Hari Mangal
बृज बिहारी प्रसाद इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने मुजफ्फरपुर आये लेकिन उसी के साथ छात्र राजनीति का चस्का लग गया जिसके बल पर रंगदारी और सरकारी ठेके हथियाने लग गये। इस काम में उनकी दुश्मनी छोटन शुक्ला से हो गयी। छोटन भी छात्र राजनीति के साथ ही रंगदारी और सरकारी ठेका हथिया रहा था। यह दुश्मनी इतना आगे बढ़ी कि शहर में दोनों के अपने-अपने गढ़ बन गये। बृज बिहारी प्रसाद के कारनामों की धमक राजधानी पटना तक गुंजने लगी। 1990 का विधानसभा चुनाव आया तो लालू यादव ने उनको पूर्वी चंपारण के आदापुर सीट से जनता दल का टिकट दे दिया। बृज बिहारी प्रसाद विधायक बन गये और लालू यादव ने उन्हें अपने मंत्रीमंडल में ग्रामीण विकास विभाग का उप मंत्री बना दिया।
मुख्यमंत्री लालू यादव के सामाजिक न्याय आन्दोलन से नाराज बाहुबली विधायक आनंद मोहन सिंह ने 1993 में लालू यादव का साथ छोड़ कर ‘बिहार पीपुल्स पार्टी’ बना ली। छोटन शुक्ला अपने प्रतिद्वंदी बृज बिहारी की तरह राजनीति में जगह बनाने के लिये आनंद मोहन सिंह से जुड़ गये। 1994 में वैशाली लोक सभा उप चुनाव में आनंद मोहन ने अपनी पत्नी लवली सिंह को प्रत्याशी बनाया। समीकरण ऐसा बना कि लालू यादव का प्रत्याशी लवली सिंह से चुनाव हार गया। लवली सिंह की जीत के बाद छोटन शुक्ला आनंद मोहन के और करीब आ गये। 1995 के विधानसभा चुनाव से पहले ही आनंद मोहन ने छोटन शुक्ला को केसरिया विधानसभा सीट से अपनी पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया। छोटन शुक्ला अपने चुनाव प्रचार में लग गये लेकिन 4 दिसम्बर की रात्रि में चुनाव प्रचार से लौटते समय उनकी हत्या कर दी गई। हत्या बृज बिहारी प्रसाद के घर के समीप की गई जिसके कारण आरोप लगा कि इस हत्या की पटकथा उन्होंने ही लिखी थी। छोटन शुक्ला की शव यात्रा के दौरान ही गोपालगंज के जिलाधिकारी जी कृष्णैया की नृशंस हत्या कर दी गई थी।
छोटन शुक्ला की हत्या के आरोपी बृज बिहारी प्रसाद का कद घटने के बजाय बढ़ गया। 1995 के चुनाव के बाद गठित सरकार में लालू यादव ने उन्हें विज्ञान और प्रद्यौगिकी विभाग का कैबिनेट मंत्री बना दिया। दरअसल इसके पीछे एक और कारण था, आनंद मोहन के पार्टी छोड़ने के बाद लालू यादव ने उनको घेरने तथा पिछड़ी जातियों को गोलबंद करने के लिये बृज बिहारी प्रसाद को ही आगे कर रहे थे। मंत्री बनने के बाद बृज बिहारी प्रसाद का रुतबा और सुरक्षा घेरा बढ़ गया था लेकिन छोटन शुक्ला की हत्या के बाद उसके भाई भुटकन शुक्ला से उनको अपनी जान का खतरा बना हुआ था।
छोटन शुक्ला के साथ पांच लोगों की हत्या में बृज बिहारी प्रसाद के गुर्गो ओंकार सिंह, उनके गनर अनिल सिंह, लल्लू सिंह, प्रदीप सिंह, संजय सिंह और ब्रम्हपुरा थाने के तत्कालीन प्रभारी दीपक कुमार अम्बष्ट पर आरोप लगा था। 1996 में टेंडर डाल कर लौट रहे ओंकार सिंह, अनिल सिंह, लल्लू सिंह की कार को घेर कर भुटकन शुक्ला गैंग ने एके 47 से लगभग 200 राउंड फायर झोंक दिया गया। ओंकार सिंह, अनिल सिंह और चालक मारा गया। लल्लू सिंह उस समय कूद कर भाग गया लेकिन कुछ ही दिन बाद उसकी भी हत्या हो गई। अब भुटकन शुक्ला बृज बिहारी प्रसाद की हत्या का अवसर खोजने लगे।
