Rahul Gandhi On Army : अभिव्यक्ति के आजादी की सीमा रेखा पार करते राहुल गांधी

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Rahul Gandhi On Army : राहुल गांधी को न तो राष्ट्रीय सुरक्षा की समझ है और न ही वे राजनीति के स्तर को समझते हैं जिनकी राजनीति आज सिर्फ ट्विटर पर ट्रेंड करवाने तक सीमित रह गई है।

Rahul Gandhi On Army : अभिव्यक्ति के आजादी की सीमा रेखा पार करते राहुल गांधी

अमित कुमार झा

दुनियाभर में भारतीय सेना की विशिष्ट छवि रही है। देश दुनिया में उसने अपने शौर्य, कर्तव्य से अनूठी ख्याति हासिल की है। उस पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सतही तरीके से पूर्व में बयानबाजी की थी। वर्ष 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान में प्रेस कॉन्फ्रेंस राहुल ने की थी। इस दौरान उन्होंने कह दिया था कि चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों की पिटाई कर रहे हैं। उनके इस बयान पर बवाल मचा। मामला लखनऊ की एक अदालत से होते इलाहाबाद हाईकोर्ट तक पहुंचा। अब सुनवाई के क्रम में अभी हाईकोर्ट से राहुल को डांट भी पड़ी है। साथ ही कहा कि संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी है। पर यह सब उचित प्रतिबंधों के अधीन है। सेना के लिए अपमानजनक बयान देने की आजादी इस स्वतंत्रता में शामिल नहीं है। मतलब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा निर्धारित है। अब इस टिप्पणी के बाद राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस सियासी बहस के केंद्र में है। भाजपा समेत अन्य भी लगातार राहुल पल हमलावर हैं कि उनकी बयान बाजी से सेना का अपमान हो रहा है। 

अदालत से राहत की आस

सेना पर टिप्पणी मामले में राहुल गांधी अब अदालत से राहत पाने की आस में हैं। लखनऊ की एक अदालत के उस आदेश को उच्च न्यायालय में उन्होंने चुनौती दी है जिसमें उन्हें मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था। हुल गांधी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि) के तहत कथित अपराध के लिए मुकदमे का सामना करने के लिए उन्हें समन भेजने के लखनऊ की एक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया। 2022 में “भारत जोड़ो यात्रा” के दौरान उनकी टिप्पणी को लेकर द्वारा उनके खिलाफ दर्ज शिकायत मामले की पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। इस केस पर सुनवाई करते न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने गांधी को राहत देने से इनकार कर दिया।

साथ ही कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। पर यह स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है। इसमें ऐसे बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है जो किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के लिए अपमानजनक हो। इस मामले के शिकायतकर्ता उदय शंकर श्रीवास्तव पूर्व में सीमा सड़क संगठन के पूर्व निदेशक रहे हैं। उन्होंने गांधी के खिलाफ उनकी "भारत जोड़ो यात्रा" के दौरान की गई टिप्पणियों को लेकर शिकायत दर्ज कराई है।

शिकायतकर्ता के मुताबिक, भारतीय सेना के खिलाफ कोई भी अपमानजनक टिप्पणी भारतीय सेना का मनोबल गिराने और उसकी उपलब्धियों को अपमानजनक तरीके से पेश करने के उद्देश्य से की गई है। यह सेना के साथ-साथ पूरे देश का अपमान है। गांधी का यह कथित बयान कि चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों पर हमला कर रही है और भारतीय प्रेस इस संबंध में कोई सवाल नहीं पूछेगी, झूठा और निराधार है। यह भारतीय सेना का मनोबल गिराने और भारतीय जनता का भारतीय सेना पर विश्वास खत्म करने के इरादे से दिया गया है। 

शिकायत के अनुसार, राहुल गांधी ने 16 दिसंबर, 2022 को अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान मीडियाकर्मियों और बड़ी संख्या में लोगों की मौजूदगी में 9 दिसंबर, 2022 को अरुणाचल प्रदेश में भारत की सीमा पर भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हुई झड़प के बारे में कहा कि "लोग भारत जोड़ो यात्रा के बारे में यहां-वहां, अशोक गहलोत और सचिन पायलट से पूछेंगे। फिर भी, वे चीन द्वारा 2,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा करने, 20 भारतीय सैनिकों को मारने और अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों की पिटाई के बारे में एक भी सवाल नहीं पूछेंगे। लेकिन भारतीय प्रेस उनसे इस बारे में नहीं पूछता। क्या यह सच नहीं है? देश यह सब देख रहा है। ऐसा दिखावा न करें कि लोगों को पता नहीं है।

