आसान नहीं है आजम खां की सियासत की राह

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जेल से रिहाई के बाद आजम खां को सपा में बेरुखी का सामना करना पड़ा। एक समय के कद्दावर नेता का राजनीतिक प्रभाव अब कमजोर हो चुका है। कानूनी मुकदमों, गिरते स्वास्थ्य और सपा नेतृत्व से दूरी ने उनके भविष्य को अनिश्चित बना दिया है। अब वह सलाहकार भूमिका में सीमित हो सकते हैं।

आसान नहीं है आजम खां की सियासत की राह

समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक मो. आजम खां 23 सितम्बर को दोपहर 12 बजे जब जमानत पर छूटकर सीतापुर जेल के पिछले दरवाजे से बाहर निकल रहे थे तो काले चश्में के भीतर से उनकी आंखें सपा के प्रमुख नेताओं विशेषकर मुलायम सिंह परिवार के सदस्यों को खोज रहीं थीं लेकिन वहां मौजूद चंद लोगों में कोई बड़ा नेता या अखिलेश यादव का प्रतिनिधि नहीं था। आजम और उनके समर्थकों के लिये यह आश्चर्य और पीड़ादायक क्षण था। यद्यपि अखिलेश यादव सहित पार्टी के अनेक नेताओं ने बयान जारी करके न्यायालय के निर्णय पर खुशी जाहिर की और कहा कि सपा सरकार आयेगी तो उन पर लगे सारे मुकदमें वापस लिये जायेंगे। सपा के वरिष्ठ नेताओं की इस बेरुखी पर आजम खां की खामोशी से उनके सियासी भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गयी हैं। 

सपा में समाप्त होता आजम का एकाधिकार

आजम रामपुर सीट से नौ बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं। वह कभी सपा के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे हैं। जब तक मुलायम सिंह यादव प्रभाव में रहे तब तक सपा की सरकार रही हो अथवा संगठन दोनों में आजम खां का बोलबाला रहा करता था। मुलायम सिंह भी आजम के व्यवहार को लेकर सदैव संजीदा रहते थे क्योंकि पार्टी अथवा  सरकार का यदि कोई निर्णय उनके अनुसार नहीं हुआ तो वह कोपभवन यानि अपने घर से बाहर नहीं जाते थे। उनको मनाने के लिये लखनऊ से मुलायम सिंह परिवार का कोई सदस्य अथवा वरिष्ठ नेता रामपुर आता था तब जाकर वह मानते थे। आजम खां को इतनी तरजीह दिये जाने के पीछे सपा में धारणा थी कि वह मुसलमानों के एक मात्र नेता है जिसके कारण उनके वोट सपा की ओर आ रहे हैं। मुलायम युग की समाप्ति के बाद 2012 में सत्ता में आये अखिलेश यादव ने आजम को वरिष्ठ मंत्री का पद तो दिया लेकिन वह प्राथमिकता नहीं दी जो उनके पिता मुलायम सिंह देते आ रहे थे। तभी से आजम और अखिलेश में जो दूरियां बढ़ी वह बढ़ती ही जा रही है। 2024 लोकसभा चुनाव में आजम खां अपने समर्थक आसिम रजा को रामपुर से टिकट चाह रहे थे लेकिन टिकट आजम के विरोधी माने जाने वाले मोहिबुल्लाह नदवी को दिया गया। जीत के बाद नदवी ने आजम के जेल में होने पर बयान दिया कि जेल सुधार गृह है, उन्हें दुआओं की जरूरत है।

भाजपा आते ही शुरू हुये दुर्दिन

2017 में प्रदेश हुये सत्ता परिवर्तन के बाद योगी सरकार में आजम के काले कारनामों का भंडा फूटने लगा। आजम के ड्रीम प्रोजेक्ट मौलाना अली जौहर विवि से जुड़ी शिकायतों की जांच में सरकारी और तमाम गरीबों की भूमि पर जबरन कब्जा, जौहर ट्रस्ट द्वारा विवि निर्माण में खर्च की गई अवैध 350 करोड़ रकम का स्रोत और  भष्ट्राचार के मामले सामने आये। आयकर विभाग अवैध रकम पर जुर्माना और व्याज सहित 550 करोड़ की वसूली की प्रक्रिया शुरू की है। आजम पर कई मामले तो उनके विवादित बोल, भड़काऊ भाषण और अपमानजनक टिप्पणियों से जुड़े है। सपा नेता पर एक दो नहीं 104 मुकदमें दर्ज हैं जिसमें 93 मामले तो उनके गृह जनपद रामपुर में हैं। हाईकोर्ट और एमपी-एमएलए कोर्ट से कुल 72 मामलों में जमानत मिलने के बाद आजम खां जेल से बाहर आयें हैं। रामपुर के 12 मामलों में अब तक फैसला आ चुका है बाकी अभी प्रक्रिया में है। तीन मामलों में सुनवायी पूरी हो जाने के कारण उसमें इसी माह फैसला आने की उम्मीद है।

