बांग्लादेश में सत्तारूढ़ शेख हसीना सरकार द्वारा 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार और रिश्तेदारों को सरकारी सेवा में 30 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के विरोध में शुरू हुआ छात्रों का विरोध प्रदर्शन जुलाई 2024 में एक क्रांति के रूप में परिवर्तित हो गया था क्योंकि सरकार ने छात्र आन्दोलन को दबाने के लिये दमनकारी नीति अपनायी थी। सेना की कार्यवाही में 300 से अधिक प्रदर्शनकारियों की जान चली गई। देश में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन के चलते 5 अगस्त को शेख हसीना को सत्ता से हटना पडा तथा भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांगलादेश में बनी अंतरिम सरकार में मोहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार बनाया गया है। यूनुस को एक दर्जन से ज्यादा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके है जिसमें 2006 का अन्तर्राष्ट्रीय शांति का नोबल पुरस्कार शामिल है। अंतरिम सरकार के गठन का मुख्य एजेंडा प्रशासनिक सुधार, न्याय और शीघ्र चुनाव कराना था। अब तक अंतरिम सरकार के 10 माह बीत चुके है लेकिन जिन उद्देश्यों को लेकर अंतरिम सरकार का गठन हुआ था वह सब यथावत बने हुये है। मुख्य मुद्दा शीघ्र चुनाव कराये जाने को लेकर था लेकिन उसमें भी नाकाम रहने पर बीएनपी सहित तमाम दल युनुस की आलोचना करते हुये तमाम प्रकार के आरोप लगा रहे हैं।
शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद 7 अगस्त को मोहम्मद यूनुस मुख्य सलाहकार के रूप में सत्ता के केन्द्र में आये। कुछ ही सप्ताह बाद जेलों में बंद शेख हसीना के तमाम राजनीतिक विरोधी जेलों से बाहर आ गये, उनमें पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया तथा उनकी बीएनपी के अन्य प्रमुख नेता शामिल थे। खालिदा जिया को भ्रष्ट्राचार के दो मामलों में 17 वर्ष की सजा सुनाई गई थी लेकिन अंतरिम सरकार बनने के बाद उनमें से एक मामले में खालिदा जिया को बरी कर दिया गया है। जेल से बाहर आने के बाद खालिदा जिया की बीएनपी अंतरिम सरकार पर दिसम्बर 2025 तक चुनाव कराने का दबाब बना रही थी लेकिन इसी बीच इलाज के लिये खालिदा के बाहर चले जाने से यह मांग कमजोर पड़ी थी । लगभग 4 माह बाद मई में वतन वापसी के बाद चुनाव का मुद्दा पुनः जोर पकड़ा है। मोहम्मद यूनुस की चुनाव घोषणा को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि बीएनपी ने जनवरी 2024 के आम चुनाव का बहिष्कार किया था। बीएनपी की मांग थी कि चुनाव एक निष्पक्ष और अंतरिम सरकार के आधीन सम्पन्न कराया जाय। अब बीएनपी सत्ता में वापसी के लिये इसे अपने लिये सबसे उचित अवसर मान रही है।
बांग्लादेश की सबसे पुरानी और प्रमुख राजनैतिक पार्टी ’बांग्लादेश अवामी लीग,’ जिसका नेतृत्व शेख हसीना कर रहीं हैं, 2024 के चुनाव में बहुमत हासिल कर सत्ता में आयी थी परन्तु छात्र आन्दोलन के चलते शेख हसीना को सत्ता और देश दोनों छोडना पड़ा है। सबसेे बड़ी बात यह है कि अंतरिम सरकार ने भारी दबाब के चलते 10 मई 2025 को ’आंतकवाद विरोधी अधिनियम’ के अन्तर्गत बांग्लादेश अवामी लीग की राजनीतिक गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध के चलते अवामी लीग की आगामी चुनाव में भागीदारी पर संशय हो रहा है। दूसरी ओर बांग्लादेश के अन्तर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने औपचारिक रूप से हसीना पर ’’मानवता के खिलाफ अपराध’’ का आरोप लगाया है। यह आरोप जुलाई 2024 में छात्रों पर बर्बर कार्यवाही और सामूहिक हत्याओं के लिये दिये गये आदेश से जोड़ा जा रहा है। इस कार्यवाही से अब शेख हसीना के साथ-साथ उनकी पार्टी आवामी लीग के भविष्य को लेकर तमाम प्रकार के कयास लगाये जाने लगे हैं।