इस विविदित बयान के बाद मामला लखनऊ ट्रायल कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट ने 11 फरवरी को एक आदेश पारित कर गांधी को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया। अदालत ने 11 फरवरी को एक आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि प्रथम दृष्टया गांधी के बयान से भारतीय सेना और उससे जुड़े लोगों तथा उनके परिवार के सदस्यों का मनोबल गिरता हुआ प्रतीत होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानहानि के अपराध के लिए मुकदमा चलाने का मामला बनता है। इस आधार पर कांग्रेस नेता को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत अपराध के लिए मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया गया था। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि मामले के सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 500 के तहत अपराध के लिए गांधी को मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाने का सही फैसला किया है। इसने आगे कहा कि मीडिया संवाददाताओं से बात करते समय गांधी का स्पष्ट इरादा और उपस्थित लोगों को संदेश था कि उनका बयान अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित किया जाए। इसलिए, मामले के तथ्य समन आदेश और कार्यवाही को रद्द करने का मामला नहीं बनाते हैं। इसने गांधी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता पीड़ित व्यक्ति नहीं है और उसे शिकायत दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं है।

सीजफायर पर सियासत

भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसकर चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों की पिटाई पर राहुल गांधी द्वारा विवादित बयान देने का मामला इकलौता केस नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर मामले में भी उनके बयान पर खूब सियासत हुई है। राहुल गांधी ने भोपाल (मध्य प्रदेश) में पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर को लेकर ऐसा बयान दिया जिसपर राजनीतिक बवाल होना ही था। उन्होंने सरकार पर सरेंडर करने का आरोप लगाया। कहा कि बीजेपी-आरएसएस वालों को सरेंडर की आदत है। अगर देश में कांग्रेस की सरकार होती को कभी सरेंडर नहीं होता।

ट्रंप का फोन आया और नरेंद्र मोदी तुरंत सरेंडर हो गए। बीजेपी-आरएसएस का करैक्टर है कि वो हमेशा झुकते हैं। ट्रंप ने मोदीजी को इशारा किया तो उन्होंने उनके आदेशों का पालन किया। भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस पूरे मामले में राहुल पर हमला बोला। इसे देश और भारतीय सेना के भी अपमान से जोड़ा। कहा कि राहुल गांधी ने सेना और देश के 140 करोड़ लोगों का अपमान किया है। राहुल द्वारा भारतीय सेना के अप्रतिम शौर्य एवं पराक्रम को ‘सरेंडर’ कहकर संबोधित करना दुर्भाग्यपूर्ण है। सेना और राष्ट्र के साथ-साथ 140 करोड़ भारतवासियों का भी घोर अपमान है।

अगर कोई पाकिस्तानी भी ऐसा कहता तो हम उस पर हँसते भी लेकिन जिस तरह से ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान में तबाही मचाई, उसके बाद पाकिस्तान की जनता से लेकर उसकी सेना और उसके प्रधानमंत्री ने भी ऐसा कहने की हिम्मत नहीं की लेकिन राहुल गाँधी ऐसा बोल रहे हैं। यह देशद्रोह से कम नहीं है।" भारतीय सेना ने पाकिस्तान में 300 किमी घुस कर उसके 11 एयरबेस को तबाह किया, 9 आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, 150 से ज्यादा आतंकी मारे। पाकिस्तान तो रोते-रोते दुनिया को बता रहा है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान में 18 जगह हमला करके सब कुछ तबाह कर दिया और राहुल गाँधी देश के सरेंडर की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी को पता होना चाहिए कि "ऑपरेशन सिंदूर" को सरकार या किसी भाजपा प्रवक्ता ने नहीं, बल्कि भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने सफल घोषित किया था।

“ऑपरेशन सिंदूर” भारतीय सेना के बहादुरी, शौर्य एवं पराक्रम का उद्घोष है। वास्तव में जिनकी नीतियाँ सरेंडर की रही हो, उसे इसके आगे कुछ सूझ भी नहीं सकता। सरेंडर राहुल और उनकी पार्टी करती रही होग। सरेंडर कांग्रेस पार्टी की डिक्शनरी और उसके डीएनए में है। राहुल गांधी को अपनी पार्टी की सरकारों का कार्यकाल याद करना चाहिए। उन्होंने आतंकवाद के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, शर्म-अल-शेख में आत्मसमर्पण कर दिया, 1971 के युद्ध में जीत के बाद शिमला में बातचीत की मेज पर आत्मसमर्पण कर दिया, सिंधु जल संधि में आत्मसमर्पण कर दिया, हाजी पीर दर्रे को आत्मसमर्पण कर दिया, छम्ब सेक्टर के 160 वर्ग किलोमीटर को आत्मसमर्पण कर दिया, 1962 के युद्ध में आत्मसमर्पण कर दिया, 1948 में आत्मसमर्पण कर दिया और यहां तक ​​कि देश की आजादी के समय मुस्लिम लीग के सामने भी आत्मसमर्पण कर दिया।

