अमित कुमार झा
दुनियाभर में पारिस्थितिकीय परिदृश्य को देखें। चुनौतियां बढ़ी ही हैं। वन्यजीव और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र पर खतरे बढ़ रहे हैं, एशिया महादेश से अमेरिका तक। संभवतः ऐसी स्थिति ने समूची दुनिया को झकझोरा। यही आधार विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने का बना। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसकी शुरुआत की। पर्यावरणीय मुद्दे पर वैश्विक जागरूकता फैले। सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़े, इसी आस के साथ यह सिलसिला अबतक जारी है। विश्व पर्यावरण दिवस 2025 ने समुची दुनिया को मौका दिया है कि हम सब अपनी धरती, प्रकृति को सम्मान दें।
पर्यावरण का संरक्षण हो। हर साल 5 जून को यह दिवस मनाया जाता है। इसे केवल एक आयोजन भर के नजरिए से नहीं, एक वैश्विक चेतना के तौर पर देखा जाता है। यह याद दिलाता है कि धरती केवल रहने भर की जगह नहीं। यह जीवन की आधारशिला भी है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की क्षति और प्रदूषण जैसे मुद्दे अब हमारे रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में पर्यावरण दिवस के विशेष मायने हैं।
इस वर्ष का विश्व पर्यावरण दिवस प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने पर केंद्रित होगा। इस बार इस दिवस की वैश्विक मेजबानी कोरिया गणराज्य करेगा। ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक प्रदूषण का खतरा कोई नया चैलेंज है।
दशकों से यह प्रदूषण दुनिया के हर कोने में फैल चुका है। पेयजल, भोजन के जरिए हमारे शरीर में समा रहा है। वास्तव में प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ी चिंता का विषय है। आज की पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक है। विश्व पर्यावरण दिवस प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावों पर बढ़ते वैज्ञानिक प्रमाणों पर प्रकाश डालेगा। प्लास्टिक के उपयोग को अस्वीकार करने, कम करने, पुनः उपयोग करने, पुनर्चक्रण करने और पुनर्विचार करने के लिए गति प्रदान करेगा। यह वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संधि के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए 2022 में की गई वैश्विक प्रतिबद्धता को भी मजबूत करेगा। कोरिया द्वारा दूसरी बार विश्व पर्यावरण दिवस की मेजबानी की जानी है। पहली बार इसने 1997 में " पृथ्वी पर जीवन के लिए " थीम पर इस दिवस की मेजबानी की थी।
पिछले 28 वर्षों में कोरिया जैसे देश ने जल और वायु की गुणवत्ता में सुधार दिखाया है। रसायनों का सुरक्षित प्रबंधन, तथा पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और उसे बहाल करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। कोरिया प्लास्टिक कचरे से निपटने के प्रयासों में अग्रणी देशों में से एक हो गया है।
दक्षिण कोरिया के जेजू प्रांत को विश्व पर्यावरण दिवस के लिए मेज़बान स्थान के तौर पर चुना गया था। साल 2022 में, इस प्रांत ने 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण से पूरी तरह मुक्त होने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य घोषित किया है।
जेजू दक्षिण कोरिया का एकमात्र ऐसा प्रांत है जहाँ घरों से निकलने वाले कचरे को विशेष रीसाइक्लिंग सहायता केंद्रों पर निपटाया जाता है। इसके अलावा, जेजू ही दक्षिण कोरिया का पहला प्रांत है जिसने डिस्पोजेबल कप जमा प्रणाली (disposable cup deposit system) की शुरुआत की है, जो कचरा कम करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
माना जाता है कि प्लास्टिक प्रदूषण जलवायु परिवर्तन का संकट, प्रकृति, भूमि और जैव विविधता का नुकसान तथा प्रदूषण और कचरे का संकट बढाता है। हर साल 430 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है। इसमें लगभग दो-तिहाई केवल एक बार उपयोग के लिए होता है। साथ ही जल्दी ही फेंक दिया जाता है। इस अल्पकालिक उपयोग की वस्तु (प्लास्टिक) से नदियों और महासागरों की सेहत बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।यह हमारे फूड चेन में प्रवेश कर रहा है और माइक्रो प्लास्टिक के रूप में शरीर में जमा भी होता है।
