ज्ञानवर्धन मिश्र
विधानसभा चुनाव के एलान के पूर्व बिहार में सियासी समर के लिए किलेबंदी शुरू हो गई है। दावे और वादों की बारिश हो रही है और सियासी बिसात पर मोहरे तय किये जा रहे हैं। एक-एक मोहरे पर ध्यान रखा जा रहा है कि कौन किसको मात देने में सक्षम है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच ही आमने-सामने की लड़ाई होगी, हालांकि मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए जन-सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, जानकारों का मानना है कि प्रशांत किशोर की जन-सुराज पार्टी कुछ विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित करने का दमखम जरूर रखती है, लेकिन फिलहाल अकेले अपने दम पर चुनाव जीतने का जनाधार उसके पास नहीं है। वहीं,एआईएमआईएम का प्रभाव सीमांचल के ही कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। ऐसे में यह तय है कि चुनावी दंगल में ज्यादातर सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवार ही एक-दूसरे को धूल चटाने के लिए ताल ठोंकते नजर आएंगे।
चुनाव के समय राजनीति के नये-नये रंग उभरने लगते हैं। कल तक अपने खेमे का सबसे आज्ञाकारी माने जाने वाले दल के शीर्ष नेता के भी तेवर बदल जाते हैं। आंखें झुकाकर बात करनेवाले की भृकुटी तन जाती है। सीटों के लिए मोल-तोल में तल्खी इतनी बढ़ जाती है कि कल तक आज्ञाकारी दिखनेवाला बागी बन जाता है। इसे ही सियासत में 'प्रेशर पॉलिटिक्स' कहा जाता है। बिहार के दोनों खेमों में प्रेशर पॉलिटिक्स चरम पर है। एनडीए में भाजपा और जेडीयू के बीच सीट शेयरिंग के लिए फिलवक्त कोई खींच-तान नहीं है, लेकिन लोजपा (आर) के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर एनडीए के अन्य घटक दलों के नेताओं की नींद उड़ा दी है। वैसे ही, महागठबंधन में भी वीआईपी के संस्थापक मुकेश सहनी ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोंककर अपना तेवर दिखा दिया है। हालांकि ये तेवर सीट शेयरिंग में कुछ अधिक सीटें झटकने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है। जिसका प्रेशर चुनावी सीटी बजते ही कम हो सकता है। वहीं, महत्वाकांक्षा और आत्मविश्वास से लबरेज कांग्रेस भी सीट शेयरिंग को लेकर पैंतरेबाजी कर सकती है। वैसे यह तय है कि महागठबंधन में राजद ही ड्राइविंग सीट पर रहेगा।
निश्चित तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव न तो एनडीए के लिए आसान है और न ही महागठबंधन के लिए। इसलिए दोनों गठबंधन अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर हथकंडे को अपना रहे हैं। एनडीए सत्ता में है, इसलिए सरकार हर तबके पर मेहरबान दिख रही है। नीतीश सरकार सभी को चुनावी रेवड़ियां बांट रही है। 125 यूनिट तक घरेलू खपत की बिजली माफ कर दी गयी। बुजुर्गों के पेंशन राशि में बढ़ोतरी की गयी। 'आशा' और स्कूल के रसोइयों का मानदेय बढ़ाया गया। 'ममता' की प्रोत्साहन राशि बढ़ायी गयी। पत्रकारों की पेंशन राशि में इजाफा किया गया। मतलब सभी को खुश कर सरकार ने 2025 चुनावी नतीजे में अपनी खुशी का पुख्ता इंतजाम कर लिया है। वहीं, महागठबंधन प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर को मुद्दा बनाने में जुटी है। लेकिन, देखा जाए तो विपक्षी दलों के नेताओं खासकर तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया के माध्यम से कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार पर बार-बार प्रहार किया है। हालांकि जनता पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिखता क्योंकि लोगों के जेहन में लालू राज के दौरान घटी घटनाएं ताजी हो उठती हैं।
एनडीए -125
पार्टी सीटें मत प्रतिशत
भाजपा : 74 19.46
जदयू : 43 15.39
हम (से) 04 .89
वीआईपी 04 1.52
(2020 विधानसभा चुनाव में वीआईपी एनडीए का घटक था।)
महागठबंधन -110
पार्टी सीटें मत प्रतिशत
राजद 75 23.11
कांग्रेस 19 9.48
माले 12 3.16
सीपीआई 02 .83
सीपीएम 02 .65
अन्य -08
पार्टी सीटें मत प्रतिशत
एआईएमआईएम 05 1.24
बीएसपी 01 1.49
लोजपा 01 5.66
निर्दलीय 01
एनडीए -130
भाजपा : 80
जदयू : 45
हम (से) 04
निर्दलीय 01
महागठबंधन -111
राजद - 77
कांग्रेस - 19
माले- 11
सीपीआई - 02
सीपीएम - 02
अन्य -02
एआईएमआईएम -01
निर्दलीय -01
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