Ashoka University Professor Arrest NHRC Notice : पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर की गई एक सोशल मीडिया टिप्पणी को लेकर विवादों में छाए अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी अब राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार विमर्श का विषय बन चुकी है। जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम राहत देते हुए जमानत दी है, वहीं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (छभ्त्ब्) ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए हरियाणा के पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर दिया है।
आयोग ने हरियाणा डीजीपी से सात दिन के भीतर पूरे मामले की एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है, जिसमें प्रोफेसर की गिरफ्तारी, हिरासत की परिस्थितियाँ और उनके अधिकारों से जुड़े सभी तथ्यों का ब्यौरा मांगा गया है। आयोग का यह कदम एक समाचार रिपोर्ट को आधार बनाकर उठाया गया है। इस रिपोर्ट में उनकी गिरफ्तारी के तरीके और प्रोफेसर के साथ हुई कथित प्रक्रिया संबंधी अनियमितताओं का विस्तृत जिक्र किया गया था।
मानवाधिकार आयोग ने डीजीपी को भेजे नोटिस में इस बात पर चिंता जताई है कि प्रथम दृष्टया प्रोफेसर महमूदाबाद के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होना दिखाई देता है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गिरफ्तार व्यक्ति के मानवाधिकारों की रक्षा राज्य की जिम्मेदारी है और इस प्रकरण में यदि किसी भी प्रकार की कोई चूक हुई है, तो उसे स्पष्ट किया जाना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान प्रोफेसर महमूदाबाद की ओर से तर्क दिया गया कि उनकी सोशल मीडिया पोस्ट को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है और उनके अभिव्यक्ति के अधिकारों का हनन हुआ है। कोर्ट ने प्रोफेसर महमूदाबाद की इन दलीलों को गंभीरता से लेते हुए उन्हें अंतरिम जमानत प्रदान की। जमानत की खबर मिलते ही परिवार और सहयोगियों को राहत मिली है।
इस पूरे घटनाक्रम पर अशोका यूनिवर्सिटी की भी आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है। संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि यह फैसला सुकून देने वाला है। संस्थान ने कहा कि प्रोफेसर को जमानत मिलने से न सिर्फ उनके परिवार को, बल्कि विश्वविद्यालय समुदाय को भी नैतिक बल मिला है। बयान में यह भी कहा गया है कि अशोका यूनिवर्सिटी विचारों की स्वतंत्रता में विश्वास रखती है और किसी भी कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करती है।
गौरतलब है कि इस मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब सोशल मीडिया पर प्रोफेसर महमूदाबाद द्वारा किए गए एक पोस्ट को आधार बनाकर उन पर राष्ट्र विरोधी बयान देने का आरोप लगाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया था। उनके खिलाफ दर्ज की गई थ्प्त् में राजद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे, हालांकि कोर्ट ने तत्काल इस पर कोई ठोस आधार न पाते हुए गिरफ्तारी को अनुचित करार दिया।
अब जबकि छभ्त्ब् ने इस मामले में कदम उठाया है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि हरियाणा पुलिस अपनी कार्रवाई को कैसे सही और कानूनी रूप से जायज स्थापित करती है। यह प्रकरण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पुलिस की प्रक्रिया और मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर राष्ट्रीय बहस को एक नई दिशा देने की ओर संकेत कर रहा है। इसकी चर्चा देश ही नहीं विदेशों तक में हो रही है।
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