नई दिल्ली: एक नए अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण न केवल हृदय और फेफड़ों को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि यह मस्तिष्क में होने वाले एक सामान्य ट्यूमर, मेनिंगियोमा के खतरे को भी बढ़ा सकता है। मेनिंगियोमा नामक ट्यूमर, जो आमतौर पर कैंसरकारी नहीं होता, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढकने वाली पतली परत (मेनिन्जेस) में बनता है। यह ट्यूमर ज़्यादातर हानिरहित होता है, लेकिन कभी-कभी यह सिरदर्द, दौरे या अन्य तंत्रिका संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।
न्यूरोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रदूषण और मेनिंगियोमा के बीच एक संभावित संबंध हो सकता है, हालाँकि यह साबित नहीं हुआ कि प्रदूषण ही इसका कारण है। अध्ययन में यातायात से संबंधित प्रदूषकों जैसे नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और अति सूक्ष्म कणों का विश्लेषण किया गया, जो शहरी क्षेत्रों में ज़्यादा आम हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में ज़्यादा समय बिताते हैं, उनमें मेनिंगियोमा का खतरा ज़्यादा होता है।
डेनिश कैंसर संस्थान की शोधकर्ता उल्ला ह्विडफेल्ड ने कहा कि अल्ट्रावाइन कण इतने छोटे होते हैं कि वे रक्त-मस्तिष्क अवरोध को पार कर मस्तिष्क के ऊतकों को प्रभावित कर सकते हैं। यह अध्ययन डेनमार्क में लगभग 40 लाख वयस्कों पर किया गया, जिनकी औसत आयु 35 वर्ष थी और 21 वर्षों तक उन पर नज़र रखी गई। इस दौरान, 16,596 लोगों में मस्तिष्क या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के ट्यूमर पाए गए, जिनमें से 4,645 लोगों को मेनिंगियोमा था। इस शोध के माध्यम से यातायात से निकलने वाले अतिसूक्ष्म कणों और मेनिंगियोमा के बीच एक संभावित संबंध का पता चला। हालाँकि, ग्लियोमा जैसे गंभीर मस्तिष्क ट्यूमर और प्रदूषकों के बीच कोई मज़बूत संबंध नहीं पाया गया।
ह्विडफेल्ड ने कहा कि अध्ययन से पता चलता है कि यातायात और अन्य स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से मेनिंगियोमा का खतरा बढ़ सकता है। यह प्रदूषण के केवल हृदय और फेफड़ों पर ही नहीं, बल्कि मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है। उन्होंने आगे कहा कि अगर स्वच्छ हवा ब्रेन ट्यूमर के खतरे को कम कर सकती है, तो यह जन स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा बदलाव होगा। इससे हृदय रोग के खतरे में कमी आ सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस निष्कर्ष की पुष्टि के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।
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