अंसारी के गढ़ में आसान होगी भाजपा की राह

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मऊ जनपद के सदर विधानसभा क्षेत्र से विधायक अब्बास अंसारी को हेट स्पीच मामले में दो वर्ष की सजा सुनाये जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। इसी बीच सरकार की ओर से चुनाव आयोग को इसकी सूचना देते हुये उपचुनाव की अनुशंसा भी कर दी गई है। मात्र 24 घंटे में घटे इस घटनाक्रम सेे मऊ जनपद के साथ ही पूरे पूर्वांचल की राजनीति में एक नया भूचाल आ गया है। सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या अब इस सीट से मुख्तार अंसारी के परिवार का वर्चस्व समाप्त होगा?

अंसारी के गढ़ में आसान होगी भाजपा की राह

उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद की सदर विधानसभा सीट से सुभासपा के टिकट पर निर्वाचित अब्बास अंसारी को मऊ की एमपी/एमएलए कोर्ट ने  हेट स्पीच मामले में दोषी पाते हुये दो वर्ष की सजा सुनाई है। सजा सुनाये जाने के बाद ही अंसारी की विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई। सरकार की ओर से तत्काल इसकी सूचना चुनाव आयोग को भेजते हुये रिक्त सीट पर चुनाव कराये जाने की संस्तुति कर दी गई है। अब चुनाव आयोग अपनी सुविधा के अनुसार इस सीट पर विधानसभा चुनाव कराये जाने का निर्णय लेगा।

सदर सीट और हेट स्पीच का मामला


मऊ जनपद के सदर विधानसभा सीट से गाजीपुर के बाहुबली मुख्तार अंसारी 1996 से 2017 तक लगातार 5 बार चुनाव जीत कर विधायक बने। 2005 से जेल में बंद रह कर मुख्तार अंसारी ने 2007, 2012 और 2017 का चुनाव बसपा, निर्दल अथवा अपने ’कौमी एकता दल’ के टिकट पर जीता। 2022 के चुनाव के अंतिम क्षणों में मुख्तार अंसारी ने स्वयं के बजाय अपने बेटे अब्बास अंसारी को मैदान में उतारने का निर्णय लिया। तत्कालीन सुभासपा-सपा गठबंधन की ओर से सुभासपा ने अब्बास अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया। विधानसभा चुनाव के बीच अब्बास अंसारी ने 3 मार्च 2022 को पहाड़पुर में आयोजित एक जनसभा में कहा था कि अखिलेश जी से कह कर आया हॅू कि सरकार बनने के बाद 6 महीने तक किसी अधिकारी का ट्रांसफर या पोस्ंिटग नही होगी, पहले वह अपने काम का हिसाब दंेगे, उसके बाद ही ट्रांसफर लिस्ट पर हस्ताक्षर होंगे।  अधिकारियों को दी गई इस धमकी की रिपोर्ट उसी दिन एक पुलिस सब इंस्पेक्टर द्वारा दर्ज करायी गई। अब्बास अंसारी ने इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह को लगभग 38 हजार मतों से पराजित कर विधायक बने थे। हेट स्पीच में दर्ज मुकदमें में मऊ की एमपी/एमएलए कोर्ट ने 31 मई को अब्बास अंसारी को दोषी पाते हुये विभिन्न धाराओं में 2 वर्ष  की सजा सुनाई है। जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार 2 साल या उससे अधिक की सजा मिलने पर विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जायेगी। इसलिये 31 मई को ही अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई। 

