ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ बनाम मोदी का ‘इंडिया फर्स्ट’

Summary : डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दूसरी बार सत्तारोहण का अंदाज ‘कर लो दुनिया मुठ्ठी में’ जैसा है। सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व शक्ति संतुलन बदल चुका है। इस एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका की भूमिका सर्वशक्तिमान की

कौशल किशोर

डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में दूसरी बार सत्तारोहण का अंदाज ‘कर लो दुनिया मुठ्ठी में’ जैसा है। सोवियत संघ के पतन के बाद विश्व शक्ति संतुलन बदल चुका है। इस एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका की भूमिका सर्वशक्तिमान की है। अनेक वैश्विक संस्थानों पर या तो उसका कब्जा है या उसके द्वारा वे निर्देशित हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ पर भी उसके प्रभाव को देखा जा सकता है। जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका की वैश्विक भूमिका कमजोर हुई। अमेरिकी हितों की अनदेखी की गई। घुसपैठियों की आवा-जाही बढ़ गई। महंगाई बढ़ी। रोजगार कम हुए। अर्थव्यवस्था हिल डुल गई।

डोनाल्ड ट्रंप का आक्रामक राजनीति में विश्वास है। इस मायने में वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह हैं । ‘अबकी बार मोदी सरकार’ तथा ‘मोदी है तो मुमकिन हैं’ की तर्ज पर अमेरिका में ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ खूब चला। फिलहाल ट्रंप विश्व राजनीति की सबसे चर्चित शख्सियत हैं। 20 जनवरी को उन्होंने कार्यभार संभाला। उसके बाद दुनिया के अनेक नेताओं से बात की। चुनाव जीतते ही तमाम समस्याओं को एड्रेस करना शुरू कर दिया। वे दुनिया में चल रहे युद्ध को रुकवा देंगे। व्यापार के क्षेत्र में उनकी शर्तें लागू होंगी। ‘अमेरिका फर्स्ट’ के नारे के साथ चुनाव लड़ा था। इसी भूमिका में देश को खड़ा कर देंगे । घुसपैठियों को चुन चुन कर बाहर कर देंगे। अमेरिका में ‘गोल्डन युग’ की वापसी होगी। भारत भी ऐसी कथित समस्याओं से जूझ रहा है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ की तर्ज पर ‘इंडिया फर्स्ट’ चर्चा में है।  

अमेरिका की राजनीति में ट्रंप 

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47 वे राष्ट्रपति हैं। इस बार डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस उनके खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं। 2016 में ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन को हराया था। 255 साल के अमेरिका के इतिहास में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी हैं। अमेरिका के 50 राज्य और कोलंबिया डिस्ट्रिक्ट के लोगों के वोट से अमेरिकी राष्ट्रपति का चयन होता है। वहां केवल दो प्रमुख राजनीतिक पार्टी है - डेमोक्रेटिक और रिपब्लिक। 196 वर्ष पहले 8 जनवरी 1828 को डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना हुई थी। अब तक इसके 15 राष्ट्रपति हुए हैं। इसके पहले राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन थे 1829 से 1837 तक। 1850 के दशक से यहां दो पार्टी ही प्रमुख रही हैं। रिपब्लिकन पार्टी को बहुत पहले ग्रैंड ओल्ड पार्टी (जीओपी) भी कहा जाता था। इसकी स्थापना डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना के बाद 20 मार्च 1854 को हुई।

ट्रंप के मुद्दों ने मतदाताओं को प्रभावित किया। उन्होंने इमीग्रेशन (अप्रवासन) और अर्थव्यवस्था को मुद्दा बनाया था। अमेरिका में बेरोजगारी और महंगाई है। घुसपैठियों का मुद्दा भी है कि वह अमेरिकियों की नौकरी ले रहे हैं। ट्रंप ने अपने चुनाव में इमीग्रेशन, अर्थव्यवस्था और युद्ध को बड़ा मुद्दा बनाकर एक व्यापक मतदाता वर्ग को अपने पक्ष में कर लिया। उनके कार्यकाल में कोई युद्ध नहीं हुआ था जिसमें अमेरिका संलिप्त रहा हो। जो बाइडेन ने इस्राइल-फिलिस्तीन युद्ध में ना तो इस्राइल के खिलाफ कोई कड़ा और बड़ा कदम उठाया और ना वह इस युद्ध को रोकने में कामयाब रहे। अमेरिका की बड़ी आबादी के लिए घरेलू मुद्दे, रोजगार और मजबूत अर्थव्यवस्था का महत्व है।

