रामपुर में एक विशेष प्रदर्शननी का आयोजन हुआ। इस अवसर पर पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम मुंशी प्रेमचंद जी की 145वीं जयंती के अवसर पर उन्हें विशेष रूप से स्मरण करने के लिए एकत्रित हुए हैं। मुंशी प्रेमचंद उपन्यास साहित्य जगत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के महान लेखक रहे हैं। उनके जैसा सजीव यथार्थ का चित्रण करने वाला लेखक विश्व में बहुत कम मिलता है। हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का उद्गम लगभग एक ही है, भाषा संरचना भी समान है, कालखंड भी एक ही है और विकास क्रम भी एक ही है।
केवल लिपि का अंतर है। उर्दू अरबी लिपि में और हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, लेकिन दोनों भाषाओं की भाव-भाषा एक ही है। हिंदी के शब्द उर्दू में और उर्दू के शब्द हिंदी में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। महात्मा गांधी ने इसे 'हिंदुस्तानी' कहा था। यदि कोई हिंदी और उर्दू को एक साथ देखना चाहे, तो मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में यह संभव है। प्रेमचंद जी ने अपने साहित्य में भाषाई भेदों को मिटाकर अनेकता से एकता की यात्रा को साकार किया है। यह उनकी साहित्यिक महानता का प्रमाण है। यदि कोई व्यक्ति भारतीय ज्ञान, विशेषकर ग्रामीण भारत के जीवन को ठीक से समझना चाहता है, तो उसे प्रेमचंद की कहानियों में इसका व्यापक और प्रामाणिक चित्रण मिलेगा। उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरक हैं।
कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद अपनी रचनाओं में ऐसे यथार्थवादी चित्र प्रस्तुत करते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई समाजशास्त्री सूक्ष्म दृष्टि से घटनाओं का अध्ययन कर रहा हो। जब कोई समाजशास्त्री किसी सामाजिक परिस्थिति का विश्लेषण करता है, तो उसमें एक सैद्धांतिक पहलू भी होता है। यह अधिकतर निबंधात्मक शैली में होता है। लेकिन प्रेमचंद ने उसी सामाजिक यथार्थ को कथात्मक लोकभाषा और शैली में सजीव चित्रण के साथ प्रस्तुत किया है। यह रचना अत्यंत महत्वपूर्ण और दुर्लभ है। उन्होंने ग्रामीण जीवन की विसंगतियों, त्रासदियों, संघर्षों और सामाजिक विषमताओं को बेबाकी से उजागर किया है।
कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और मुंशी प्रेमचंद जिस समय में लिखते थे, उस समय का समाज और जीवन उनके साहित्य में अत्यंत यथार्थवादी और मार्मिक रूप से प्रतिबिम्बित होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रेमचंद साहित्य को केवल कल्पना का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को प्रतिबिंबित करने का एक साधन मानते थे। इस दृष्टि से, मुंशी प्रेमचंद निश्चित रूप से मानव इतिहास के महानतम लेखकों और उपन्यासकारों में गिने जाते हैं। हम सभी रामपुर रज़ा पुस्तकालय परिवार की ओर से उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और आशा करते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ साहित्य पढ़ने में और अधिक रुचि लेंगी। एक पुस्तकालय के रूप में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम जनमानस में पढ़ने की आदत को प्रोत्साहित करें और उन्हें साहित्य के माध्यम से एक नए, समृद्ध, सुखद और शांतिपूर्ण समाज के निर्माण में भागीदार बनाएँ। रामपुर रज़ा पुस्तकालय इसी उद्देश्य से निरंतर प्रयासरत है कि अधिक से अधिक पाठक इससे जुड़ें और साहित्य के रचनात्मक संसार से प्रेरणा लें।
इस विशेष प्रदर्शनी में मुंशी प्रेमचंद के साहित्य से संबंधित दुर्लभ हिंदी और उर्दू पुस्तकें, उपन्यास और कहानियाँ प्रदर्शित की गई हैं। इनमें गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, कर्बला, प्रेमाश्रम, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, शतरंज के खिलाड़ी, प्रतिज्ञा, स्त्री जीवन की कहानियां, प्रेमचंद के विचार, सेवासदन, कायाकल्प, गांधी और प्रेमचंद और मुंशी प्रेमचंद के कथा साहित्य में सामाजिक चेतना जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ शामिल हैं। इसके अलावा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के ललित कला विभाग की प्रोफेसर मृदुला सिन्हा द्वारा बनाई गई पेंटिंग को भी प्रदर्शनी में जगह दी गई है।
प्रदर्शनी में मुंशी प्रेमचंद के जीवन से जुड़ी विभिन्न दुर्लभ तस्वीरें भी प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें 1933 में अजंता सिनेटोन (मुंबई फिल्म कंपनी) के साथ उनका अनुबंध, मुंशी प्रेमचंद निकेतन, जहाँ उन्होंने कई रचनाएँ लिखीं, मारवाड़ी कॉलेज, जहाँ उन्होंने 1931 में शिक्षक के रूप में कार्य किया, जयशंकर प्रसाद, ऋषभ चरण जैन और जैनेंद्र प्रसाद के साथ मुंशी प्रेमचंद की तस्वीरें, साथ ही उनकी जन्म कुंडली और सेवा पुस्तिका भी प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गई हैं।
यह विशेष प्रदर्शनी 31 जुलाई 2025 से 10 अगस्त 2025 तक प्रतिदिन प्रातः 10:00 बजे से सायं 5:00 बजे तक पुस्तकालय परिसर में जनता के लिए खुली रहेगी। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का संचालन शबाना अफसर ने किया। प्रदर्शनी के आयोजन में शाजिया हसन, पूनम सैनी और पुष्पा का विशेष योगदान रहा।
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