संसद में बेदम साबित होते विपक्ष के दावे

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संसद का मानसून सत्र प्रारम्भिक दिनों से ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिये चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। दोनों पक्ष अपने-अपने मुद्दों के माध्यम से एक दूसरे को घेर कर जनता के बीच अपनी सार्थकता साबित करने में लगे है। यद्यपि अभी तक दोनों पक्षों के सवाल जबाब में कोई नया मुद्दा या तथ्य सामने नहीं आया है बल्कि एक दूसरे पर गम्भीर आरोप प्रत्यारोप जरूर लगाये जा रहे है।

संसद में बेदम साबित होते विपक्ष के दावे

संसद का मानसून सत्र शुरू होने से एक दिन पहले 20 जुलाई को संसद भवन एनेक्सी में एक सर्वदलीय बैठक राज्यसभा के नेता जेपी नड्डा की अघ्यक्षता में आहूत की गई थी। इस बैठक में भाजपा एवं राजग के साथ कांग्रेस सहित सभी विपक्ष दलों के वरिष्ठ सांसद उपस्थित थे। इस बैठक के आयोजन का उद्देश्य आम सहमति से संसद की कार्रवाई का सुचारू रूप से संचालन था। बैठक के बाद लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि  पहलगाम में आतंकी हमला, आपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के मध्यस्थता का दावा, बिहार में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण और मणिपुर में हिंसा जैसे अहम मुद्दों पर सदन में चर्चा और इन मुद्दों पर प्रधानमंत्री को जबाब देना चाहिये। संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू ने स्पष्ट किया कि नियम और परम्परा के अनुसार अहम मुद््दांे पर चर्चा और जवाब के लिये वह तैयार है। बैठक के अगले ही दिन जब संसद का सत्र शुरू हुआ तो आम सहमति का दूर दूर तक नामोंनिशान नहीं था। 


स्ंासद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त तक है इस बीच कुल 21 सत्र आयोजित किये जायेगें। सत्र का पहला सप्ताह तो विपक्षी सदस्यों द्वारा पहलगाम हमला, आपरेशन सिंदूर, ट्रंप के मध्यस्थता के दावे और बिहार में मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण जैसे मुद्दे पर तत्काल चर्चा को लेकर किये गये विरोध और हंगामे के चलते बर्बाद हो गया। यद्यपि सरकार समय पर उन मुद्दों पर चर्चा की बात करती रही लेकिन विपक्ष अपनी जिद्द पर अड़ा रहा। सवाल उठ रहा है कि आखिर जब सरकार सर्वदलीय बैठक और उसके बाद सदन में बार बार उन सभी मुद्दों पर चर्चा की बात कर रही थी तो विपक्षी सदस्य इतने उग्र क्यों  दिखे? हाथों में लहराती तख्तियां, नारेबाजी, पीठ के सामने जाकर होहल्ला, कामकाज में बाधा, वह भी दोनों सदनों में एक साथ। क्या यह किसी रणनीति के तहत किया गया ताकि देश में संदेश जाय कि सरकार अहम मुद्दों पर चर्चा से भाग रही है, विपक्ष सरकार पर भारी पड़ रहा है जबकि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अरोप-प्रत्यारोप का सच अब जनता भी जान रही है। 

पहलगाम आतंकी हमला और आपरेशन सिंदूर
    

सदन प्रारम्भ होते ही विपक्ष के सदस्यों ने आपरेशन सिंदूर पर तत्काल चर्चा कराये जाने के लिये सरकार पर हमला बोला जबकि सर्वविदित है कि आपरेशन सिंदूर के प्रारम्भ होने के बाद सरकार की ओर से लगातार सभी महत्वपूर्ण सूचनायें देश के सामने रखी गईं। आपरेशन सिंदूर में न केवल पाक स्थित आतंकी ठिकाने नष्ट किये गये अपितु पाक के तमाम सैन्य ठिकाने और एयरबेस भी तबाह कर दिये गये। पिछली बार एयर स्ट्राइ्रक का सबूत मागने वाले कांग्रेसी नेताओं के लिये सरकार ने इस बार कार्रवाई का वीडियो भी जारी किया।  भारत की कार्रवाई से सैन्य ठिकानों को हुये नुकसान को अब पाक खुद भी स्वीकार कर रहा है। 

ट्रंप के मध्यस्थता का दावा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत-पाक संघर्ष विराम कराने में मध्यस्थता के दावे को लेकर राहुल गांधी ने सरकार को घेरा और इस पर बयान देने की चुनौती दी। यद्यपि सरकार पहले ही दिन से ट्रंप के दावे को खारिज करती आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के  मध्यस्थता वाले आरोप पर लोकसभा में कहा कि दुनिया के किसी भी देश ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने के लिये नहीं कहा। इससे पहले सदन में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि संघर्ष विराम किसी दबाव या मध्यस्थता के कारण नहीं अपितु पाकिस्तानी डीजीएमओ की पहल पर बनी सहमति पर किया गया। भारत ने अपने फैसले खुद लिये और किसी भी विदेशी मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि 22 अप्रैल से 17 जून के बीच प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच कोई फोन काल नहीं हुई है परन्तु विपक्ष संतुष्ट नहीं हो रहा है।