ट्रंप अमेरिका के बड़े पूंजीपतियों में हैं। उनका व्यवसाय रियल एस्टेट से लेकर मीडिया टेक्नोलॉजी तक है। उनकी कुल संपत्ति 5.6 बिलियन डॉलर ( 64 हजार 855 करोड़) है। एक करोड डॉलर की उनकी हवेली है जो 20 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है जहां 58 बेडरूम, 33 बाथरूम, 12 फायर प्लेस, एक स्पा, स्विमिंग पूल, टेनिस कोर्ट और गोल्फ कोर्स है। उनके पास 100 से ऊपर लग्जरी कार है, पांच एयरक्राफ्ट और 19 गोल्फ कोर्स है। अमेरिका एक पूंजीवादी राष्ट्र है जिसका राष्ट्रपति स्वयं एक बड़ा पूंजीपति और कारोबारी व्यवसायी है। अमेरिका के लिए व्यवसाय प्रमुख है। दुनिया के सबसे बड़े धनपति इलान मस्क ने उनके चुनाव में काफी प्रचार किया। ट्रंप ने उसे ‘एक स्टार’ कहा। वे डिपार्टमेंट आफ गवर्नमेंट एफिशिएन्सी के प्रमुख बनाए गए हैं।

ट्रंप की पहल

डोनाल्ड ट्रंप के शपथ के एक दिन पहले यानी 19 जनवरी को इस्राइल और हमास के बीच युद्ध विराम समझौता हुआ। इसके पीछे अमेरिका और ट्रंप की भूमिका थी। वह युद्ध रोकने की दिशा में पहल का श्रेय लेना चाहते हैं अर्थात अमेरिका दुनिया में अपने को पंच के बतौर पेश करना चाहता है। फिलहाल सफलता मिलती हुई नहीं दिख रही है। दो माह नहीं बीते कि इस्राइल और हमास समझौते में पलीता लग गया। इन पंक्तियों के लिखे जाने के वक्त इस्राइल ने गाजा पर ताजा हमला शुरू कर दिया है। दो दिन के अंदर 436 लोग मारे गए हैं। इनमें 130 तो बच्चे हैं। इस्राइल के बचे हुए बंदियों को छोड़ने में हमास का हीला-हवाली का रवैया है। हमास अमेरिका की शर्तों को मानने को तैयार नहीं है। ट्रंप के दफ्तर व्हाइट हाउस ने इस हमले को जायज ठहराया है। हालात 2 महीने पहले जैसे हो गये हैं।

रूस और यूक्रेन के  बीच तीन साल से जारी युद्ध को रोकने के लिए ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से  डेढ़ घंटे के करीब फोन पर वार्ता की। यूक्रेन के ऊर्जा ठिकानों पर अगले 30 दिनों तक रूस की ओर से हमला नहीं किया जाएगा, यह आश्वासन पुतिन के द्वारा दिया गया। व्हाइट हाउस ने इसे शांति की ओर पहला कदम बताया। लेकिन ठीक उसी दिन रूस ने यूक्रेन के पावर प्लांट पर मिसाइल दागे और यूक्रेन ने भी ड्रोन हमला किया। इसलिए यह कहना मुश्किल है की कब युद्ध समाप्त होगा और स्थाई शांति बहाल होगी। पहले के युद्धों से इसका अंतर यह है कि जहां सामरिक महत्व के ठिकाने पर हमले किए जाते थे, वहां अब जो हमले होते हैं, उसका निशान आम जनजीवन होता है। आम लोगों की जिंदगी तबाह और बर्बाद की जाती है। 

ट्रंप की आर्थिक नीतियां

डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने सत्ता संभालते ही आक्रामक नीतियाँ लागू की हैं। बड़े पैमाने पर निर्वासन (डिपोर्टेशन), व्यापार युद्ध, 6 जनवरी के दंगाइयों की माफी, और जन्मसिद्ध नागरिकता (बर्थराइट सिटिजनशिप) को खत्म करने की कोशिश है। ये सभी ट्रंप प्रशासन की विशेषताएँ हैं। अमेरिका में उनके सत्ता में लौटने से समाज में गहरी विभाजन रेखाएँ उभर आई हैं। यदि ट्रंप का पहला कार्यकाल लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण के लिए चर्चा में रहा है, तो दूसरा कार्यकाल सत्ता को स्थायी रूप से केंद्रीकृत करने और विपक्ष को खत्म करने का है। राष्ट्रपति बनने के कुछ हफ्तों के भीतर, ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों (इमिग्रेंट्स) को गिरफ्तार करने और निर्वासित करने के लिए संघीय एजेंसियों को अधिक शक्ति दी। 

