India US Trade War: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क बढ़ाने की घोषणा के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को मृतप्राय बता रहे थे, तो उन्हें यह अनुमान नहीं रहा होगा कि सहज,सरल दिखने वाले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें सार्वजनिक मंच से खुली चुनौती देंगे और बताएंगे कि भारत “डेड इकोनामी” नहीं “दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती इकोनामी” है और चौथे स्थान से उछल कर तीसरे स्थान पर पहुंचने वाली है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 6 अगस्त को भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा करके पूरे विश्व को चौंका दिया। उससे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि यह शुल्क भारत पर इसलिए लगाया गया क्योंकि भारत रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखने के अपने फैसले पर दृढ़ दिखायी दिया, जबकि ट्रंप चाहते थे कि भारत तत्काल रूस से आगे तेल न खरीदे जाने का आश्वासन दे। दरअसल, ट्रंप ने जब 31 जुलाई को भारत पर 25 प्रतिशत शुल्क और रूस से कच्चा तेल और सैन्य उपकरण खरीदने पर जुर्माना लगाने की घोषणा की, तब उन्हें उम्मीद थी कि भारत डरकर रूस से कच्चे तेल का आयात रोक देगा, लेकिन भारत की ओर से दो टूक कहा गया कि भारत ने रूस के साथ लम्बे समय के लिए तेल खरीदने का करार किया है, ऐसे में एक रात में तेल की खरीददारी बंद कर देना सम्भव नहीं है। इसी के बाद बौखलाये ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाकर कुल शुल्क दर 50 प्रतिशत कर दिया। इस बढ़े हुए शुल्क के बाद एशिया में भारत अमेरिका को सर्वाधिक टैक्स देने वाला देश बन जाएगा। यह बढ़ा हुआ शुल्क 27 अगस्त से प्रभावी होगा।
डोनाल्ड ट्रंप के इस सनक भरे फैसले पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने स्वभाव के अनुरूप कई दिनों तक खामोश रहे और विपक्ष लगातार हमलावर बना हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री ने मौन व्रत धारण कर लिया है, उनकी दोस्ती ने देश को यह सिला दिया है तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मोदी की ट्रंप से दोस्ती के कारण यह दिन देखना पड़ रहा है। राहुल गांधी ने तो सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि देश की रक्षा नीति, विदेश नीति और आर्थिक नीति तबाह है। ट्रंप ने तो सच्चाई सामने रखी है। दूसरी ओर अमेरिकी मीडिया में ट्रंप द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था पर की गई टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा गया कि भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। इस बीच भारत सरकार की ओर से आयी प्रतिक्रिया ने ट्रंप के साथ ही तमाम विदेशी पर्यवेक्षकों को भी हैरान कर दिया, क्योंकि भारत ने ट्रंप के शुल्क को बर्दाश्त नही किया बल्कि बहुत ही कड़ी परन्तु संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अमेरिका के इस कदम को ’अनुचित’, ’अतार्किक’ और ’अविवेकपूर्ण’ बताया। भारत सरकार ने कहा कि यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिकी भी रूस से व्यापार कर रहे हैं। भारत की रिफाइनरियां आवश्यकता के अनुरूप बाजार आधारित कच्चे तेल के क्रय का निर्णय करती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली और कड़ी प्रतिक्रिया 7 अगस्त को आयी। दिल्ली के एक कार्यक्रम में मोदी ने ट्रंप का नाम लिए बगैर कहा कि मुझे किसानों के हितों की रक्षा की कीमत चुकानी पड़ेगी, मै इसके लिए तैयार हूं। भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों पर कभी समझौता नहीं करेगा। मोदी ने चुनौतीपूर्ण शब्दों में कहा कि मुझे व्यक्तिगत रूप से पता है कि इसके लिए मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिये तैयार हूं। भारत आपने किसानों के साथ मजबूती से खड़ा है और उनके हितों के लिए जो भी करना पड़ेगा, मैं