वैश्विक स्तर पर, अनुमान है कि हर साल 11 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है, जबकि कृषि उत्पादों में प्लास्टिक के उपयोग के कारण सीवेज और लैंडफिल से मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक जमा हो जाता है। प्लास्टिक प्रदूषण की वार्षिक सामाजिक और पर्यावरणीय लागत 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच है । इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस ऐसे समय में मनाया जा रहा है जब कोरिया जैसे देश समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए वैश्विक संधि हासिल करने की दिशा में प्रगति कर रहे हैं।
प्रकृति के संरक्षण के लिए भारत में लोगों के संघर्षों का एक लंबा इतिहास रहा है। खासकर उन लोगों का जो सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं और जिनका जीवन प्राकृतिक दुनिया के साथ सदियों पुराने सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्तों में उलझा हुआ है। चिपको आंदोलन (1970 का दशक, महिलाओं ने पेड़ों की कटाई से जंगलों को बचाया), नर्मदा बचाओ आंदोलन (1980 के दशक से अब तक, बड़े बांधों और विस्थापन के खिलाफ), भोपाल त्रासदी संघर्ष (1984 से, बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से पर्यावरण न्याय के लिए), या न्यामगिरी आंदोलन (2000 का दशक, एक पवित्र पहाड़ी को बॉक्साइट के खनन से बचाना) कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो दर्शाते हैं कि लोगों के भविष्य के बारे में जो विचार हैं, वे आधुनिक विकास प्रक्रियाओं को चलाने वाले विचारों से अलग हो सकते हैं, जो प्रकृति के साथ जटिल संबंधों को ध्यान में नहीं रखते हैं।
पर्व, त्योहार का जो सिलसिला रहा है, उसके पीछे प्रकृति की ही पूजा का भाव छिपा रहा है। छठ पूजा, होली, दीपावली, सरहूल और ऐसे ही सैकड़ों ऐसे अवसर हमसबों को प्रकृति का सम्मान और उसके प्रति गहरा जुडाव बनाए रखने की कहानियां बयां करते आए हैं। पर विकास की अंधी दौड़ में तस्वीर बदरंग हो रही है। पारिस्थितिकीय परिदृश्य पर दबाव स्पष्ट दिखने लगा है। वन क्षेत्र में भारी कमी आई है, वन्यजीव और समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र हिमालय और पश्चिमी घाट खतरे में हैं। नदियाँ शहरी सीवेज, कीटनाशकों और औद्योगिक विषाक्त पदार्थों से प्रदूषित हैं। प्रदूषित सिंचाई जल और वायु प्रदूषण के कारण भोजन दूषित हो रहा है।
भारतीय शहर कचरे और गंदी हवा से घुट रहे हैं क्योंकि ऑटोमोबाइल की संख्या बढ़ रही है। भले ही व्यापक आर्थिक संकेतक बढ़ रहे हों, लेकिन कई लोगों के जीवन की गुणवत्ता एक साथ घट रही है, खासकर वे जो नई अर्थव्यवस्था में शामिल नहीं हो सकते हैं। जैसे वनवासी, मछुआरे, किसान, कारीगर, या कृषि श्रमिक जो कचरा बीनने वाले, निर्माण श्रमिक आदि के रूप में श्रम बल में शामिल होने के लिए पलायन करते हैं।
हाल के वर्षों में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोगों का प्रकृति से अलगाव बढ़ रहा है।आधुनिक व्यक्ति के जीवन में व्यस्तता, तनाव है। ऐसी परिस्थितियों में मन को शांत करने के लिए प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना महत्वपूर्ण है। शहरों में उपलब्ध हरित स्थानों विशेष रूप से वृक्षों और पार्कों के जरिये लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने का अवसर मिलता है। प्रकृति से दोबारा जुड़ने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान (एनईएसी) शुरू किया है।
इस कार्यक्रम के तहत, गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, महिला और युवा संगठनों को पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। करीब 12,000 संगठन प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं को हल करने वाले कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
परंपरागत रूप से, तीर्थयात्रा के केंद्र ज़्यादातर प्राकृतिक जगहों, खासकर पहाड़ों या नदियों के किनारे होते हैं। हिमालय की चार धाम यात्रा इसका बेहतरीन उदाहरण है। यह दिखाता है कि हमारी संस्कृति कैसे देश भर के लोगों को पेड़ों, नदियों और पहाड़ों की प्राकृतिक सुंदरता का श्रद्धापूर्वक आनंद लेने का मौका देती है। ऋषिकेश में गंगा नदी के तट से शुरू होने वाली यह यात्रा यमुना और गंगा नदी के उद्गम स्थल तक जाती है, जो करोड़ों लोगों के लिए पवित्र तीर्थ स्थल हैं।
जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ गुफा और चीन के तिब्बती पठार में कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के रास्ते में भी कई अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता वाली जगहें हैं, जिनका आम आदमी के लिए बहुत आध्यात्मिक महत्व है। ये तीर्थयात्रा मार्ग प्रकृति से फिर से जुड़ने के मुख्य तरीके हैं और इंसान, प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच के गहरे संबंध को दिखाते हैं। इसी तरह, नर्मदा परिक्रमा भी एक और पारंपरिक तीर्थयात्रा मार्ग है, जिसमें लोग नर्मदा नदी के किनारे चलते हुए नदी की सुंदरता और प्राकृतिक परिवेश की सराहना करना सीखते हैं।
