Israel-Iran conflict Crude oil prices : इजरायल ने 13 जून 2025 को ईरानी परमाणु स्थलों पर हमला किया था। ईरान और इजरायल सैन्य संघर्ष के बीच अमेरिकी ने ईरान में तीन स्थलों पर जोरदार हमला किया। इससे अब वैश्विक स्थितियां और अधिक तनावपूर्ण हो गयी हैं। ऐसे में यदि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि होती है तो इसका परिणाम पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को भुगतना पड़ सकता है। अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में इस समय है। परन्तु यदि कच्चे तेल की कीमतों में तेज वृद्धि होती है तो मुद्रा स्फीति बढ़ेगी और इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर बुरा होगा।
इजरायल-ईरान संघर्ष के बढ़ने से कच्चे तेल की आपूर्ति में कमी आने का डर है। इससे होर्मुज जलडमरूमध्य सहित स्वेज नहर और बाब अल मंडाब जैसे प्रमुख शिपिंग मार्ग भी प्रभावित हो सकते हैं। होर्मुज जलडमरूमध्य में किसी भी तरह की बाधा या बंद होने से कच्चे तेल और एलएनजी की कीमतों में असाधारण उछाल आ सकता है, शिपिंग लागत बढ़ सकती है और आपूर्ति में देरी हो सकती है। भारत एक अत्यधिक कीमत -संवेदनशील बाजार है क्योंकि देश अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का लगभग 90 प्रतिशत आयात करता है। कच्चे तेल की आपूर्ति में सीमित व्यवधान भी भारत के रिफाइनरी उत्पादन, ईंधन कीमत निर्धारण और व्यापक आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।
Israel-Iran conflict Crude oil prices : होर्मुज जलडमरूमध्य मार्ग की अहमियत
ईरान और ओमान के बीच स्थित होर्मुज जलडमरूमध्य केवल 33 किमी चौड़ा एक संकीर्ण लेकिन रणनीतिक व्यापार मार्ग है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी से जोड़ता है और अरब सागर तक फैला हुआ है। यह मध्य पूर्व के प्रमुख कच्चे तेल उत्पादकों को दुनिया भर के प्रमुख बाज़ारों, विशेष रूप से एशिया से जोड़ता है।कुल वैश्विक कच्चे तेल उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत इसी मार्ग से होकर गुजरता है। वैश्विक एलएनजी व्यापार के लगभग एक चौथाई हिस्से का व्यापार भी इसी मार्ग से होता है।
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश भारत, विदेशों से लगभग 5.1 मिलियन बैरल कच्चा तेल खरीदता है, जिसे रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन में परिवर्तित किया जाता है। इस समय भारत अपनी कच्चे तेल की आवश्यकता का लगभग 40 प्रतिशत रूस से, 40 प्रतिशत मध्य पूर्व के देशों (सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और कतर) से, और शेष 20 प्रतिशत अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीकी देशों तथा अन्य आपूर्तिकर्ताओं से आयात करता है। मध्य पूर्व से आयातित लगभग 40 प्रतिशत तेल होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
हालांकि, इसकी संभावना कम है कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से कच्चे तेल की आपूर्ति को बाधित करेगा। इस क्षेत्र में पहले के युद्धों के दौरान होर्मुज जलडमरूमध्य को कभी भी अवरुद्ध नहीं किया गया है। अमेरिका और पश्चिमी देश ऐसे किसी भी व्यवधान के खिलाफ सख्त कदम उठा सकते हैं, क्योंकि इससे वैश्विक तेल और गैस की कीमतों और इसलिए मुद्रास्फीति के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। फिर 2019 के प्रतिबंधों के बाद से ईरान के तेल का सबसे अधिक निर्यात चीन को होता है, चीन नहीं चाहेगा कि उसका तेल आयात बंद हो। इसके अलावा, ईरान की तेल निर्यात के लिए खरग द्वीप (जिससे वह 96 प्रतिशत निर्यात करता है) के माध्यम से होर्मुज पर निर्भरता बहुत अधिक है। इसके अतिरिक्त, ईरान ने हाल के वर्षों में सऊदी अरब और यूएई सहित प्रमुख क्षेत्रीय देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयास किए हैं, और ये देश निर्यात के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य पर बहुत अधिक निर्भर हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप से इजरायल की कार्रवाइयों की आलोचना की है। होर्मुज बंद होने से ईरान को कूटनीतिक रूप से नुकसान होगा। ईरान कुल वैश्विक तेल उत्पादन का लगभग 3 प्रतिशत उत्पादन करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ईरानी तेल निर्यात में आपूर्ति व्यवधान से कच्चे तेल की कीमतों में काम से काम 5-10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हो सकती है।