करूंगा। उल्लेखनीय है कि ट्रंप की नाराजगी का एक बड़ा कारण कृषि, पशुपालन और दवाओं आदि के क्षेत्र में अमेरिका द्वारा ज्यादा छूट की मांग है जिसे भारत देने को तैयार नहीं है। ऐसा प्रयास ट्रंप अपने पहले कार्यकाल से ही करते आ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत अमेरिका की इस ट्रेड डील को मान लेगा तो किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीददारी करना सम्भव नहीं हो पायेगा। आज भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार लगभग 8 अरब डालर का है, जिसमें भारत अमेरिका को मुख्य रूप से चावल और मसाले निर्यात करता है। जबकि, अमेरिका भारत को मेवा,सेब, दाल आदि निर्यात करता है।
भारत की ओर से ट्रंप को जबाब देने की प्रक्रिया प्रधानमंत्री के भाषण तक सीमित नहीं रही। भारत ने एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में अमेरिका से रक्षा सौदों, हथियारों और एयरक्राफ्ट और उनके कल पुर्जों की खरीद पर चल रही डील पर रोक लगा दी। इसी बीच खबर आ रही है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रस्तावित अमेरिका यात्रा भी रद्द कर दी गई है। भारत के इस निर्णय का संदेश साफ है कि वह अपने व्यापारिक हितों पर चोट पहुंचाने वाले को माफ नहीं करेगा अपितु उसके हितों पर चोट पहुंचायेगा।
अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए आयात शुल्क के जबाब में भारत सरकार भी अमेरिका से भारत आने वाले उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाने की तैयारी कर रही है। सरकार की ओर से ऐसे उत्पादों का चयन करके जवाबी शुल्क लगाने की तैयारी हो रही है, जिससे भारतीय निर्यातकों को होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके। भारत इसके माध्यम से न केवल अपने घाटे की भरपाई करेगा अपितु अमेरिका को यह अहसास कराना चाहता है कि वह दबाव में झुकने वाला नहीं है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका से कंप्यूटर,लैपटाप, मोबाइल फोन सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रानिक सामान और उनके महंगे पार्ट्स भारत को निर्यात किये जाते हैं।
वैश्विक पटल पर अमेरिका को बेनकाब करने के लिए भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) में इस मामले को उठाते हुए अपनी आपत्ति दर्ज करायी है। भारत सरकार का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर भारत पर थोपा गया अतिरिक्त शुल्क का निर्णय विश्व व्यापार संगठन के नियमों और प्राविधानों के विरुद्ध है। विश्व व्यापार संगठन में 164 देश शामिल हैं, जिसमें भारत और अमेरिका दोनों देश हैं। भारत इसके संस्थापक देशों में से एक है।
वाल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत अमेरिका का 12वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन इस बढ़े हुए शुल्क के बाद भारत का इस स्थान पर बना रह पाना सम्भव नहीं दिख रहा है। ऐसे में भारत ने अमेरिका के सामने घुटने टेकने के बजाय अन्य व्यापारिक साझेदारों की खोज शुरू कर दी है। इसके लिए भारत ने विश्व के तमाम अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर तेजी लाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया है। अब भारत यूरोपीय संघ के देशों के साथ- साथ खाड़ी देशों और पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने व्यापार बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, जिससे अमेरिका के बाजार पर निर्भरता कम हो सके। राजनीतिक समीक्षकों का भी मानना है कि ऐसी स्थिति में भारत को उन देशों की ओर ध्यान देना चाहिए जो मुक्त व्यापार समझौतों में रुचि रखते हैं। दरअसल, ट्रंप-2 के कार्यकाल की शुरुआत से ही भारत को आभास हो गया था कि अमेरिका बहुत दिनों तक भारत के लिए विश्वसनीय साझेदार नहीं रह पायेगा, क्योंकि ट्रंप शुल्क (टैरिफ) को लेकर भारत पर लगातार निशाना साधते रहे हैं।
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