लिये रूस को ड्रोन और मिसाइलें दी तो रूस ने ईरान को तेल और गैस के क्षेत्र में तकनीकी सहायता दी थी। अब रूस ईरान की खुलकर मदद करने में लाचार है क्योंकि वह सैन्य शक्ति और अर्थव्यवस्था दोनों कमजोर है। वह दोनों देशों के बीच शान्ति समझौते के लिये लगातार अपील कर रहा है। आर्थिक मंदी से जूझ रहे चीन ने भी फिलहाल ईरान युद्ध से दूरी बनाकर रखी है। वह ईरान का समर्थन तो कर रहा है लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघो के डर से खुलकर सामने नहीं आ रहा है। फ्रांस ने भी ईरान के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई का विरोध तो किया लेकिन इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन भी किया। फांस ने भी बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने का आवाहन किया है। अधिकांश मुस्लिम देश इस मामले में मध्यस्थता से हल और शान्ति की अपील करके अलग हो जा रहे है।
ईरान अपनी सैन्य क्षमता के बल न केवल लड़ रहा है अपितु अमेरिका को दो टूक कह दिया है कि वह किसी दबाव में झुकने वाले नहीं है। यदि युद्ध में अमेरिका की एंट्री होती है तो ईरान कितने दिन टिकेगा, यह कहना मुश्किल है। फिलहाल यह युद्ध दो देशों तक ही सीमित है लेकिन जिस प्रकार से तनाव बढ रहा है उसके आधार पर यह कहना मुश्किल है कि कब यह युद्ध चिंगारी से शोला बन कर मध्य पूर्व में तबाही मचा देगा।
अन्य प्रमुख खबरें
प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा ने दिया भारत विरोधी ताकतों को कड़ा संदेश
Israel-Iran conflict Crude oil prices : मध्य-पूर्व संकट और भारतीय अर्थव्यवस्था
कॉलर ट्यून या मानसिक उत्पीड़न: हर बार क्यों अमिताभ?
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय: विश्वविद्यालय की लापरवाही और हीला-हवाली के चलते भड़का छात्र आंदोलन
उत्तर प्रदेश में पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया से युवाओं के सपने हो रहे साकार
रिश्तों के ATM को संभालें: 'यूजर एग्रीमेंट' नहीं, सच्ची दिलचस्पी है कुंजी
Rahul Gandhi On Army : अभिव्यक्ति के आजादी की सीमा रेखा पार करते राहुल गांधी
बांग्लादेश में आसान नहीं चुनाव की राह
ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान का कबूलनामा और राहुल का दर्द
World Environment Day 2025: केवल प्रकृति से जुड़ाव का उत्सव नहीं बल्कि एक वैश्विक आत्मचेतना का पर्व
Most Popular Leader Yogi Adityanath : देश में लगातार बढ़ रही योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता
हिंदू साम्राज्य दिवसोत्सव - हिंदू पद पादशाही की स्थापना का उत्सव
अंसारी के गढ़ में आसान होगी भाजपा की राह
वायु सेना का सुरक्षा को लेकर चिंता और जरूरतों के लिए आत्मनिर्भरता की वकालत