नई दिल्लीः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राज्य सरकार के विधेयकों को मंजूरी देने के लिए समयसीमा लागू करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को 14 सूत्री प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेजे हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपाल द्वारा उनके लिए आरक्षित विधेयक पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित कर सकता है, जबकि ऐसी कोई संवैधानिक रूप से निर्धारित समयसीमा नहीं है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए संदर्भ में अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के समक्ष विधेयक प्रस्तुत किए जाने पर उनके समक्ष संवैधानिक विकल्पों पर स्पष्टता मांगी गई है। प्रेसिडेंशियल रेफरेंस में यह सवाल पूछा गया है कि क्या न्यायिक आदेश यह निर्धारित कर सकते हैं कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को अनुच्छेद 200 (राज्य विधेयकों पर राज्यपालों द्वारा स्वीकृति प्रदान करने की प्रक्रिया को शामिल करने वाला प्रावधान) और 201 (जब विधेयकों को राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित किया जाता है) के तहत कब तक और कैसे कार्य करना चाहिए। इसके अलावा अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की सहमति न्यायोचित है या नहीं, इस बारे में भी सुप्रीम कोर्ट के विरोधाभासी निर्णय लिए गए थे। प्रेसिडेंसियल रेफरेंस में संविधान के अनुच्छेद 142 की रूपरेखा और दायरे पर भी सुप्रीम कोर्ट की राय मांगी गई है। दरअसल, यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस 13 मई 2025 को जारी किया गया था, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का अंतिम कार्य दिवस था। अब राष्ट्रपति के संदर्भ का जवाब देने के लिए संविधान पीठ गठित करने की जिम्मेदारी वर्तमान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर होगी।
राष्ट्रपति की ओर से प्रसिडेंसियल रिफरेंस में स्पष्टता की मांग करने का फैसला तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ के 8 अप्रैल के फैसले से उपजा है। इसमें राज्यपाल द्वारा 10 पुनः पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी और राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिए उन्हें सुरक्षित रखने की उनकी कार्रवाई को चुनौती दी गई थी। इस तरह के फैसलों में उनके कदम को असंवैधानिक घोषित किया गया था और राष्ट्रपति तथा राज्यपालों के लिए राज्य विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के लिए अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया गया था।
विधेयकों पर मंजूरी देने के बारे में समयसीमा तय करने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सवाल उठाने पर राजनीति तेज हो गई है। इस मुद्दे पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने नाराजगी जताते हुए कहा कि हम अपनी पूरी ताकत से इस लड़ाई को लड़ेंगे। स्टालिन ने गुरुवार को एक्स पर लिखा कि मैं केंद्र सरकार के राष्ट्रपति संदर्भ की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं, जो तमिलनाडु राज्यपाल मामले और अन्य उदाहरणों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले से तय की गई संवैधानिक स्थिति को पलटने का प्रयास करता है। यह कदम स्पष्ट रूप से दिखाता है कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने भाजपा के इशारे पर काम किया और जनता के जनादेश को कमजोर किया। यह निश्चित तौर पर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को कमजोर करने और उन्हें केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में काम करने वाले राज्यपालों के नियंत्रण में लाने की हताश कोशिश है। यह कानून की गरिमा और सुप्रीम कोर्ट की संविधान के अंतिम व्याख्याकार के रूप में अधिकार को भी चुनौती देता है।
स्टालिन ने कहा कि हमारा देश एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। इस संदर्भ में उठाए गए सवाल भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की संविधान में शक्तियों के बंटवारे को तोड़ने और विपक्षी दलों के प्रभुत्व वाली राज्य विधानसभाओं को अक्षम करने की खतरनाक मंशा को उजागर करते हैं। यह राज्य स्वायत्तता के लिए स्पष्ट और तत्काल खतरा है। इन गंभीर परिस्थितियों में, मैं सभी गैर-भाजपा राज्यों और पार्टी नेताओं से इस कानूनी लड़ाई में शामिल होकर संविधान की रक्षा करने की अपील करता हूं। हम अपनी पूरी ताकत से इस लड़ाई को लड़ेंगे। तमिलनाडु लड़ेगा और तमिलनाडु जीतेगा।
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