Hari Mangal
बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा से पहले आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को परिवार और पार्टी से 6 वर्षो के लिये निष्कासित कर दिया क्योंकि उसके फेसबुक अकाउंट से एक पोस्ट वायरल हुई जिसमें उन्होंने अपनी एक महिला मित्र के साथ 12 वर्ष पुराने संबंधों का जिक्र किया था। संदेश साफ था कि चारित्रिक पतन वाले व्यक्ति के लिये घर और पार्टी में कोई स्थान नहीं है लेकिन चुनाव से पूर्व नैतिकता का यह संदेश बिहार की जनता के गले नहीं उतर रहा क्योंकि सब को पता है कि यह सिर्फ दिखावा है, आरजेडी का असली चेहरा सत्ता में रहने पर दिखता है। इसी के साथ एक बार फिर 3 जुलाई 1999 को पटना में शिल्पी-गौतम की हुई हत्या का मामला चर्चा में है।
बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में अभियुक्त बनाये जाने के बाद प्रदेश की सत्ता को अपने परिवार में सुरक्षित करने के लिये पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। घरेलू महिला राबड़ी देवी नाम की मुख्यमंत्री थीं, सत्ता की वास्तविक कमान उनके भाई साधु यादव सहित अन्य लोगों के पास थी। राबड़ी देवी के कार्यकाल में हिंसा, अपहरण, हत्या, फिरौती, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधिक घटनायें लगातार विस्तार ले रहीं थीं क्योंकि अपराधियों को सत्ता का समर्थन मिल रहा था। इसी बीच राजधानी पटना में शिल्पी-गौतम की जघन्य हत्या ने पूरे बिहार को झकझोर कर रख दिया लेकिन 26 वर्ष बाद भी पीड़ित परिवारों को न्याय नहीं मिल सका है।
शिल्पी-गौतम पटना का दोहरा हत्याकांड़ था जिसमें 23 वर्षीय शिल्पी जैन और उसके मित्र गौतम सिंह की नृशंस ढंग से हत्या करके दोनों के शव को एक कार में रख दिया गया था। शिल्पी जैन पटना के प्रसिद्ध कपड़ा कारोबारी और कमला स्टोर के मालिक उज्ज्वल कुमार जैन की बेटी थी। वह पटना वुमेंस कालेज से पढाई खत्म करके कम्प्यूटर की कोचिंग कर रही थी। शिल्पी की एक सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि वह मिस पटना का खिताब जीत चुकी थी जबकि उसका दोस्त 27 वर्षीय गौतम सिंह एनआरआई डा बी.एन.सिंह का बेटा था। बीएन सिंह विदेश में रहते थे जबकि गौतम पटना में रह कर राजनीति के क्षेत्र में स्थान बना रहा था। घटना के समय वह सत्ताधारी राष्ट्रीय जनता दल की युवा शाखा से जुड़ा था। सम्पन्न परिवार का होने के कारण मुख्यमंत्री के भाई साधु यादव से भी उसकी जान पहचान थी। कहा जाता है कि शिल्पी जैन और गौतम सिंह आपस में गहरे दोस्त थे।
3 जुलाई 1999 की सुबह शिल्पी जैन रिक्शे से अपनी कोचिंग की ओर जा रही थी। अचानक पीछे से आयी एक कार से आवाज आयी, शिल्पी कहां जा रही हो, शिल्पी ने देखा तो वह उसके ब्वायफ्रेंड गौतम सिंह का दोस्त था जिसे शिल्पी अच्छी तरह जानती थी। शिल्पी ने बताया कि वह कोचिंग जा रही है। कार चालक ने कहा चलो मैं उधर ही जा रहा था, तुम्हें कोचिंग छोड़ देता हूं । शिल्पी गाड़ी में बैठती है, कुछ दूर ठीक रास्ते पर जाने के बाद गाड़ी पटना के आउटर रास्ते की ओर बढ़ी तो शिल्पी ने आपत्ति करते हुये कहा कि यह रास्ता तो कोचिंग का नहीं है, तो उसने कहा कि गौतम सिंह वाल्मी गेस्ट हाउस में है, वहीं तुम्हें बुलाया है। शिल्पी कुछ समझ पाती तब तक गाड़ी वाल्मी गेस्ट हाउस पहुंच गई लेकिन वहां गौतम सिंह नहीं दिखा। दरअसल यह एक सुनियोजित अपहरण था जिसका अनुमान शिल्पी को नहीं था। शिल्पी वहां का नजारा देखकर आवाक, बदहवास और असहज हो गई।
इसी बीच किसी ने गौतम सिंह को बताया कि शिल्पी जैन को वाल्मी गेस्ट हाउस ले जाया गया है। गौतम सिंह तुरंत अपनी कार से वाल्मी गेस्ट की ओर भागा क्योंकि उसे पता था कि वाल्मी गेस्ट हाउस जिस्म के भूखे दरिंदो का अड्डा है। पटना के घरों में गूंजते किस्सों और मीडिया रिपोर्ट के अनुसार जब गौतम वहां पहुंचा तो एक हाल में कुछ लोग शिल्पी के साथ दरिंदगी कर रहे थे। उसके कपड़ें फाड़ दिये गये थे। गौतम चिल्लाते हुये शिल्पी को बचाने दौड़ा लेकिन उनमें से कुछ लोग जो गौतम के कथित मित्र हुआ करते थे, गौतम को पकड़ लिया। गौतम के गुस्से के प्रतिकार पर उनमें से कुछ लोगों ने उसे लात और घूंसे से मार-मार कर वेदम कर दिया। दूसरी ओर शिल्पी के जिस्म को लोग तब तक नोचते रहे जबतक कि वह भी मरणासन्न नहीं हो गई।
