संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से प्रारम्भ हो रहा है। सदन में चलने वाली तमाम चर्चाओं और कार्रवाई में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग की चर्चा और कार्रवाई भी शामिल होगी। जस्टिस शेखर यादव के विरुद्ध महाभियोग की नोटिस दिसम्बर 2024 में ही राज्यसभा सभापति को दी जा चुकी है जो प्रक्रियाधीन है। जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में सांसदों की पहल पर सरकार सक्रिय है। विपक्षी दल कांग्रेस सहित अधिकांश दल महाभियोग लाये जाने और सदन में समर्थन देने की औपचारिक सहमति दे चुके है। माना जा रहा है कि जस्टिस वर्मा के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा में लाया जायेगा। एक ही उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग लाये जाने का मामला अलग-अलग हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज जस्टिस शेखर कुमार यादव पर विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में हेट स्पीच दिये जाने का आरोप है। 8 दिसम्बर 2024 को विहिप के विधि प्रकोष्ठ द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लाइब्रेरी हाल में आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव,जस्टिस दिनेश पाठक सहित तमाम लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम में वक्फ बोर्ड़ अधिनियम, समान नागरिक संहिता- एक संवैधानिक अनिवार्यता और धर्मांतरण- कारण और निदान जैसे विषयों पर वक्ताओं ने अपनी राय रखी। समान नागरिक संहिता़- एक संवैधानिक अनिवार्यता विषय पर जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा कि देश एक है, संविधान एक है तो कानून एक क्यों नहीं है? इसी क्रम में उन्होंने कहा कि हिन्दूस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है।
अपने भाषण में कहा कि ’कठमुल्ला’ शब्द गलत है लेकिन कहने में गुरेज नहीं है कि वो देश के लिये घातक है। जनता को बहकाने वाले लोग हैं। देश आगे न बढ़े इस प्रकार के लोग हैं, उनसे सावधान रहने की आवश्यकता है। जस्टिस यादव ने श्री राम मंदिर का भी जिक्र किया और श्रीराम मन्दिर को हिन्दू समाज की एक बड़ी उपलब्धि बताया। जस्टिस यादव के इस बयान पर सोशल मीडिया पर नेता वकील और नामधारी बुद्धिजीवियों ने खूब हल्ला मचाया जबकि जस्टिस यादव ने कहा कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है।
जस्टिस शेखर कुमार यादव के भाषण से नाराज विपक्ष के 55 राज्यसभा सांसदों द्वारा 13 दिसम्बर 2024 को राज्यसभा के सभापति को महाभियोग चलाने के लिये नोटिस दी गयी है। सभापति द्वारा प्रक्रिया के तहत पत्र हुये हस्ताक्षर का मिलान कराया जा रहा है लेकिन बताया जा रहा है कि कुछ सदस्यों के हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे है। एक सदस्य सरफराज अहमद के हस्ताक्षर दो स्थानांे पर हैं तथा तीन सांसदों के हस्ताक्षर की पहचान अभी तक नहीं हो पायी है। हस्ताक्षर सत्यापन हेतु सभापति द्वारा कई बार अपील भी की गई है। महाभियोग की नोटिस को 6 माह से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है लेकिन मामला अभी प्रक्रियाधीन है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या मानसून सत्र में इस नोटिस पर कोई कार्रवाई होगी या मामला अभी आगे भी लटका रहेगा। इस प्रकार की नोटिस पर कार्रवाई के लिये कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर 14 मार्च कीे रात्रि में आग लगी थी। आग बुझाने के बाद दमकल कर्मियों और पुलिस को बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश दिखा। मामला पुलिस के बाद मीडिया में पहुंचा तो सुर्खियों में आ गया। 22 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिये तीन जजों की जांच समिति का गठन किया। समिति के अध्यक्ष पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सदस्य थे। जांच समिति ने 4 मई को अपनी जांच रिर्पोट तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को सौंप दी। समिति ने जांच में जस्टिस वर्मा को दुराचरण का दोषी माना। 8 मई को मुख्य न्यायाधीश ने जांच रिर्पोट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अग्रिम कार्रवाई हेतु भेज दिया है। इसी घटनाक्रम के बीच जस्टिस यशवंत वर्मा को दिल्ली उच्च नयायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया है। इसी जांच रिर्पोट के आधार पर जस्टिस वर्मा को पद से हटाये जाने की चर्चा चल रही है।
