Etawah Kand : समाजवादी पार्टी का आन्दोलन टांय-टांय फिस्स

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Etawah Kand : पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद में कथावाचकों के साथ अभद्रता और उत्पीड़न की घटना को लेकर प्रदेश के विपक्षी दल विशेष रूप से समाजवादी पार्टी मुखर है। वह कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर भाजपा सरकार पर हमलावर दिख रही है लेकिन उसके पीछे की सियासत प्रदेश में जातीय उन्माद भड़का कर अपने पीड़ीए वोट बैंक को मजबूती प्रदान करने की है, जो फिलहाल सफल होता नहीं दिखायी पड़ रही है।

Etawah Kand : समाजवादी पार्टी का आन्दोलन टांय-टांय फिस्स

Etawah Kand : इटावा के बकेवर थाना क्षेत्र के दांदरपुर गांव में सार्वजनिक सहयोग से 21 जून सेे भागवत कथा का आयोजन किया गया था। कथा के पहले ही दिन रात्रि में जाति छिपाने का आरोप लगाकर भागवताचार्य मुकुट मणि सिंह यादव, संत सिंह यादव सहित उनके सहयोगियों को ब्राम्हण समाज के लोगों द्वारा मारपीट कर बाल मुड़वा दिया गया। कथा की यजमान महिला के पैर पर सिर रखकर माफी मंगवायी गई। कथा के तमाम साजो-सामान को तोड़ दिया गया। घटना के एक दिन बाद इटावा के सपा सांसद कथा वाचकों के साथ एसएसपी से मिले तो पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुये नामजद चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। यद्यपि बाद में कथावाचकों पर भी जाति छिपाने और फर्जी आधार कार्ड़ रखनेे के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। 

Etawah Kand : सपा ने भड़काया जातीय उन्माद

कानून व्यवस्था से जुड़े इस मामले में इटावा से लखनऊ तक पुलिस अपने एक्शन मोड में है लेकिन मामला संज्ञान में आने के बाद से ही प्रदेश की समाजवादी पार्टी इसे पिछड़ों पर ब्राह्मण या सवर्ण के अत्याचार के रूप में प्रचारित कर रही है। यद्यपि पार्टी के मुखिया खुले तौर पर सवर्ण कहने के बजाय इसे प्रभुत्ववादी और वर्चस्ववादी का अत्याचार बता रहें हैं, जिन्हें सरकार का समर्थन हासिल है। प्रकरण से जुड़े घटनाक्रम को देखें तो ऐसा प्रतीत होता है कि समाजवादी पार्टी एक सुनियोजित तरीके से मामले को जानबूझ कर जातीय उन्माद की ओर ले जाना चाह रही है। 23 जून को इटावा के सपा सांसद जितेन्द्र दोहरे पीड़ित कथावाचक तथा उसके सहयोगियों को लेकर इटावा एसएसपी से मिलते हैं। तत्काल चार नामजद और 50 अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया जाता है। पुलिस चार आरोपियों को गिरफ्तार करती है। उसी दिन सपा प्रमुख द्वारा कथावाचक तथा उसके सहयोगियों को लखनऊ बुलाया जाता है। सभी पीड़ितों को 21-21 हजार रूपये देकर सम्मानित किया जाता है। उनको  नये साजो-सामान दिये जाते हैं। इतना ही नहीं आगे सभी को 51-51 हजार रूपये देने का वादा किया जाता है। 

प्रदेश की कानून व्यवस्था पर हमलावर सपा प्रमुख और पार्टी के अन्य नेताओं के  बयानों और कथावाचकों पर एफआईआर के बाद सपा से जुड़े गगन यादव, जो ’’इंडियन रिफॅार्मर्स आर्गेनाइजेशन’’ के संस्थापक और अध्यक्ष हैं, द्वारा अहीर रेजीमेंट से जुड़े लोगों से 26 जून को बकेवर थाना और दांदरपुर गांव में एकत्र होने की अपील की जाती है। अहीर रेजीमेंट और यादव महासभा के हजारों कार्यकर्ता बकेवर थाने का घेराव करके कथावाचकों पर दर्ज मुकदमें वापस लिये जाने का दबाव बनाते हैं। भीड़ को वहां से हटाया गया तो आगरा हाइवे पर जाम लगा दिया गया। उन्मादी भीड़ ने दांदरपुर गांव में घुसने का प्रयास किया। पुलिस द्वारा रोके जाने पर भीड़ ने हिसंक रूप लिया जिससे पुलिस की गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुईं,कुछ कर्मियों को भी चोटें आयी। सपा अब आगे आन्दोलन की रूपरेखा तैयार कर रही है।

