पाकिस्तान ने अपने डॉजियर में यह क़ुबूल किया है कि ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर बलूचिस्तान को छोड़कर देश के सभी हिस्सों में व्यापक पैमाने पर हमले किये जिससे उसे भारी नुकसान हुआ है। भारत ने 20 नहीं अपितु 28 ठिकानों पर हमले किये जबकि भारत ने केवल नौ ठिकानों पर हमले की बात की है। पाकिस्तानी सूचना बताती है कि भारतीय सैन्य बलों ने पाकिस्तान के सभी राज्यों पंजाब, सिंध और खैबर पख्तूनख्वां (पेशावर) पर हमला किया था। पाकिस्तानी डॉजियर में कहा गया है कि भारत के हमले से उसे जबर्दस्त नुकसान उठाना पडा है। वहीं भारतीय वायुसेना के आंकड़ों से पता चल रहा है कि भारत की क्रूज एवं सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों ने पाकिस्तानी वायुसेना के छह लडाकू विमानों, दो अन्य अहम विमानों 10 से अधिक यूसीएवी एक सी 130 परिवहन विमान के साथ कई क्रूज मिसाइलों को भी ध्वस्त किया गया है।
पहलगाम के क्रूर आतंकी हमले के बाद से ही कांग्रेस और इसके नेता अजीबोगरीब हरकतें कर रहे हैं। पहले दिन तो इन्होने मन मारकर सरकार के साथ खड़े होने की बात की किन्तु दूसरे दिन से ही रंग बदल लिया। पूरी बेशर्मी के साथ कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता सरकार पर आक्षेप करते रहे। प्रधानमंत्री का बिना सिर का पोस्टर गायब लिखकर सोशल मीडिया में डाला, राफेल का मजाक उड़ाया, ऑपरेशन सिन्दूर पर प्रश्नचिह्न लगाया, पाकिस्तान के नुकसान की जगह भारत के नुकसान पर हल्ला मचाया, युद्ध विराम पर बवाल मचाया और विदेश गए प्रतिनिधि मंडल में जाने वाले अपने ही नेताओं के पीछे पड़ गए और अंत में निम्नतम स्तर पर जाकर राहुल गांधी नरेंदर सरेंडर का नारा लगा रहे हैं।
आतंकी हमले से आज तक राहुल के नेतृत्व वाला कांग्रेस का धड़ा और उनको इंडी गठबंधन का नेता मानने वाले छोटे दल पाकिस्तान के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं ।राहुल गांधी ने भोपाल में एक कार्यक्रम में जिस प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग कर उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया उससे कांग्रेस सहित संपूर्ण विपक्ष की छवि भारत विरोधी की बन गई है। राहुल ने केवल शब्दों में ही यह बात नहीं बोली बल्कि उनकी पार्टी के आई टी सेल ने नरेंदर सरेंडर वाला पोस्टर भी सोशल मीडिया में जारी किया है और उनके प्रवक्ता बेशर्मी के साथ इसे आगे बढ़ा रहे हैं यद्यपि अब भाजपा ने भी इस पर पलटवार करते हुए राहुल गाँधी पर तीखा हमला बोला है।
इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने मोदी सरकार पर जिस तरह के आक्षेप लगाए हैं उससे विपक्ष की अपनी विश्वसनीयता ही लगातार गिर रही है। 22 अप्रैल के बाद पहले ये लोग गृहमंत्री अमित शाह के इस्तीफे के पीछे पड़ गए, ऑपरेशन सिंदूर सफलतापूर्वक संपन्न हो गया तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एक बयान के बाद उनके इस्तीफे की मांग करने लगे। अब सीडीएस अनिल चौहान के बयान को तोड़ मरोड़ कर ऑपरेशन सिंदूर की जांच करने की मांग कर रहे हैं और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं। राहुल गांधी की हरकतों से लग रहा है कि ये भारत नहीं चीन या पाकिस्तान के नागरिक हैं। राहुल गांधी देश के आत्मसम्मान और सेना के शौर्य और पराक्रम का लगातार अपमान कर रहे हैं।
राहुल गांधी को ध्यान रखना चाहिए कि आज जो पाकिस्तान भारत के लिए नासूर बन चुका है उसके निर्माण के पीछे तो नेहरू खानदान ही है और शायद इसीलिए जब पाकिस्तान को दर्द होता है तब राहुल गांधी व कांग्रेसी प्रवक्ताओं को दर्द होना स्वाभाविक ही है।
कांग्रेस इतने दर्द में है कि उनके एक नेता जो राहुल गाँधी के करीबी हैं उन्होंने विदेशी दौरे पर गये सांसदों की तुलना आतंकवादियों से कर जबकि इन दलों में कांग्रेस के अपने नेता शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा व सलमान खुर्शीद भी शामिल हैं । कांग्रेस ने अपने इन नेताओं को भी घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिससे दुखी होकर सलमान खुर्शीद को सोशल मीडिया पर लिखना पड़ा – क्या देशभक्त होना इतना मुश्किल है ? यह हरकतें स्पष्ट करती हैं कि कांग्रेस व उसके नेतृत्व का पाकिस्तान के प्रति प्रेम बहुत गहरा है।
राहुल गांधी व कांग्रेस बार -बार 1971 और इंदिरा गांधी को याद कर रहे हैं किंतु उन्हें यह भी याद करना चाहिए उस समय जो विपक्ष था उसने श्रीमती इंदिरा गांधी व तत्कालीन सरकार से यह नहीं पूछा था कि भारत ने अपने कितने विमान खो दिये जबकि उस समय पाकिस्तान ने भारत के 112 लड़ाकू विमानों को मार गिराने का दावा किया था। 1965 में चीन युद्ध के समय भी जब भारत की पराजय हुई थी तब भी भारत के विपक्ष ने जवाहर लाल नेहरू से कोई सवाल नहीं पूछा था कि आपकी हिंदी चीनी भाई -भाई की रणनीति कैसे फेल हो गई।
आज राहुल गांधी नरेंदर सरेंडर जैसे घटिया जुमले उछाल कर देश का अपमान कर रहे हैं । राहुल सहित भारत का विपक्ष इस कठिन समय में जो व्यवहार कर रहा है उसे “विपक्ष की भूमिका“ कहकर हल्के में नहीं लिया जा सकता। ये लोग सदन में बैठने के नहीं वरन विधिक कार्यवाही के पात्र हैं।
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