जस्टिस यशवंत वर्मा के विरुद्ध सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाये जाने की तैयारी है,ऐसा सरकार के मंत्रियों और तमाम प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों के बयान से स्पष्ट हो रहा है। केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाना पूरी तरह सांसदों का विषय है सरकार इसमें शामिल नहीं है यद्यपि उन्होंने यह भी कहा कि संसद को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जस्टिस को हटाने का अधिकार है। संसदीय मामलों के केन्द्रीय मंत्री किरेन रिजिजू का कहना है कि सरकार प्रस्ताव लाने के लिये जल्द ही सांसदों के हस्ताक्षर लेने का अभियान शुरू करेगी। रिजिजू के अनुसार अधिकांश मुख्य राजनीतिक दलों ने सैद्धातिक तौर पर प्रस्ताव का समर्थन करने का आश्वासन दिया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि उनके सांसद इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करेंगे तथा सदन में मतदान में हिस्सा भी लेगें।
भारत के राष्ट्रपति स्ंाविधान के अनुच्छेद 124 में सर्वोच्च न्यायालय और 218 में उच्च न्यायालय के जजों को ’सिद्ध दुव्र्यवहार’ या ’अक्षमता’ के आधार पर पद से हटा सकते है। इसे ही महाभियोग कहा जाता है। संविधान में सिद्ध दुव्र्यवहार या अक्षमता को परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन न्यायालय समय≤ पर इसे परिभाषित करता आ रहा है। जजों को पद से हटाने की प्रक्रिया न्यायाधीश (जांच) अधिनियम 1968 में दी गई है। महाभियोग की नोटिस सांसदों की ओर से दी जाती है। लोकसभा में नोटिस के लिये 100 और राज्यसभा के लिये 50 सांसदों के हस्ताक्षर आवश्यक है। इसके बाद लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के सभापति उस पर निर्णय लेते है।
यदि नोटिस स्वीकार कर ली गई है तो मामले की जांच के लिये तीन सदस्यों की एक समिति गठित की जाती है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के एक-एक जज और एक विधिवेत्ता शामिल होते है। यह समिति जज पर लगे आरोपों की जांच करती है। संबंधित जस्टिस को अपनी बात कहने का अवसर दिया जाता है। जांच समिति अपनी रिर्पोट सदन के अध्यक्ष अथवा सभापति को सौंपती है। यदि जांच रिर्पोट में जज दोषी पाये गये गये तो उस रिर्पोट को सदन के पटल पर रख कर मतदान कराया जाता है। महाभियोग पारित होने के लिये दोनों सदनों में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई सदस्यों का पक्ष में होना आवश्यक है। संसद से पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है जहां से उस जज को हटाने का आदेश जारी हो जाता है। यदि संबंधित जस्टिस प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले त्यागपत्र दे देता है तो जांच कार्य स्वतः रुक जाता है।
इसी बीच जस्टिस वर्मा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित जांच समिति की आंतरिक जांच रिर्पोट को अमान्य घोषित किये जाने की मांग की गई है। जस्टिस वर्मा ने कहा है कि जांच समिति ने एक बार भी ठीक तरीके से उन्हें अपना पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी। पूर्व निर्धारित सोच के आधार पर काम किया गया और फिर निष्कर्ष भी निकाल दिया गया। जस्टिस वर्मा के अनुसार इस बात की जांच की जानी चाहिये थी कि वह कैश किसका है लेकिन समिति ने सही जांच के बजाय उनसे कहा कि वे इस बात को साबित करें कि नगदी उनकी नहीं है।
अब इन दोनों मामलों में क्या होगा, यह संसद का सत्र शुरू होने के बाद ही पता चल पायेगा लेकिन आजादी के बाद से आज तक किसी जस्टिस को महाभियोग के द्वारा नहीं हटाया जा सका है।
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