ओडिशा के पूर्व राज्यपाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के मुताबिक, भारतीय सेना पर राहुल गांधी का बयान न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह सेना के मनोबल को ठेस पहुंचाने वाला है। यह कांग्रेस की मानसिक दिवालियापन और उसकी देशविरोधी सोच को उजागर करता है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमारी सेना ने अपने अदम्य साहस और पराक्रम के बल पर पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों के भारी नुकसान पहुंचाया है।

दरअसल, राहुल गांधी को न तो राष्ट्रीय सुरक्षा की समझ है और न ही वे राजनीति के स्तर को समझते हैं। जिनकी राजनीति आज सिर्फ ट्विटर पर ट्रेंड करवाने तक सीमित रह गई है, वे सेना पर सवाल खड़े कर अपना राजनीति हित साधने में लगे हुए हैं। कांग्रेस को अब यह समझ लेना चाहिए कि देश अब 1962 वाला भारत नहीं है। मोदीजी के नेतृत्व में भारत न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा कर रहा है, बल्कि दुनिया के मंच पर अपने हितों की रक्षा करना भी जानता है। राहुल गांधी जवाब दें—क्या वे पाकिस्तान और चीन के साथ खड़े हैं या भारत के साथ?

सेना के पराक्रम पर सवाल उठाने का इतिहास

यह सब पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने देश की सेना की ईमानदारी और पराक्रम पर सवाल उठाए हों। वह भी उन क्षणों में जब राष्ट्रीय एकता और सेना का मनोबल सबसे जरूरी होता है।   बालाकोट एयर स्ट्राइक और उरी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान, राहुल गांधी ने "वीडियो सबूत" की मांग कर सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. कई लोगों ने इसे देश की रक्षा में लगे जवानों के बलिदान और पराक्रम का अपमान माना था.

गलवान घाटी की घटना, जिसमें भारतीय सैनिकों ने चीन के खिलाफ बहादुरी से मोर्चा लिया, उस समय भी राहुल गांधी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देने की बजाय सरकार की आलोचना की थी। घटना का राजनीतिकरण करना ज्यादा जरूरी समझा था। अब सवाल यह बन रहा है कि आखिर बार-बार राहुल समेत कांग्रेस नेता बार-बार केवल भारतीय सैनिकों के नुकसान पर ही सवाल क्यों उठाते हैं? पर वे सब पाकिस्तान को हुए भारी नुकसान को पूरी तरह नजरअंदाज कर देते हैं। जबकि अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में भी माना गया है कि भारत की कार्रवाईयों से पाकिस्तान का आतंकी ढांचा बुरी तरह तबाह हो गया है। बावजूद इसके, राहुल गांधी इन रणनीतिक सफलताओं को मानने से इनकार करते हैं। यह रवैया यह सवाल तो खड़े करता ही है। सवाल कि क्या कांग्रेस पार्टी के लिए अब राजनीतिक अंक हासिल करना राष्ट्रीय हित से ज्यादा जरूरी हो गया है?

 ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुनियाभर में भारत सरकार ने अपना प्रतिनिधिमंडल भेजा। अलग-अलग दलों के प्रतिनिधि इसमें शामिल किए गए। उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे और ऑपरेशन सिंदूर पर अपने देश भारत के रवैये का पुरजोर समर्थन करते अपनी बात रखी। इस पर अलग-अलग देशों ने भारत के सुर में सुर भी मिलाया। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत सरकार और सेना की कार्रवाई उचित थी। रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-गाजा संघर्ष जैसे अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों में, विपक्षी दलों ने युद्ध के दौरान अपनी सेनाओं और सरकारों का समर्थन किया, भले ही उनके राजनीतिक मतभेद कितने भी गहरे क्यों न रहे हों। भारत में भी ऐसी ही एकजुटता की आवश्यकता महसूस की गई।

लेकिन दुर्भाग्य की बात रही कि राहुल गांधी और कांग्रेस ऐसे समय में राष्ट्र की एकता को तोड़ने वाले बयान देते रहे हैं, जब देश को सबसे ज्यादा सामूहिक समर्थन और विश्वास की आवश्यकता रही। इसमें कोई शक नहीं कि भारत आज एक उभरती वैश्विक शक्ति है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है।

हमारी सेना को पूरी दुनिया सम्मान की नजर से देखती रही है। सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारे सैनिक हर दिन जान की बाजी लगाते हैं। ऐसे में यह उम्मीद करना कि कोई भी संघर्ष बिना हानि के हो, अवास्तविक है। और हर बार 'सबूत' की मांग करना हमारे सैनिकों के बलिदान का अपमान ही है। आज जब भारत को एकजुटता की जरूरत है, ऐसे समय में नेताओं को दलों से ऊपर उठकर देश की भावना को दर्शाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने आतंकवाद और सुरक्षा मामलों में स्पष्ट नीति और संकल्प दिखाया है। अब वह समय आ गया है कि विपक्ष भी उसी गंभीरता, परिपक्वता और राष्ट्र प्रेम के साथ आगे आए। सस्ती राजनीति की राह छोड़े।

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