किस्सा जंगलराज काः उन्मादी भीड़ ने डीएम को ईंट-पत्थरों से कुचला, माफिया ने सिर में मारी गोली

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बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा के बाद राज्य में राजनीतिक दलों का फोकस गठबंधन दलों के साथ सीटों का तालमेल, प्रत्याशियों का चयन और चुनावी मुद्दे को अंतिम रूप देने पर केन्द्रित है। माना जा रहा है कि राज्य में मुख्य मुकाबला राजद गठबंधन और महागठबंधन के बीच देखने को मिलेगा।

किस्सा जंगलराज काः उन्मादी भीड़ ने डीएम को ईंट-पत्थरों से कुचला, माफिया ने सिर में मारी गोली

बिहार में महागठबंधन की अगुवायी लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल कर रहा है जबकि कांग्रेस पार्टी मुख्य सहयोगी घटक की भूमिका में है। बिहार की सत्ता 1990 से 2005 तक लालू यादव के पास थी जो लोगों के जेहन में जंगलराज के नाम से दर्ज है। यही कारण है कि बिहार में जब-जब चुनाव आते हैं, विशेषकर विधानसभा के चुनाव, तो लालू यादव के “जंगलराज” के उन तमाम जघन्य किस्सों पर चर्चा शुरू हो जाती है जिनकी चीखें अभी भी लोगों के कानों में गूंजती हैं। इस श्रृंखला की पहली कड़ी में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की 5 दिसम्बर 1994 को हुयी निर्मम हत्या के बारे में जानते है जिसकी गुंज देश-विदेश तक हुयी।

अंडरवर्ल्ड छोटन शुक्ला की हत्या

बिहार विधानसभा चुनाव 1995 की तैयारी चल रही थी। सत्तारूढ जनता दल के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय अभियान को सवर्ण विरोधी करार देते हुये उनकी पार्टी के राजपूत विधायक आनंद मोहन सिंह ने 1993 में जनता दल से अलग होकर  बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन किया जिसमें सवर्ण जातियों के तमाम दबंग, माफिया और अंडरवर्ल्ड के रूप में कुख्यात लोगों को जोड़ा जा रहा था। इन्हीं में एक चर्चित नाम कौशलेन्द्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला का था, जो मुजफ्फरपुर में अंडरवर्ल्ड माफिया के रूप में जाना जाता था। छोटन ने वैशाली में हुये लोकसभा उपचुनाव में बिहार पीपुल्स पार्टी प्रत्याशी एवं आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद को चुनाव जितवाने में बड़ी मदद की थी। इस मदद के उपकार में आनंद मोहन ने छोटन शुक्ला को चंपारण की केसरिया विधानसभा सीट से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। 

4 दिसम्बर 1994 को छोटन शुक्ला अपने चार समर्थकों के साथ चुनाव प्रचार करके लौट रहे थे। रात 8-9 बजे के बीच छोटन की कार मुजफ्फरपुर के संजय सिनेमा हाल के पास पहुंची तभी पुलिस के भेष में खड़े कुछ लोगों ने कार रुकवायी और एके-47 से फायर झोंक दिया। कहा जाता है कि 100 राउंड़ से अधिक फायर हुये और गाड़ी में मौजूद सभी लोग मार दिये गये। इस हत्याकांड़ में लालू यादव के करीबी और बिहार सरकार में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का नाम आया। माफिया की हत्या के प्रतिशोध में हिंसा की सम्भावना को देखते हुये आसपास के जिलों में भी पुलिस को सतर्क कर दिया गया। 

सड़क पर उतरी उन्मादी भीड़

अगले दिन 5 दिसम्बर को मुजफ्फरपुर के भगवानपुर चैराहे पर छोटन की लाश लेकर विशाल जनसमूह के साथ आनंद मोहन सहित तमाम नामधारी माफिया एकत्र थे। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार आनंद मोहन ने भीड़ को संबोधित करते हुये कहा कि इस हत्या की साजिश में मुख्यमंत्री के साथ मुजफ्फरपुर और चंपारण के एस.पी.शामिल हैं। आनंद मोहन ने भीड़ के तेवर को देखते हुये कहा कि एक-एक अधिकारियों से बदला लिया जायेगा। आनंद मोहन के साथ मौजूद छोटन  के भाई भुटकन ने भी बदला लेने की कसम खायी। भीड़ भी उग्र होकर बदला- बदला के नारे लगा रही थी।