Israel-Iran conflict Crude oil prices : भारत की तैयारी
भारत, जो पारंपरिक रूप से मध्य पूर्व से अपना तेल प्राप्त करता रहा है, ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के तुरंत बाद रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात करना शुरू कर दिया। इसका मुख्य कारण यह था कि पश्चिमी प्रतिबंधों और कुछ यूरोपीय देशों द्वारा खरीद से परहेज करने के कारण रूसी तेल अन्य अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क की तुलना में काफी छूट पर उपलब्ध था। इसके कारण भारत के रूसी तेल के आयात में नाटकीय वृद्धि देखी गई, जो कि उसके कुल कच्चे तेल के आयात के 1 प्रतिशत से भी कम था, बहुत कम अवधि में 40-44 प्रतिशत तक बढ़ गया। मध्य पूर्व के तनाव को देखते हुए भारत पहले से तेल की आपूर्ति और कीमतों को लेकर सतर्क है। भारतीय तेल रिफाइनर कंपनियों ने आने वाले तीन महीनों के लिए कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए समझौता कर रखा है, जबकि देश आपातकालीन स्थितियों के लिए पर्याप्त रणनीतिक तेल भंडार भी बनाए रखता है।
पिछले दो वर्षों में भारत की आयात रणनीति में उल्लेखनीय बदलाव आया है। भारत रूस से कच्चे तेल का आयात स्वेज नहर, केप ऑफ गुड होप या प्रशांत महासागर के माध्यम से करता है। यदि संघर्ष गहराता है या होर्मुज में कोई अल्पकालिक व्यवधान होता है, तो भारत रूस से आयात और बढ़ा देगा जिससे तेल की उपलब्धता और उसकी कीमत दोनों में राहत मिलेगी। भारत अधिक परिवहन और बीमा लागत के बावजूद अमेरिका, नाइजीरिया, अंगोला और ब्राजील से आयात बढ़ा कर सकता है। साथ ही, भारत किसी भी कमी को पूरा करने के लिए अपने तेल के रिजर्व रणनीतिक भंडार का उपयोग कर सकता है।
भारत ने रूस से तेल की आपूर्ति बढ़ाई, वहीं जून में अमेरिका, कोलंबिया और अर्जेंटीना जैसे देशों से भी आयात बढ़ा। हालांकि, यूएई, कतर, ओमान और कुवैत से तेल आयात अब तक सामान्य रहा है, जो सऊदी अरब और इराक के विपरीत होर्मुज जलडमरूमध्य के रास्ते भारत को तेल भेजते हैं। ईरान और इजरायल के बीच सैन्य संघर्ष के बीच भारत जून में मध्य पूर्व से तेल की आपूर्ति संबंधी जोखिमों को कम करने के लिए रूस और अमेरिका से अधिक तेल खरीद रहा हैं। वैश्विक व्यापार विश्लेषण फर्म केपलर के अनुसार जून में सऊदी अरब और इराक से आयात में गिरावट आई है। मध्य पूर्व से आयात का जून माह का अनुमान लगभग 2 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) है, जो पिछले महीने की खरीद से कम है।मई में भारत का रूस से तेल आयात 1.96 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) था जोकि बढकर जून में 2-2.2 मिलियन बैरल प्रति दिन हो सकता है- जो पिछले दो वर्षों में सबसे अधिक है और इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से खरीदी गई कुल मात्रा से भी अधिक है। संयुक्त राज्य अमेरिका से मई में भारत ने 265,000 बैरल तेल प्रति दिन आयात किया जो बढ़कर जून में 439,000 बीपीडी हो गया, जो लगभग 66 प्रतिशत की बड़ी वृद्धि है।
20 जून को वाणिज्य सचिव की अध्यक्षता में शिपिंग लाइनों और कंटेनर फर्मों के साथ एक बैठक में भारत के व्यापार पर ईरान-इजरायल संघर्ष के प्रभाव का आकलन किया गया था। बैठक में सरकार ने शिपिंग कंपनियों से वैकल्पिक मार्गों की तलाश करने को कहा था, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते संघर्ष से होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से व्यापार बाधित हो सकता है।
Israel-Iran conflict Crude oil prices : भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना प्रभाव!