सियासत का अगला ठिकाना

आजम खां को नजदीक से जानने वाले कहते हें कि उनको समझना कठिन है। उनका अगला कदम क्या होगा? इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। जेल से छूटने के बाद जब आजम से जब पूछा गया कि आप सपा के बड़े नेताओं में शुमार है आपके स्वागत के लिये कोई बड़ा नेता नहीं आया तो उन्होंने पलटकर जबाब दिया बड़ा नेता होता तब तो कोई आता? इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि आजम को भी सपा में अपने घटते कद का आभास है। बसपा सहित किसी अन्य दल में जाने के लिये आजम इन्कार करते हैं। कहतें हैं कि अभी सेहत ठीक करेंगे, ईलाज करायेंगे। शिवपाल यादव ने भी कहा कि आजम खां कहीं नहीं जायेंगे, सपा में ही रहेंगे। सपा भी आजम से रिश्ता बनाये रखना चाहती है। रिहाई के बाद अखिलेश ने कहा कि वह आजम खां से मिलने जायेंगे लेकिन इसके लिये 15 दिन बाद 8 अक्टूबर की तारीख तय की गई है। राजनीति समीक्षक मानते हैं कि आजम का बसपा से जुड़ाव आसान नहीं है। मायावती के तेवर और आजम खां के तेवर एक जैसे हैं। मायावती पार्टी में किसी को मनमानी या निर्णय में हस्तक्षेप तथा बोलने की छूट नहीं दे सकती हैं। इससे साफ है कि आजम खां केवल यस मैन की तरह रह सकते हैं जो उन्हें स्वीकार नहीं होगा।

क्या सपा में लौटेगा पुराना कद

प्रदेश के ताजा राजनीतिक समीकरण पर नजर डालें तो यही लगता है कि आजम खां के पास सपा में बने रहने के अलावा अन्य कोई सम्मानजनक स्थान नहीं है। सपा में रहने पर क्या उनके पुराने प्रभाव की वापसी होगी, यही सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है। माना जा रहा है कि अब ऐसा सम्भव नहीं है। इसके कई कारण बताये जा रहे है। अखिलेश यादव जिस लाइन पर चल रहें हैं, वहां अब आजम जैसे नेताओं के लिये बहुत स्थान नहीं है। प्रदेश की बदलती सियासत को देखकर सपा अध्यक्ष भी साफ्ट हिन्दुत्व की राह अपनाने का प्रयास कर रहें हैं। दूसरा लगभग 5 वर्ष से जेल की कोठरी में रह रहे आजम का प्रभाव बहुत कम हो गया है। विधानसभा की अजेय सीट पर भाजपा के आकाश सक्सेना ने झंड़ा गाड़ दिया है। तमाम समर्थक भय,लोभ या परिस्थितिवश अन्य नेताओं की शरण में चले गये। 2024 के लोकसभा चुनाव में आजम खां जेल में थे लेकिन आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों ने पूरी ताकत से सपा के पक्ष में मतदान किया। इससे सपा की यह गलतफहती दूर हो गई कि मुसलिम वोट आजम के कारण आते है। सांसद भी विरोधी खेमें से बन गया। इन सबके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात आजम का स्वास्थ है जिसको लेकर वह स्वयं चिंतित है। अब 71 वर्षीय आजम के पास पहली जैसी शक्ति नहीं है कि वह दौरा करके फिर से अपना राजनीतिक दबदबा बना सके लेकिन रामपुर, मुरादाबाद और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अभी भी आजम प्रभावशाली हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। अब आजम केवल सपा में सलाहकार की भूमिका में बने रहें यही उनके लिये बड़ा पद होगा।

सियासत की राह में कांटे

आजम खां कोर्ट के आदेश से जमानत पर बाहर तो आ गये हैं लेकिन कितने दिनों तक बाहर रहेंगे यह कहना मुश्किल है। ट्रायल पर चल रहे मामलों को छोड़ दे तो भी अभी तीन मामले ऐसे हैं जिनपर इसी माह फैसला आने की उम्मीद है। पहला मामला 2017 का है जिसमें आजम खां सरकार के विरुद्ध बोलते-बोलते सेना पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी कर बैठे। आकाश सक्सेना ने सिविल लाइंस कोतवाली में इसकी रिपोर्ट दर्ज करायी थी। दूसरा मामला 23 अगस्त 2018 को एक न्यूज चैनल को दिये गये साक्षात्कार में आजम खां ने अमर सिंह के परिवार पर आपत्तिजनक बयान दिया था। अमर सिंह ने इस मामले में गोमतीनगर लखनऊ में रिपोर्ट दर्ज करायी थी। यह मामला एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट में चल रहा है। तीसरा मामला 2019 लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। वायरल हुये वीडियो में आजम खां मतदाताओं को पुलिस के प्रति भडका रहें है और निर्धारित अवधि के बाद भी मतदान के लिये उकसा रहें है। यह मामला सिविल लाइंस कोतवाली रामपुर में दर्ज हुआ था। अब इन तीनो मामलों में बहस पूरी हो चुकी है केवल फैसला आना बाकी है। आजम खां के राजनीति भविष्य को लेकर भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी की टिप्पणी बहुत कुछ स्थिति साफ करती नजर आती है। राकेश त्रिपाठी ने कहा है कि आजम खां कहीं भी रहें लेकिन प्रदेश की जनता जानती है कि उनको फिर जेल जाना है, उनके किये अपराधों को लोग भूले नहीं है। उनका लगातार जेल आना-जाना लगा रहेगा। जमानत पर रिहा हुये है यह अल्पविराम है। उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता अब समाप्त हो चुकी है ।

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