सदर सीट पर होगा उपचुनाव


    सदर सीट के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब वहां विधायक बनने के लिये उपचुनाव होगा। न्यायालय का निर्णय आये हुये मात्र 48 घंटे का समय बीता है लेकिन उपचुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं। पहले अब्बास अंसारी की बात की जाय तो उनके अधिवक्ता ने कहा है कि वह इस निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील करंेगे। यदि न्यायालय से स्थगन आदेश मिलता है तो अंसारी की सदस्यता बहाल हो सकती है। उल्लेखनीय है कि हेट स्पीच के मामले में अब्बास असारी के चाचा और सांसद अफजाल को भी दो बर्ष से अधिक की सजा सुनाई गई थी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी और उनकी लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी। 
यदि उपचुनाव हुये तो इस सीट पर अंसारी परिवार के किसी सदस्य के चुनाव लड़ने की सम्भावना ज्यादा है। उसके लिय अब्बास के छोटे भाई उमर का नाम सबसे ऊपर है। सपा के बारे में कयास है कि वह अंसारी परिवार के साथ ही खड़ी होगी। यह भी हो सकता है कि अंसारी परिवार के सदस्य को सपा अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारे। बसपा उपचुनाव से परहेज करती है तो बसपा की ओर से किसी के चुनाव लड़ने की उम्मीद नहीं है। कांग्रेस की रणनीति क्या होगी इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। यह तय है कि उपचुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा गठबंधन से होगा। 

मुख्य मुकाबले में भाजपा 


    यह सच है कि राम लहर और तमाम राजनीतिक समीकरण बनने के बाद भी भाजपा सदर सीट से आज तक विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकी है लेकिन वह मुख्य मुकाबले में जरूर रही है। 1969 से 2022 के बीच, 1977 में जनता पार्टी के राम जी सिंह के अतिरिक्त, इस सीट पर मुस्लिम प्रत्याशियों को ही विजय मिलती आ रही है। 1991 में भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी इस सीट पर चुनाव लड़े लेकिन कड़े मुकाबले में सीपीआई के इम्तियाज अहमद से 133 मतांे से हार गये। यह भाजपा प्रत्याशी का सबसे कड़ा मुकाबला था। 1996 के चुनाव में नकवी पुनः भाजपा प्रत्याशी बनाये गये लेकिन 10 हजार से अधिक मतों से हार गये। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा- सुभासपा गठबंधन प्रत्याशी दूसरे स्थान पर था। 2022 के चुनाव में भाजपा ने अशोक सिंह को टिकट दिया था, जो दूसरे स्थान पर रह कर लगभग 38 हजार मतों से हार गये। अशोक सिंह के साथ आम लोगों की सहानिभूति भी थी क्योंकि 2009 में मुख्तार अंसारी ने उनके भाई मन्ना सिंह की हत्या अपने शूटरों से करा दी थी। इसे लेकर मऊ जनपद कई दिनों तक अशांत रहा। अब उपचुनाव को लेकर जो चर्चायें चल रही है उसमें एक पेंच भाजपा-सुभासपा गठबंधन का है। सुभासपा दावा कर रही है कि अंसारी उसके विधायक थे इसलिये यह सीट उनके खाते की है जबकि हेट स्पीच मामले को इस अंजाम तक पहुंचाने वाली भाजपा इस मुद्दे को पार्टी हाईकमान पर छोड़ रही है।

परिणाम पर भारी पड़ते जातीय समीकरण 


    मऊ सदर विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण की अहम भूमिका है। 2022 के आॅकड़ों के अनुसार इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 4,77,298 मतदाता पंजीकृत है। जातिगत आॅकड़ों की बात की जाय तो यहां 1.70 लाख मुस्लिम, 91 हजार अनुसूचित जाति, 50 हजार राजभर, 45 हजार यादव, 45 हजार चैहान तथा 20 हजार के लगभग क्षत्रिय मतदाता है। मुस्लिम मत अब तक निर्णायक होते आ रहे हैं। 2017 के चुनाव में सपा-कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर था।  


मऊ सदर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा? कब होगा यह तो अभी तय नहीं है लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि यदि अंसारी परिवार का भी कोई सदस्य मैदान में आता है तो उसकी राह पहले जैसी आसान नहीं होगी। मुख्तार अंसारी की मौत के बाद तमाम लोग उस परिवार से धीरे धीरे किनारा कर चुके हैं। क्षेत्र में उसका जो खौफ था वह समाप्ति की ओर है। इस निर्णय से भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित है और वह इस अवसर को भाजपा की जीत के रूप में बदलने में कोई कसर नहीं उठा रखेंगे।
 

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