Etawah Kand : पीडीए समीकरण की मजबूती

मात्र चार दिनों के अंदर समाजवादी पार्टी ने जिस प्रकार झूठ, फरेब और अभद्रता की  घटना को जातीय स्वरूप देकर राज्यव्यापी बनाया उसके पीछे सिर्फ एक कारण है, पीडीए समीकरण को मजबूत बनाना। 2017 से लगातार सत्ता से बाहर चल रहे अखिलेश यादव जोड़-तोड़ के समीकरण बनाते है लेकिन वह चुनाव आते ही बिगड़ जाता है। इस बार भी सपा की रणनीति मामले को यादव बनाम ब्राह्मण का रूप देकर जातीय उन्माद फैलाना है। उन्हें पता है कि यह जातीय संघर्ष जितना विस्तार लेगा उतना ही पीड़ीए समीकरण मजबूत होगा। इतना ही नहीं इस मामले में दलितों को भी जोड़ने का प्रयास हो रहा है। यद्यपि दलितों का इससे कोई लेना देना नहीं है लेकिन सपा के नेता कह रहे हैं कि अब तक वर्चस्ववादी जो काम दलितों के साथ कर रहे थे वही अब पिछड़ों के साथ हो रहा है अर्थात पिछड़ों के साथ दलितों को भी साधने का प्रयास है। पार्टी का प्रयास है कि दलितों और पिछड़ों विशेष कर यादवों के बीच जो दूरी है उसको इसी बहाने कम किया जाय। इससे आने वाले चुनाव में सपा मतबूत और बसपा कमजोर होगी। 

Etawah Kand : परदे के पीछे 2027 का चुनाव 

इस मामले को 2027 में होने वाले प्रदेश विधान सभा के चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सत्ता से दूर विपक्षी दल अभी से ही अपने-अपने समीकरण साधने में जुटे हुये है। सत्ता की दावेदार सपा मुख्यरूप से ओबीसी वोट के ध्रुवीकरण में लगी है जिस पर अभी तक सपा और एनडीए की बराबर पकड़ है। प्रदेश में सपा यादवों की पार्टी के रूप में जानी जाती है जिनके मतों की संख्या लगभग 10 प्रतिशत है। पिछले चुनाव विश्लेषण बताते हैं कि 2017 में 68 प्रतिशत और 2022 में 83 प्रतिशत यादवों ने सपा को वोट दिया है लेकिन भाजपा भी क्रमशः 10 और 12 प्रतिशत यादवों के मत प्राप्त करने में सफल रही है। दूसरी ओर प्रदेश में ब्राह्मण मतों की संख्या भी यादव मतों के बराबर यानि 10 प्रतिशत है लेकिन उनमें से 2017 में 83 प्रतिशत और 2022 में 89 प्रतिशत वोट भाजपा को मिले जबकि सपा को क्रमशः 7 और 6 प्रतिशत मत मिले।

सपा 2017 से ही ब्राह्मण मतों में सेंध लगाने का प्रयास कर रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में सपा प्रमुख ने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया। वह योगी सरकार पर लगातार ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा रही है। अब इस मामले में सपा के सामने एक ओर अपने पिछड़े वोट बैंक को मजबूत बनाने की चुनौती है तो दूसरी ओर ब्राह्मण को नाराज होने से बचाना है। यही कारण है कि अखिलेश यादव अपने बयान में ब्राम्हण के बजाय वर्चस्ववादी शब्द का प्रयोग कर रहे है। 

कथावाचकों के प्रकरण में प्रशासन के साथ ब्राह्मण महासभा जैसे संगठनों के सक्रिय होने के बाद सपा न्याय के लिये संघर्ष की बात तो कर रही है लेकिन लग रहा है कि वह अब बैकफुट पर जा रही है क्योंकि उसे अब लग रहा है कि यदि मामले को हवा दी गई तो अब तक शांत बैठी भाजपा के साथ तमाम सवर्ण संगठन भी सामने आयेंगे और यह संघर्ष एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा। जातीय संगठनों के सक्रिय होने से सपा को  सवर्ण जातियों के वोट बैंक खिसकने का डर सताने लगा है।

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