आवश्यक नहीं ट्रंप का नाम लेना

सरकार की ओर से ट्रंप के दावे को खारिज किये जाने के बाद भी विपक्ष चाहता है कि प्रधानमंत्री मोदी सपाट शब्दों में कहें कि राष्ट्रपति ट्रंप झूठ बोल रहे है। विपक्ष की इस मांग पर राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि राजनीति में ऐसा नहीं होता है कि किसी नेता का नाम लेकर सरकार बयान दे और ट्रंप तो दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति है। सरकार की ओर से कभी चीन का भी नाम नहीं लिया जबकि चीन पाक के समर्थन में खुलकर सामने था। समीक्षक मानते है कि ऐसा करने से कोई लाभ तो नहीं होगा लेकिन वैश्विक पटल पर भारत के समक्ष कई नई समस्यायें खड़ी हो सकती है लेकिन विपक्ष इसे समझने के लिये तैयार नहीं है।

फाइटर जेट का नुकसान
    

आपरेशन सिंदूर के स्थगन के बाद से ही सेना और सरकार से सवाल हो रहा है कि भारत के कितने फाइटर जेट मार गिराये गये क्योंकि पाकिस्तान पांच लड़ाकू विमान मार गिराने का दावा करता है। सेना ने माना है कि भारत को कुछ नुकसान पहुंचा है। सरकार का कहना है कि यह सवाल राष्ट्रीय भावना के अनुरूप नहीं है। रक्षा मंत्री ने यहां तक कहा कि परीक्षा में परिणाम देखा जाता है, कोई यह नहीं पूछता है कि कितने पेन और पेंसिल टूटे हैं। सरकार ने इतना जरूर स्पष्ट किया कि हमारे किसी सैनिक को नुकसान नहीं पहुंचा है। 

विपक्ष के बेतुके बयान
    

संसद में विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस के सवालों से सदन के बाहर भी लोग असहज हो रहे है। पूर्व गृहमंत्री और कांग्रेसी नेता  पी चिदंम्बरम का कहना कि पहलगाम आतंकी पाकिस्तान से आये थे इसके सबूत नहीं है। आगे कहा कि क्या पता वह आतंकवादी स्थानीय हो ? इसी प्रकार सदन में इस मुद्दे पर चर्चा के ठीक पहले सैन्य बलों ने जम्मू कश्मीर में तीन आतंकवादियों को मार गिराया जिसमें पहलगाम हमले का मास्टर माइंड़ सुलेमान भी शामिल था। सरकार ने इस बार उनकी पाकिस्तानी पहचान, पहलगाम हमले के समय उसकी उपस्थिति के पर्याप्त सबूत दिये तो सपा के सांसद रमाशंकर राजभर ने कहा कि आतंकवादियों को मारने के लिये सरकार आपरेशन सिंदूर पर चर्चा की प्रतीक्षा कर रही थी। यदि चर्चा पहले हुई होती तो आतंकी पहले ही मारे जा चुके होते। 

बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण

चुनाव आयोग द्वारा बिहार में कराये जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन परीक्षण (एसआइआर) को लेकर विपक्षी दल विशेष रूप से कांग्रेस एवं राजद का हंगामा जारी है। आरोप लगाये जा रहे है कि ऐसा राज्य में वचिंत वर्गो को मतदाता सूची से हटाने के लिये किया जा रहा है जिससे आगामी चुनाव में भाजपा गठबंधन को लाभ मिले जबकि सरकार की ओर स्पष्ट किया जा रहा है कि यह प्रक्रिया सूची से अवैध मतदाताओं को हटाने के लिये है और 2003 में भी यह अपनायी जा चुकी है। इसी बीच राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया और कहा कि जो लोग इसमें शामिल है उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा। राहुल गांधी के इस बयान पर आयोग ने भी कडी प्रतिक्रिया देते हुये कहा कि राहुल गांधी का बयान गैर जिम्मेदाराना और निराधार है। आयोग ने कहा कि वह राहुल गांधी की धमकियों से डरने वाले नहीं है। आयोग ने तो यह भी कहा कि उन्हें पत्र भेज कर मिलने के लिये बुलाया गया लेकिन वह नहीं आये। इस मामले की सुनवायी सर्वोच्च अदालत में भी चल रही है और अदालत ने कहा है कि यदि बड़े पैमाने पर नाम हटे तो वह दखल देगा। 
    

संक्षेप में कहा जाय तो संसद के मानसून सत्र में सत्ता पक्ष बहुत ही मजबूती से विपक्ष के आरोपों को दरकिनार कर आपरेशन सिंदूर की सफलता को देश के सामने रखा है जबकि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन परीक्षण के मुद्दे पर विपक्ष सरकार, स्वतंत्र संस्था चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय को दरकिनार कर सदन में हंगामा करके देश को क्या दिखाना चाहते है यह समझ से परे है।
 

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