इसी बीच भुटकन के बॉडीगार्ड दीपक सिंह ने 16 जुलाई 1997 को भुटकन की हत्या कर दी। आरोप लगा कि दीपक को बृज बिहारी ने पैसे देकर भुटकन की हत्या करवा दी। भुटकन की हत्या के बाद मामला शांत नहीं हुआ। अब गैंग की कमान भुटकन के भाई विजय शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला ने संभाल ली। मुन्ना शुक्ला मोकामा के चर्चित माफिया सूरजभान सिंह के शिष्य थे। छोटन शुक्ला के मित्र रहे मोतिहारी के देवेन्द्र दुबे भी एक नये डान बन कर उभरे। अब बृज बिहारी के लिये मुन्ना, सूरजभान के साथ ही देवेन्द्र भी खतरा बन गये। 1998 के लोकसभा चुनाव में मोतीहारी सीट से आरजेडी प्रत्याशी और बृज बिहारी की पत्नी रमा देवी के विरुद्ध देवेन्द्र दुबे ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर नई चुनौती दी लेकिन मतदान के दिन 22 फरवरी 1998 को देवेन्द्र दुबे की हत्या कर दी गई। यह हत्या मोतिहारी के विनोद सिंह ने की थी जो बृज बिहारी के संरक्षण में पल बढ़ रहे थे। अब शुक्ला और बृज बिहारी गैंग की लड़ाई खुलकर सतह पर आ गई थी। सत्ता में होने के कारण बृज बिहारी प्रसाद अपने विरोधियों मुन्ना शुक्ला और सूरजभान सिंह पर भारी थे लेकिन हत्या की आशंका में बृज बिहारी के साथ कड़ा सुरक्षा घेरा बना रहता था।
छोटन शुक्ला, भुटकन शुक्ला और देवेन्द्र दुबे की हत्या के बाद बृज बिहारी की लिस्ट में दो नाम, पहला सूरजभान सिंह और दूसरा मुन्ना शुक्ला का था। मोकामा के डान सूरजभान सिंह बेऊर जेल में बंद थे। बृज बिहारी ने जेल में ही उनकी हत्या की योजना तैयार की लेकिन यह बात सूरजभान सिंह को पता चल गई। सूरजभान सिंह के लिये यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया कि कोई उनकी हत्या की साजिश रच रहा है। उन्होंने बिहार के अपने गुर्गो के साथ ही उत्तर प्रदेश के उभरते शूटर श्री प्रकाश शुक्ला से सम्पर्क किया। बस यहीं से कैबिनेट मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या की उलटी गिनती शुरू हो गई।
बिहार में चल रहे जंगलराज के बीच तमाम घोटाले सामने आये जिसमें नामांकन या मेधा घोटाला भी शामिल था। यह घोटाला शैक्षणिक संस्थानों में अवैध रूप से प्रवेश दिलाने से जुड़ा था। आरोप था कि राजनेताओं ,अधिकारियों और शिक्षा माफियाओं ने पैसा लेकर तमाम ऐसे छात्रों का प्रवेश कराया जो कि अर्ह नहीं थे। मामले की सीबीआई जांच में बृज बिहारी प्रसाद भी गिरफ्तार किये गये लेकिन जेल जाने से बचने के लिये उन्होंने सत्ता का फायदा उठाया और इन्दिरा गांधी आयुर्वेदिक संस्थान पटना में मर्ती हो गये। हत्या की आशंका में उनकी सुरक्षा के लिये बिहार पुलिस के कमांडो सहित कई निजी सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे।
सूरजभान सिंह के शूटर अस्पताल में मंत्री की लगातार रेकी कर रहे थे। वह शाम को अपने एक सुरक्षाकर्मी के साथ टहलने निकलते थे। 13 जून 1998 की शाम बृज बिहारी प्रसाद टहल कर जैसे ही अस्पताल के कमरे की ओर लौट रहे थे तभी दो गाड़ियों से आये श्री प्रकाश शुक्ला सहित आधा दर्जन शूटरों ने उनके उपर एके-47 से गोलियों की बौछार कर दी। इस हमले में बृज बिहारी के साथ सुरक्षाकर्मी भी मार दिया गया। हत्या के सभी अपराधी बजरंगबली की जय का नारा लगाते हुये चले गये।
बृज बिहारी प्रसाद की हत्या में मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी, सूरजभान सिंह, राजन तिवारी सहित नौ लोग नामजद किये गये थे। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया जहां नौ बर्ष बाद अक्टूबर 2024 में आये फैसले में मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास तथा सूरजभान सिंह सहित अन्य लोगों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया। मंत्री की हत्या के कुछ ही दिन बाद ही श्री प्रकाश शुक्ला को उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया।
अब समय का चक्र और राजनीति की विडम्बना देखिये कि आज मुन्ना शुक्ला तेजस्वी यादव के साथ और बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी और सूरजभान सिंह राजग के घटक दलों से जुड़ कर एक साथ हैं।
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