लखनऊ : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने कहा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण के खिलाफ विरोध जारी रहेगा। समिति ने आरोप लगाया कि प्रबंधन बिजली कर्मचारियों के दमन करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में बिजली कर्मचारियों के परिवार के सदस्य भी सत्याग्रह करने को तैयार हैं। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण में मनमानी की जा रही है। 9 जुलाई को हुई देशव्यापी हड़ताल के बाद उत्तर प्रदेश में दो बिजली वितरण कम्पनियों के निजीकरण का मामला अब बिजली कर्मचारियों, किसानों और उपभोक्ताओं के लिए राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बन गया है।
उत्तर प्रदेश में निजीकरण के खिलाफ आंदोलन में उपभोक्ताओं और किसानों का समर्थन विद्युत नियामक आयोग की टैरिफ पर चल रही सुनवाई में भी दिखाई दे रहा है। कानपुर और वाराणसी में हुई सुनवाई में उपभोक्ता परिषद समेत सभी वर्ग के किसानों और उपभोक्ता संगठनों ने निजीकरण के फैसले को वापस लेने की मांग की। इससे बौखलाकर पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने निजीकरण के लिए भय और दमन का रास्ता अपनाया है। प्रबंधन ने हज़ारों बिजली कर्मचारियों को परेशान करने के मकसद से उनका तबादला दूरस्थ स्थानों पर कर दिया है। कई कर्मचारियों का वेतन फेशियल अटेंडेंस के नाम पर रोक दिया गया है। कुछ के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई है। अब बिजली कर्मचारियों के परिजन इसके विरोध में सत्याग्रह शुरू करेंगे।
संघर्ष समिति का आरोप है कि बिजली कर्मचारियों के घरों में स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं जो उत्तर प्रदेश विद्युत सुधार अधिनियम 1999 और उत्तर प्रदेश सुधार अंतरण योजना 2000 का खुला उल्लंघन है। अधिनियम में स्पष्ट है कि रियायती दरों पर बिजली और चिकित्सा प्रतिपूर्ति की सुविधा सेवांत लाभों का हिस्सा है। इसमें ऐसा कोई भी बदलाव कभी नहीं किया जाएगा, जो 14 जनवरी 2000 को उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद में दी जा रही सुविधा से कम हो।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में जनसुनवाई के दौरान उपभोक्ताओं, किसानों, उद्यमियों, बुनकरों, कार्मिकों सभी ने एक स्वर में निजीकरण और बिजली दरों में वृद्धि का विरोध किया। परिषद ने कहा कि वर्ष 2000 से आईएएस को बिजली कम्पनियों की कमान सौंपी गई है। इसके बाद भी अगर सुधार नहीं हुआ तो इसके लिए उन अफसरों पर कार्रवाई की जाए। देश के आईएएस अधिकारियों के पास कोई विभाग नहीं होता। वे एक विभाग से दूसरे विभाग में घूमते रहते हैं। बिजली विभाग का निजीकरण होने पर वे दूसरे विभाग में चले जाएंगे। यही कारण है कि वाराणसी में जनसुनवाई के दौरान विभिन्न संगठनों ने निजीकरण के खिलाफ संघर्ष जारी रखने का आह्वान किया।
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