रुद्रप्रयागः उत्तराखंड के पहाड़ों में लगातार भूस्खलन और भूमि के धसाव की घटनाएं अब गंभीर संकेत दे रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर मनुष्य ने अपने स्वार्थ और लालच के चलते प्रकृति से छेड़छाड़ बंद नहीं की, तो आने वाले समय में इसके भयावह परिणाम भुगतने होंगे। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के भूवैज्ञानिक डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट का कहना है कि अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तलहटी क्षेत्रों में तेजी से भूमि का धसाव और भूस्खलन के मामले बढ़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इंसानी गतिविधियां हैं।
डॉ. बिष्ट के अनुसार, इंसान ने प्रकृति के साथ चलना छोड़ दिया है और विकास के नाम पर लगातार पहाड़ों को कमजोर किया जा रहा है। अंधाधुंध कटान, टनल, होटल व लॉज का निर्माण और असंगठित भवन गतिविधियां पहाड़ की मजबूती को कमजोर कर रही हैं। इंसान वहां बस रहा है, जहां उसे नहीं रहना चाहिए। संवेदनशील जोन में बस्तियों और निर्माण गतिविधियों के कारण नए-नए डेंजर जोन बन रहे हैं। अगर समय रहते इंसान नहीं संभला तो आने वाले वर्षों में विनाशकारी स्थितियां सामने आ सकती हैं।
भूवैज्ञानिक ने 2013 की केदारनाथ आपदा का उदाहरण देते हुए कहा कि उस समय अलकनंदा और मंदाकिनी घाटियों में भारी तबाही हुई थी। पहाड़ों में जमा मलबा बारिश और भू धसाव के बाद नीचे खिसक गया, जिससे बड़े पैमाने पर तबाही हुई। इसके बावजूद इंसान ने सबक नहीं सीखा और आज भी असुरक्षित मलबे के ऊपर सड़क और इमारतें बनाई जा रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि चाहे कितने भी करोड़ रुपये खर्च कर दिए जाएं, अगर पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना को नजरअंदाज किया गया, तो यह मलबा और ढलाव एक दिन जरूर खिसकेगा, जिससे और बड़े हादसे होंगे।
डॉ. बिष्ट ने कहा कि प्रकृति इंसान के इशारों पर नहीं चलती, बल्कि इंसान को प्रकृति के इशारों पर चलना होगा। जहां रहने योग्य स्थिति नहीं है, वहां बसावट नहीं करनी चाहिए। विकास योजनाओं में वैज्ञानिकों और भूवैज्ञानिकों की राय अनिवार्य रूप से शामिल की जानी चाहिए। डॉ. बिष्ट ने कहा कि भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं में वैश्विक कारण भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, ध्रुवीय क्षेत्रों में बदलाव और प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियां भी हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता को और बढ़ा रही हैं।
वर्ष 2025 में, उत्तराखंड में हुई प्राकृतिक आपदाओं के कारण अब तक कम से कम 239 लोगों की मौत हो चुकी है और 5,948 लोग घायल हुए हैं। राज्य को अरबों की संपत्ति का नुकसान हुआ है, विशेषकर अगस्त 2025 में हुई धराली की बाढ़ और भूस्खलन से बहुत अधिक नुकसान हुआ है। यह हाल के वर्षों में उत्तराखंड के लिए सबसे घातक रहा है और मानसून खत्म होने के बाद भी जोखिम बना हुआ है। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र (SEOC) के आंकड़ों के अनुसार, 2025 में आपदा से संबंधित हताहतों की संख्या में 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। उत्तराखंड भौगोलिक रूप से अस्थिर क्षेत्र है और भूस्खलन, अचानक बाढ़, हिमस्खलन, और भूकंप जैसी आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
मॉनसून हर साल उत्तराखंड के लिए बर्बादी लेकर आता है। बीते दस सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में करीब 18,464 प्राकृतिक आपदाएं आई हैं, जिन्होंने उत्तराखंड को बहुत नुकसान पहुंचाया है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला प्रदेश उत्तराखंड आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील राज्य है। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े खुद इसकी तस्दीक करते हैं। मॉनसून सीजन तो उत्तराखंड के लिए काफी घातक साबित होता है। क्योंकि मॉनसून उत्तराखंड को आपदा के रूप में हर साल कोई न कोई नया जख्म देकर ही जाता है। इस साल 2025 में भी उत्तराखंड को धराली आपदा के रूप में कभी न भूल पाने वाला जख्म मिला है।
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