शिल्पी के घर न पहुंचने पर घर वालों ने देर शाम पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करायी। इसी बीच पुलिस के पास एक अंजान नम्बर से फोन आता है कि फ्रेजर रोड स्थित विधायक निवास के आवास संख्या 12 के पास गैरेज में एक कार में लाश पड़ी हुई है। यह आवास मुख्यमंत्री के भाई साधू यादव का था। पुलिस घटना स्थल पर पहुंच कर गैराज खोलती है तो वहां गौतम की सफेद मारुती जेन कार में दो अर्धनग्न लाशें पड़ी है। उनमें एक शिल्पी और दूसरे गौतम की थी। गौतम के शरीर पर केवल पैंट और शिल्पी के शरीर पर केवल गौतम की टी-शर्ट थी। बाकी कपड़े गाड़ी में इधर-उधर पड़े थे।
गांधी मैदान की पुलिस पहुंचने के बाद वहां साधू यादव अपने तमाम समर्थकों के साथ पहुंच कर हंगामा करने लगे। पुलिस ने मौके पर ही आत्महत्या का मामला बताते हुयेे दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिये भेज दी। जिस गाड़ी में लाश मिली उसकी बिना जांच पड़ताल, फिंगर प्रिंट्स लिये पुलिस का एक सिपाही उसे ड्राइव करके थाने लेकर चला गया जिसके कारण तमाम सबूत मिट गये।
पटना के इस सनसनीखेज हत्याकांड़ में पुलिस और प्रशासन की भूमिका को लेकर सवाल उठते रहें हैं क्योंकि पोस्टमार्टम रिर्पोट आये बिना एसपी स्तर के एक अधिकारी ने घटना को आत्महत्या करार देते हुये कहा कि दोनों की मृत्यु कार्बन मोनाक्साइड पाइजनिंग से यानि दम घुटने से हुई है। उसी रात दोनों का पोस्टमार्टम कराया गया और पुलिस ने दबाव बनाकर अंतिम संस्कार भी करा दिये। गौतम सिंह के पिता लंदन में थे और उनको जानकारी तक नहीं दी गयी, उन्हें पटना आने पर पता चला कि बेटे का अंतिम संस्कार पुलिस ने करा दिया।
इसी बीच 28 जुलाई को आयी पोस्टमार्टम रिर्पोट से पता चला कि दोनो की मौत कार्बन मोनाक्साइड से नहीं बल्कि एल्युमीनियम फास्फाइड यानि सल्फास(अति जहरीली दवा) खाने से हुई है। तमाम विरोधों के बाद दोनों के विसरा सहित कुछ अन्य सैंपल्स जांच के लिये हैदराबाद भेजे गये, जहां जांच से पता चला कि शिल्पी के इनरवीयर में एक से अधिक लोगों के वीर्य के दाग है। इस रिर्पोट के आधार पर अनुमान लगाया गया कि एक से अधिक लोगों ने शिल्पी के साथ संबंध बनाया।
पहले हत्या फिर आयी फाॅरेंसिक जांच रिर्पोट को लेकर बिहार में विपक्ष सड़कों पर उतर आया। आखिरकार मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने सितम्बर में मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। तमाम सबूत पुलिस पहले ही नष्ट कर चुकी थी अब सीबीआई पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फाॅरेंसिक जांच रिपोर्ट के सहारे आगे बढी। शिल्पी के कपड़ों पर मिले वीर्य के धब्बों की जांच के लिये सीबीआई ने जिन लोगों के खून के सैंपल एकत्र करना चाहा उसमें साधू यादव का भी नाम था लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी साधू यादव ने खून का सैंपल नहीं दिया। गौतम के पांच दोस्तों का सैंपल लिये गये लेकिन वह मैच नहीं हुये। सीबीआई को तमाम प्रयासों के बाद भी मामले में कोई क्लू नहीं मिल सका और उसने साढे चार साल बाद क्लोजर रिर्पोट लगाकर बताया कि दोनों ने एल्युमीनियम फास्फाइड खाकर आत्म हत्या की है।
सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट के विरुद्ध शिल्पी जैन के भाई प्रशांत जैन ने दिसम्बर 2005 में पटना उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल किया लेकिन 5 जनवरी को उसका अपहरण हो गया। अपराधियों ने कुछ दिन बाद उसे छोड़ तो दिया लेकिन प्रशांत अपनी याचिका की पैरवी करने नहीं गये। 26 साल बाद भी पिता उज्जवल कुमार जैन को न्याय की उम्मीद है, कहते हैं कि मेरी बेटी की आवाज अब भी इस देश की अदालतों और समाज के जमीर को पुकार रहीं है।
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