सियासी सवाल: आखिर भाजपा के नये अध्यक्ष के लिए कब खत्म होगा सस्पेंस

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भाजपा में नए अध्यक्ष के चयन को लेकर सस्पेंस बरकरार है, क्योंकि जेपी नड्डा का कार्यकाल दो साल पहले ही समाप्त हो चुका है। पार्टी संविधान के अनुसार, 19 राज्य इकाइयों के अध्यक्ष चुने जाने जरूरी हैं, जिनमें से 5 में प्रक्रिया अभी चल रही है। जुलाई के अंत तक नए अध्यक्ष की घोषणा की उम्मीद है।

सियासी सवाल: आखिर भाजपा के नये अध्यक्ष के लिए कब खत्म होगा सस्पेंस

देश ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी समझी जाने वाली भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) को नये अध्यक्ष की तलाश है। फिलहाल एक्सटेंशन पर ही मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल चल रहा है। हालांकि करीह दो साल पहले ही उनका निर्धारित कार्यकाल समाप्त हो चुका है। संभवतः ऐसी स्थिति पार्टी के इतिहास में पहली बार आयी होगी जब अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो गया हो और नये अध्यक्ष की तलाश पूरी ना हो सकी हो। यह सब तब है जब पार्टी के पास दिग्गज नेतृत्वकर्ताओं की कमी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि नये पार्टी अध्यक्ष की तलाश पूरी नहीं होने से पार्टी की सेहत पर कोई खास असर पड़ रहा हो। पिछले दो सालों में भाजपा ने कई चुनावों में शानदार परिणाम भी हासिल किया है। पर इतने बड़े दल के अध्यक्ष पद के लिए अबतक किसी नाम पर सर्व सम्मति ना बन पाना कई सवालों को जन्म दे रहा है।

अटल बिहारी से लेकर जेपी नड्डा तक

सबसे पहले भाजपा के पुराने इतिहास पर एक नजर दें। आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़े राजनीतिक दल 'जनसंघ' के जो सदस्य जनता पार्टी में शामिल हुए थे, उन्होंने 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना की। उस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का संस्थापक अध्यक्ष चुना गया। साल 1986 में लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। इसके बाद 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने ऐतिहासिक राम रथ यात्रा निकाली। इसका असर दिखा। वर्ष 1991 में हुए आम चुनाव में बीजेपी ने 120 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी के नेतृत्व में पहली बार साल 1996 में केंद्र में सरकार बनी। इस दौरान पार्टी को आम चुनावों में सबसे ज़्यादा 161 सीटों पर जीत मिली थी। उस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि उनकी सरकार महज़ 13 दिल चल पाई। बहुमत न होने की वजह से सरकार गिर गई। उसके बाद भाजपा की ओर से एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) बनाया गया। साल 1998 और फिर 1999 में सरकार बनाई। वर्ष 2004 में हुआ आम चुनाव एनडीए और बीजेपी के लिए ठीक नहीं रहा। इसके बाद वर्ष 2014 में ही बीजेपी की सरकार केंद्र में लौटी। नरेंद्र मोदी पार्टी का चेहरा बने। इस दौरान पार्टी अध्यक्ष पर नियमित तौर पर बदलते रहे। राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अमित शाह और जेपी नड्डा जैसे लीडरों ने 2005 से 2023 तक पार्टी की कमान संभाली लेकिन यह पहला मौक़ा है जब बीजेपी के अध्यक्ष पद पर कोई फ़ैसला नहीं हो पाया है। नड्डा जनवरी 2020 में पार्टी के अध्यक्ष बने थे और जनवरी 2023 में उनका कार्यकाल ख़त्म हो चुका है।

19 राज्य इकाईयों के अध्यक्ष बनने का इंतजार

भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2023 में ही खत्म हो गया था लेकिन संगठनात्मक मजबूरियों और राजनीतिक समीकरणों के चलते इसे विस्तारित कर दिया गया। अब इस विस्तार को भी दो साल पूरे हो चुके हैं। पार्टी के संविधान को देखते अब हर हाल में नए अध्यक्ष की नियुक्ति जरूरी है। इसे लेकर पार्टी के भीतर गतिविधियां तेज हो गई हैं। पार्टी के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी संभव है जब देशभर में पार्टी की कम से कम 19 राज्य इकाइयों के अध्यक्ष नियुक्त हो चुके हों। फिलहाल अब तक 14 राज्यों में नए अध्यक्ष चुने जा चुके हैं। बाकी 5 राज्यों में चुनाव प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों में अभी भी पार्टी नया प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पाई है। पार्टी के 18 राज्यों में जिला अध्यक्षों के चुनाव भी 50% से अधिक पूरे हो चुके हैं. देशभर में भाजपा की 37 ईकाइयां हैं।