इसराइल और ईरान में युद्ध भड़कने के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। कच्चे तेल की औसत कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से वर्ष के दौरान भारत के शुद्ध तेल आयात में 13-14 बिलियन डॉलर की वृद्धि होगी, और चालू खाता घाटा देश के सकल घरेलू उत्पाद का 0.3 प्रतिशत बढ़ेगा। यदि वित्त वर्ष 2025-26 में कच्चे तेल की औसत कीमत बढ़कर 80-90 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है, तो चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 1.2-1.3 प्रतिशत के अपने वर्तमान अनुमान से बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 1.5-1.6 प्रतिशत हो सकता है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से थोक मुद्रास्फीति 80-100 बीपीएस तक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में 20-30 बीपीएस की वृद्धि होगी। स्पष्ट है कि इससे भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हो सकती है। इससे भारतीय उद्योग जगत के लाभ पर असर होगा और वित्त वर्ष के लिए हमारे आर्थिक वृद्धि के अनुमानों में गिरावट हो सकती है,यह तब लगभग 6.2 प्रतिशत पर आ सकती है। परंतु जब तक तेल का भाव 80-85 डॉलर से कम है, बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है, यहां तक की वृद्धि अर्थव्यवस्था झेल सकने की स्थिति में है। लेकिन इससे अधिक बढ़ने तेल कीमतें बढ़ने पर अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा। वैसे खराब से खराब स्थिति में भी भारत में आर्थिक समृद्धि की दर इस वित्तीय वर्ष में भी 6 से 6.5 प्रतिशत तक बनी रहेगी।
प्रमुख तेल उत्पादक देशों के बीच चल रहे लम्बे संघर्षों के बावजूद, वैश्विक तेल की कीमतें आश्चर्यजनक रूप से कम बनी हुई हैं। कच्चे तेल की आपूर्ति, मांग और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में तीव्र संरचनात्मक बदलाव तेल और ऊर्जा क्षेत्र के भविष्य को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी को उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में तेल की आपूर्ति मांग से ज़्यादा होगी। सऊदी अरब और अमेरिका कच्चे तेल की अधिक आपूर्ति करेंगे। दूसरे चीन की तेल की मांग में कमी आने की उम्मीद है, क्यूंकि वह बड़े पैमाने पर वैकल्पिक स्रोतों पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है। जबकि भारत सबसे बड़ा कच्चे तेल का खरीददार और मांगकर्ता होगा, कम तेल की कीमतों से भारत जैसी तेल आयात करने वाली अर्थव्यवस्थाओं को फ़ायदा होगा।
परन्तु यदि युद्ध की तीव्रता और व्यापकता बढ़ती है, युद्ध लम्बा खींचता है, होर्मुज जलडमरूमध्य बंद होता है और वहां संघर्ष की स्थिति आती है तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी होगी। कच्चे तेल की कीमतों में तेज वृद्धि स्फीति को बढ़ाएगी, मांग और खपत प्रभावित होगी, निर्यात कम होगा, संवृद्धि घटेगी। वैसे यह युद्ध लम्बा नहीं खींचना चाहिए; क्यूंकि आज आर्थिक हित प्रबल हैं। तो फिर, कुल मिलाकर, भारत पर इसका प्रभाव अल्पकालिक ही होगा, बशर्ते इसमें दूसरे और देश शामिल ना हो जाएं, जिसकी संभावना कम दिखती है।
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