आम चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली पार्टियों में एक नाम जातिया पार्टी(इरशाद) का है। 2024 के चुनाव में यह देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आयी थी लेकिन उस समय पार्टी का आवामी लीग से गठबंधन था। अब अवामी लीग पर प्रतिबंध के बाद जातिया को अकेले ही चुनाव लड़ना पड़ेगा। जून-जुलाई 2024 में हुये छात्र आन्दोलन की सफलता के बाद उत्साहित छात्रों ने भी अपना एक राजनैतिक दल का गठन किया है जिसका नाम ’’नेशनल सिटीजन’’ पार्टी है। यह पार्टी चुनावों में किसी गठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ेगी अथवा अकेले यह आने वाला समय बतायेगा। फिलहाल पार्टी का पूरा जोर चुनाव से जुड़े उन महत्वपूर्ण सुधारों को लेकर है जिनके लिये छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किये थे।
बांग्लादेश में चुनावों से पहले सरकार ने दक्षिणपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी से भी प्रतिबंध हटा लिया है। अभी 1जून को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को जमात-ए-इस्लामी पार्टी का पंजीकरण बहाल करने का आदेश दिया है। इससे स्पष्ट है कि आगामी चुनाव में जमात-ए-इस्लामी संगठन भी चुनाव मैदान में होगा। यदि यह कट्टरपंथी संगठन किसी भी प्रकार से सत्ता में आया तो बांगलादेश में धार्मिक कट्टरता को बढावा मिलेगा और राजनीति की दिशा में बड़े बदलाव से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की ओर से भले ही अप्रैल 2026 में चनाव कराये जाने की घोषणा कर दी गई लेकिन इतने से ही उसके कत्र्वयों की इतिश्री नहीं हो जायेगी। सरकार के समक्ष आने वाले समय में तमाम चुनौतियां है जिसका हल सरकार के प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस को ही करना है। सरकार की ओर से किसी तारीख का ऐलान न किये जाने के कारण यूनुस पर सत्ता में लम्बे समय तक बने रहने का आरोप लग रहा है तो दूसरी ओर नेशनल सिटीजन पार्टी चुनाव सुधारों के लिये संस्थानों में सुशासन की बात कर रही है लेकिन वह अभी तक नहीं दिख रहा है। जाहिर सी बात है कि मनमाफिक सुधार न होने पर छात्र प्रदर्शन जारी रह सकते है।
फिलहाल बांग्लादेश में चुनाव की राह में अभी बहुत कांटे दिखायी पड़ रहे है। देश की सबसे पुरानी और 2009 से 2024 तक लगातार सत्तारूढ़ रहने वाली अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध का मुद्दा भी गरमायेगा। भारत ने पहले ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा है कि ’बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये आवामी लीग पर प्रतिबंध लगाना चिंता का विषय है।’ चुनाव में कुछ राजनैतिक दल भी इसे भी मुद्दा बना सकते है। सेना का एक धड़ा भी शेख हसीना का समर्थक है जिसने हसीना को देश से बाहर जाने में मदद की थी।
अन्य प्रमुख खबरें
रिश्तों के ATM को संभालें: 'यूजर एग्रीमेंट' नहीं, सच्ची दिलचस्पी है कुंजी
Rahul Gandhi On Army : अभिव्यक्ति के आजादी की सीमा रेखा पार करते राहुल गांधी
ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान का कबूलनामा और राहुल का दर्द
World Environment Day 2025: केवल प्रकृति से जुड़ाव का उत्सव नहीं बल्कि एक वैश्विक आत्मचेतना का पर्व
Most Popular Leader Yogi Adityanath : देश में लगातार बढ़ रही योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता
हिंदू साम्राज्य दिवसोत्सव - हिंदू पद पादशाही की स्थापना का उत्सव
अंसारी के गढ़ में आसान होगी भाजपा की राह
वायु सेना का सुरक्षा को लेकर चिंता और जरूरतों के लिए आत्मनिर्भरता की वकालत
अबकी बार हो जाएंगे पाकिस्तान के चार टुकड़े
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता पर ममता की बौखलाहट
दृढ़ संकल्प से ही छूटेगा 'तम्बाकू'
सोशल मीडिया के दौर में हिंदी पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियां
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कर रहे पाक को बेनकाब
भाजपा के दामन पर दाग लगाते उसके अपने ही नेता