जुलाई के आखिर तक उम्मीद

21 जुलाई से संसद का मॉनसून सत्र शुरू होना है। इससे पहले 4 जुलाई से 6 जुलाई तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक दिल्ली में होने की सूचना है। इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले समेत सभी 6 सहसरकार्यवाह समेत संघ के पदाधिकारी भी मौजूद रहेंगे। संभव है कि इस चर्चा में नए पार्टी अध्यक्ष के. नाम पर मुहर लग जाये। सूत्रों के अनुसार इस बैठक दौरान पार्टी अध्यक्ष को लेकर बीजेपी आलाकमान और संघ के नेताओं चर्चा हो सकती है। जो स्थिति बनती दिख रही है, लगता है कि जुलाई के आखिरी सप्ताह से पूर्व नया अध्यक्ष भाजपा चुन ले। इससे पहले यूपी, मध्य प्रदेश, तेलंगाना सहित अन्य प्रमुख राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष चुन लिये जायेंगे। पार्टी सूत्रों की मानें तो दक्षिण भारत के किसी चेहरे पर दांव खेला जा सकता है। वैसे कोई नाम अध्यक्ष पद के लिए सर्वसम्मति से तय नहीं हो सके हैं। वैसे कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी रहे सुनील बंसल, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, तमिलनाडु की वानति श्रीनिवासन, तमिलिसाई सौंदर्यराजन, आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव की बेटी डी पुरंदेश्वरी जैसे नाम भी रेस में हैं।

सामूहिक विचार और सर्वसम्मति के आधार पर फैसला

भाजपा में अध्यक्ष पद के चयन के इतिहास को देखें तो अध्यक्ष का चुनाव सामूहिक विचार करके सर्वसम्मति से करने का दिखा है। इसलिए पिछले क़रीब 45 साल में किसी अध्यक्ष के लिए वोटिंग नहीं हुई है। कोशिश होती है कि बीजेपी के लोग और संघ के लोग आपस में विचार विमर्श कर लें। पार्टी की ज़रूरत को ध्यान में रखकर अध्यक्ष चयनित हो। ऐसे में चर्चा यही उठ रही है कि अगर किसी नाम पर अबतक सहमति नहीं बन पाने से ही देरी हो रही है। ऐसा नहीं है कि सहमति के लिए कई स्तरों पर कई लोगों से बात की जानी हो। बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री और दूसरे साझेदार के तौरपर आरएसएस को माना जाता है जिसे अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनानी होगी। संभव है कि आरएसएस और बीजेपी किसी एक नाम या एक बिंदु पर सहमत नहीं हो पा रही हो और इसकी वजह से पार्टी अध्यक्ष चुनने में देरी हो रही है।

2029 का आम चुनाव चुनौती

सियासी चर्चा यह भी है कि भाजपा और आरएसएस के बीच कहीं न कहीं अंदर से एक खींचतान की स्थिति है। आरएसएस नहीं चाहता है कि कोई व्यक्ति संगठन से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो। इसलिए उसकी ओर से कोशिश है कि कोई ऐसा चेहरा हो जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच मज़बूती से काम कर सके। जबकि मोदी और शाह की मंशा को समझा जाए तो नया अध्यक्ष उन्हीं की राय और सोच का हो। बीजेपी में नेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनमें कोई आम राय नहीं बन पाई है। हालांकि ये सब केवल कयास हैं, इसका कोई प्रमाण नहीं है। खैर, इतना तो तय है कि बीजेपी के लिए उसका नया अध्यक्ष बहुत महत्वपूर्ण होगा। उसकी कप्तानी में ही साल 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारी करनी होगी। इससे पहले डिलिमिटेशन और लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में महिला आरक्षण की वजह से जो बदलाव आना है। उसका भी ध्यान रखना होगा। इन सबके बीच बीजेपी के लिए साल 2027 में उत्तर प्रदेश में होनेवाला विधानसभा चुनाव भी काफ़ी महत्वपूर्ण होगा। ख़ासकर साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जो नुक़सान हुआ है। उसकी भरपाई करना भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। जाति जनगणना और कास्ट पॉलिटिक्स का मुद्दा भी भाजपा के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. इस राजनीतिक हक़ीक़त का जवाब भी पार्टी को तलाशना है।

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