लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के भविष्य को लेकर चल रही खींचतान में आज बच्चों और शिक्षा प्रेमियों को गहरा झटका लगा है। बच्चों और शिक्षा प्रेमियों को जिस इलाहाबाद हाईकोर्ट से उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी, वहां से भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। दरअसल, सूबे की सरकार के 5000 स्कूलों के मर्जर (विलय) के फैसले पर रोक लगाने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। कोर्ट ने दाखिल सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद प्रदेश की सियासत में भूचाल देखने को मिल रहा है। इस मामले को लेकर अभी तक सबसे मुखर रही आम आदमी पार्टी (AAP) ने इसे शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने का ऐलान कर दिया है।
आप प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस फैसले पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने सोमवार को एक बयान जारी करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के बच्चों ने जज साहेब से अपनी पढ़ाई बचाने की गुहार लगाई थी, लेकिन पहले सरकार ने स्कूल छीने और अब न्यायालय ने भी उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया है। संजय सिंह ने हाईकोर्ट के फैसले पर हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या यही है शिक्षा का अधिकार? उनकी बातों में स्पष्ट रूप से पीड़ा झलक रही थी। संजय सिंह का कहना है कि इस फैसेले से बेहद निराशा हुई क्योंकि यह फैसला सीधे तौर पर हजारों बच्चों के भविष्य से जुड़ा है। उन्होंने साफ लहजे में कहा कि आम आदमी पार्टी इस मामले पर चुप नहीं बैठेगी। संजय ने कहा कि हम इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाएंगे। संजय सिंह के इन शब्दों में दृढ़ता और संघर्ष का संकल्प साफ दिख रहा था।
पूरा मामला यूपी सरकार के उस फैसले से जुड़ा है, जिसके तहत राज्य के लगभग 5000 प्राथमिक विद्यालयों को चिन्हित किया गया था जहां छात्रों की संख्या कम है। इन स्कूलों को पास के उच्च प्राथमिक स्कूलों में समायोजित करने का आदेश 16 जून जारी कर दिया गया था। सरकार का तर्क है कि यह कदम संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उठाया जा रहा है, और उन्होंने 18 ऐसे स्कूलों का भी हवाला दिया जहां एक भी छात्र नहीं है।
हालांकि, इस फैसले का चौतरफा विरोध हो रहा है। सीतापुर और पीलीभीत के 51 बच्चों की ओर से दायर याचिका में यह दलील दी गई थी कि यह आदेश बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां छोटे बच्चों के लिए स्कूल उनके घर से काफी दूर हो जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों के जानकार इसे 6-14 साल के बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के हनन के रूप में देख रहे हैं। लेकिन, न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने शुक्रवार (4 जुलाई) को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार को योगी सरकार के इस फैसले को सही ठहरा दिया, जिससे मर्जर का रास्ता साफ हो गया। अब इस पर सियासत और गर्माएगी।
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद, उन बच्चों और अभिभावकों के लिए चिंता बढ़ गई है जिनके स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। सरकार के लिए यह फैसला एक तरह से जीत है, क्योंकि अब वह अपने प्लान के मुताबिक स्कूलों का विलय कर सकेगी। लेकिन, आम आदमी पार्टी के सुप्रीम कोर्ट जाने के ऐलान से यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि देश की सबसे बड़ी अदालत इस मामले पर क्या रुख अपनाती है। एक तरफ जहां सरकार संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष और याचिकाकर्ता बच्चों के शिक्षा के अधिकार और ग्रामीण शिक्षा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
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