देश के कुल भौगौलिक क्षेत्र के दो प्रतिशत इलाकों में बने मौजूदा 166 राष्ट्रीय उद्यान और 515 वन्यजीव अभ्यारण्यों से भी लोगों को प्रकृति से दोबारा जुड़ने, वन्य जीवन और देश के हरित स्थलों को आनंद लेने का अवसर मिलता है। प्राकृतिक संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने शहरों में सार्वजनिक स्थलों पर हरियाली को बढ़ावा देने तथा सभी प्रकार के अपशिष्ट को कम करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। शहरी क्षेत्रों में सड़क निर्माण और खुले स्थानों पर फर्श तथा सीमेंट लगाने के जुनून के कारण युवा पीढ़ी प्रकृति से दूर हो गई है। सड़कों को चौड़ा करने के लिए पुराने वृक्षों को गिराने और पैदल यात्री तथा साईकिल चालकों से अधिक स्थान वाहनों के लिए रखने से शहरी नागरिकों का प्रकृति से जुड़ाव और कम हुआ है। सभी हितधारकों तथा समुदाय की सक्रिय भागीदारी से शहरी पारिस्थितिकी को कायम रखा जा सकता है।
भारत सरकार विश्व पर्यावरण दिवस पर देश भर के 4000 शहरों में विशाल अपशिष्ट प्रबंधन अभियान शुरू कर रही है। इस अभियान के अंतर्गत इन शहरों में कूड़ा एकत्र करने के नीले और हरे रंग के डिब्बे वितरित किए जाएंगे। आम लोगों को अपनी जीवन शैली में स्वच्छता की संस्कृति अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जायेगा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कह चुके हैं कि उन्हें मुझे दृढ़ विश्वास है कि हम स्वच्छता हासिल करने की दिशा में संस्कृति विकसित करेंगे और उसे जारी रखने के लिए नये कदम उठाएंगे। तभी हम गांधीजी के उस सपने को साकार कर सकेंगे, जो उन्होंने स्वच्छता के लिए देखा था”।
सरकार का उद्देश्य मूल स्थान पर ही सूखे और गीले कूड़े को अलग-अलग करने में लोगों की आदत में बदलाव लाना है ताकि तद्नुसार कूड़े का प्रबंधन किया जा सके। यह शहरों की स्वच्छता का आधार होगा, जिससे शहर अधिक प्रकृति अनुकूल बनेंगे तथा रहने के लिए स्वच्छ बुनियादी स्थिति उपलब्ध होगी। यह स्वच्छ भारत अभियान (एसबीए) का तार्किक अनुकरण है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में कूड़े के ढ़ेर के निपटान की समस्या से निपटने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे भूजल पर प्रतिकूल असर पड़ता है तथा कूड़े के ढ़ेर के आसपास की हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। यह एक चुनौती भरा कार्य है क्योंकि लोगों की आदत बदलने की आवश्यकता है, ताकि कूड़े को अलग करने का कर्तव्य या धर्म निभाने के लिए प्रत्येक परिवार के ये लोग बदलाव के दूत बनें।
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 के जरिए एक बार फिर हम सभी को यह अवसर मिला है कि हम अपनी धरती, प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण की दिशा में संकल्प लें। हम में से हर व्यक्ति का योगदान इस दिन को सार्थक बना सकता है। एक पौधा लगाना हो, प्लास्टिक का उपयोग कम करना हो, या ऊर्जा की बचत करना – हर छोटा कदम एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है।स्थानीय स्वच्छता अभियान में भाग लेना, अपने घर में ग्रीन स्पेस बनाना, प्लास्टिक और रसायनों के विकल्प अपनाना, बच्चों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाना जैसे छोटे प्रयास भी दिलचस्प होंगे।
आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में हम अक्सर भूल जाते हैं कि स्वच्छ हवा, साफ पानी और उपजाऊ मिट्टी कितने अनमोल संसाधन हैं। पर्यावरण दिवस हमें फिर याद दिलाता है कि यदि अभी पहल नहीं की गयी, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए पृथ्वी एक कठिन जगह बन जाएगी।
सरकारों और संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर भी ज़िम्मेदारी लेना उतना ही ज़रूरी है। पर्यावरणीय संकट अब वास्तविक हैं। ऐसे में पर्यावरण दिवस को केवल एक रस्म की तरह न मनाया जाए बल्कि अपने जीवन का हिस्सा हमसब बनाएं। प्रकृति हमारी ज़िम्मेदारी है। हमें इस जिम्मेदारी को पूरे समर्पण के साथ निभाना चाहिए। प्रकृति के साथ दोबारा जुड़ना आधुनिक समय के तनाव को कम करने तथा व्यक्ति और समुदाय में सद्भाव लाने में मददगार होता है।
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