लखनऊ : बदलाव संस्था की ओर से लखनऊ में भिक्षावृत्ति में संलिप्त लोगों की स्थिति पर आधारित सर्वेक्षण के बाद तैयार की गई रिपोर्ट उपेक्षा और समावेशन 2024-25 का विमोचन समाज कल्याण मंत्री असीम अरूण ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि द्वारा दीप जलाकर व संस्था सहयोग से भिक्षावृत्ति से बाहर निकलकर आत्मनिर्भर जीवन की ओर अग्रसर होने वाले लाभार्थियों की कहानियों से हुई। इस मौके पर नरेन्द्र, नरेश, माया, राहुल और कपिल जैसे लोगों ने अपनी भावनात्मक कहानियां साझा कीं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि असीम अरुण ने कहा कि सदन व बैठकों में चर्चाएं तो बहुत होती हैं, लेकिन समाज के वंचित वर्ग की स्थिति के ऐसे आंकड़े व रिपोर्ट नहीं होती है। ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार के पास संसाधन तो हैं, लेकिन उन्हें पुनर्जीवित कर धरातल पर लाने की जरूरत है। परिवार आईडी के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार यह तय कर रही है कि परिवार के किस व्यक्ति को किस योजना का लाभ मिलना चाहिए। उन्होंने सरकारी साधनों के माध्यम से इस वर्ग की आवश्यकताओं की पहचान के प्रयासों में तेज़ी लाने की बात कही। बदलाव संस्था के संस्थापक शरद पटेल के प्रयासों की सराहना की।
कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. तारिक मोहम्मद ने कहा कि स्वीकार्यता और संवेदनशीलता सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे इस रिपोर्ट के माध्यम से संभव बनाया जा सकता है। पैनल चर्चा में उन्होंने कहा कि भिक्षावृत्ति से जुड़े लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय की स्माइल योजना में व्यापक पुनर्वास का प्रावधान किया गया है। आकांक्षा चंदेल ने भीख मांगने में लगे लोगों के पुनर्वास के लिए मनोचिकित्सा के महत्व पर प्रकाश डाला। कहा कि ऐसे लोग विभिन्न प्रकार के तनाव, उत्पीड़न, अवसाद, चिंता और नशीली दवाओं के शिकार होते हैं।
प्रोफ़ेसर विवेक कुमार सिंह ने कहा कि भीख मांगना कोई अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है जिसका समाधान सहानुभूति और योजनाबद्ध पुनर्वास से किया जा सकता है। डा. अर्चना सिंह ने महिलाओं की स्थिति पर चर्चा की और कहा कि भीख मांगने वाली महिलाओं और किशोरियों को मासिक धर्म के दौरान भोजन और सुरक्षा की भारी कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते उन्हें यौन उत्पीड़न का खतरा रहता है। बदलाव के संस्थापक शरद पटेल ने भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों के पुनर्वास के लिए संस्था की ओर से विकसित परिवर्तन मॉडल और अब तक पुनर्वासित लोगों के प्रभाव को विस्तार से साझा किया।
33 प्रतिशत के पास नहीं है कोई पहचान पत्र
52 प्रतिशत झुग्गियों में निवास करते हैं
48 प्रतिशत लोग नशे की लत से जूझ रहे हैं
80 प्रतिशत अशिक्षित हैं
49 प्रतिशत लोग आर्थिक संकट के चलते भिक्षावृत्ति में आए
19 प्रतिशत पारिवारिक विघटन के कारण
75 प्रतिशत के पास बैंक खाता नहीं है
38 प्रतिशत लोग फुटपाथ पर रात गुजारते हैं
94 प्रतिशत लोग भिक्षावृत्ति छोड़ना चाहते हैं
70 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई करना चाहते हैं
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