ईंट-पत्थरों से कूंचकर निर्दोष डीएम की हत्या

मंच पर मौजूद माफियाओं के बगावती भाषण से भीड़ उग्र होती जा रही थी। इसी बीच गोपालगंज के युवा जिलाधिकारी जी कृष्णैया हाजीपुर में आयोजित चुनाव तैयारियों की समीक्षा बैठक से वापस अपने जिले गोपालगंज  जा रहे थे। रास्ते में खड़ी भीड़ ने लाल बत्ती लगी गाड़ी को रोक लिया। सुरक्षाकर्मी ने बताया कि गाड़ी में गोपालगंज के डीएम है लेकिन उग्र भीड़ ने उनके सुरक्षाकर्मी को पीटना शुरू कर दिया। ड्राइवर गाड़ी लेकर भागना चाहता था लेकिन कृष्णैया अपने सुरक्षाकर्मी को बचाने के लिये गाड़ी से बाहर आ गये। अब भीड़ कृष्णैया पर टूट पड़ी। भीड़ इतनी हिंसक थी कि वह कृष्णैया पर ईंट और पत्थर लेकर टूट पड़ी। लहुलुहान कृष्णैया जमीन पर छटपटाते जीवन की भीख मांग रहे थे लेकिन कहा जाता है कि छोटन के भाई भुटकन ने डीएम के सिर में सटाकर तीन गोली मार दी जिससे घटना स्थल पर ही उनकी मौत हो गई।

कुली से आईएएस तक का सफर

जी कृष्णैया का जन्म 1957 में महबूबनगर, आंध्र प्रदेश, (अब तेलंगाना) में एक भूमिहीन दलित परिवार में हुआ था। कृष्णैया के पिता कुली का काम करते थे। शुरुआती दिनों में कृष्णैया भी कुली का काम करते हुये पढ़ाई करते रहे। पत्रकार बनने के लिये पत्रकारिता का कोर्स किया लेकिन इसी बीच एक संस्थान में क्लर्क पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। क्लर्क बनने के बाद भी वह सिविल सेवा की तैयारी में लग गये। 1985 बैच में वह आईएएस बन गये और उन्हें बिहार कैडर आवंटित हुआ था। उनकी साफ-सुथरी छवि को देखते हुये तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने उन्हें अपने गृह जनपद गोपालगंज का जिलाधिकारी बनाया था। 5 दिसम्बर को उग्र भीड़ द्वारा निर्दोष कृष्णैया की हत्या किये जाने के बाद उनकी सेवा और जनभावनाओं को देखते हुये गोपालगंज में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई है।

आरोपियों को फांसी और उम्रकैद की सजा

जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के लिये पटना के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने सात लोगों को दोषी पाया था जिसमें तीन लोगों, पूर्व सांसद आनंद मोहन, पूर्व मंत्री अखलाक अहमद और पूर्व विधायक अरुण कुमार को फांसी की सजा तथा चार लोगों, आनंद मोहन की पत्नी लवली आंनद, मुन्ना शुक्ला (छोटन का भाई), हरेन्द्र कुमार और एसएस ठाकुर को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। अदालत के बाहर फैसले का इंतजार कर रहे समर्थकों को इतने कठोर सजा की उम्मीद नहीं थी। बिहार के इतिहास में पहली बार सांसद और विधायक रह चुके लोगों को फांसी की सजा दी गई थी परन्तु न्यायालय का यह फैसला बहुत दिन तक नहीं रह सका। एक साल बाद 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने आनंद मोहन के मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया जबकि अखलाक अहमद,अरुण कुमार सहित सभी छः लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। आनंद मोहन अपनी सजा के खिलाफ 2012 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की लेकिन सर्वोच्च अदालत ने आनंद मोहन की उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा।

आरोपी को सरकार का अभयदान

अप्रैल 2023 में जी कृष्णैया की हत्या का मामला एक बार फिर बिहार सहित पूरे देश में चर्चा में आया क्योंकि आजीवन कारावास की सजा काट रहे आनंद मोहन की रिहाई के लिये अप्रैल 2023 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राज्य सरकार के मैनुअल में मौजूद उपबंध “डियुटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या के लिये दोषी ठहराये गये लोगों को समय से पहले रिहा नहीं किया जा सकता है” को हटा दिया जिसके कारण आनंद मोहन सहित 27 कैदियों की असमय रिहाई हो गयी। 

कहा जाता है कि ऐसा निर्णय तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के दबाव में लिया गया था क्योंकि आनंद मोहन का प्रदेश के राजपूतों पर खासा प्रभाव है जो कुल आबादी का लगभग 4 प्रतिशत हैं। नीतीश सरकार के इस निर्णय की व्यापक स्तर पर आलोचना हुई। कृष्णैया की पत्नी सहित तमाम राजनीतिक दलों और सिविल सेवकों के संघ ने अपना विरोध जताते हुये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस फैसले पर पुर्नविचार का अनुरोध किया गया लेकिन तेजस्वी यादव आनंद मोहन की रिहाई को विधिसम्मत बताते रहे। कृष्णैया की पत्नी ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन बिहार सरकार द्वारा रिहाई को कानूनी जामा पहनाने के कारण कोई उपचार नहीं मिल सका।

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