ट्रंप की आर्थिक नीतियां राष्ट्रवादी हितों पर आधारित हैं। उन्होंने चीन, कनाडा, और मैक्सिको पर भारी टैरिफ लगाए, जिससे वैश्विक व्यापार अस्थिर हो गया। हालांकि वे ‘अमेरिकी नौकरियों की रक्षा’ का दावा करती हैं।  6 जनवरी 2021 के दंगाइयों को माफी देने से लेकर अर्धसैनिक समूहों को खुला समर्थन देने तक, ट्रंप ने राजनीतिक हिंसा को वैध बना दिया है। उनके कार्यकाल में न्यायपालिका को भी निष्ठावान समर्थकों से भर दिया गया है, प्रशासन से असहमत अधिकारियों को हटा दिया गया है, और मीडिया को साधने की दिशा में ट्रंप प्रशासन बढ़ चुका है।

‘अमेरिका फर्स्ट’ से आशय

दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने पहली बार अमेरिकी संसद के जॉइंट सेशन को संबोधित किया। उन्होंने भाषण की शुरुआत अमेरिका इज बैक, यानी ‘अमेरिका का दौर लौट आया है’ से की। ट्रंप ने कहा कि उन्होंने डेढ़ महीने में जो किया है, वह कई सरकारें अपने 4 या 8 साल के कार्यकाल में नहीं कर पाईं हैं। उन्होंने 2 अप्रैल से भारत पर ‘जैसा को तैसा’ टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि भारत हमसे 100 प्रतिशत से ज्यादा टैरिफ वसूलता है, हम भी अगले महीने से ऐसा ही करने जा रहे हैं। उनका भाषण 1 घंटा 44 मिनट का था। पिछले कार्यकाल में उन्होंने सिर्फ 1 घंटे का भाषण दिया था।

ट्रंप ने पिछली सरकारों विशेष रूप से जो बाइडेन पर हमला बोला, यह कहते हुए कि बाइडेन अमेरिकी इतिहास के सबसे खराब राष्ट्रपति हैं। उनके कार्यकाल में हर महीने लाखों अवैध लोग देश में दाखिल हुए। उनकी नीतियों के चलते देश में महंगाई बढ़ी। पिछले चार साल में 2.1 करोड़ लोग अवैध रूप से अमेरिका में घुसे हैं। हमारी सरकार ने अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़ा बॉर्डर और इमिग्रेशन क्रैकडाउन शुरू किया है। ट्रंप ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि अमेरिका अपनी तकदीर खुद लिखे। हम दुनिया की सबसे आजाद, सबसे उन्नत, सबसे शक्तिशाली और सबसे प्रभावशाली सभ्यता का निर्माण करेंगे। हम विज्ञान की नई सीमाओं को पार करेंगे, इंसान को अंतरिक्ष में आगे ले जाएंगे और मंगल ग्रह पर अमेरिकी झंडा फहराएंगे - और उससे भी आगे बढ़ेंगे! अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा, ‘एक अद्भुत भविष्य के लिए तैयार हो जाइए, क्योंकि अमेरिका का गोल्डन पीरियड अभी शुरू हुआ है।’ यही है ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’। 

ट्रंप का राष्ट्रवाद

‘अमेरिका फर्स्ट’ का विश्लेषण किया जाए तो इसमें उग्र राष्ट्रवाद और विस्तारवाद साफ देखा जा सकता है। ट्रंप प्रशासन की रुचि अपनी उग्रता के प्रदर्शन में है। वहां अवैध रूप से रह रहे लोगों को संबंधित राष्ट्रों के साथ वार्ता करके भी भेजा जा सकता था। लेकिन भारत, कोलंबिया आदि देशों के अवैध रूप से रहने वाले को हाथ-पैरों में बेड़ियां-हथकड़ियां डालकर जिस तरह भेजा गया, वह इसी उग्र राष्ट्रवाद का उदाहरण है। ट्रंप प्रशासन ने 18000 ऐसे भारतीयों को चिन्हित किया है, जो अवैध रूप से वहां रह रहे हैं और उन्हें वहां से भारत भेजना है।

ट्रंप को अपना विरोध या असहमति बर्दाश्त नहीं है। यह यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ वार्ता में दुनिया ने देखा भी। आखिरकार यूक्रेन के राष्ट्रपति को अमेरिका की शर्तों को मानने को बाध्य होना पड़ा। इस देश के पास रणनीतिक व सामरिक महत्व के खनिज और संसाधन हैं। उसके एक हिस्से पर रूस ने कब्जा कर तथा युद्ध के द्वारा उसके वर्तमान को बर्बाद-तबाह किया है। वहीं, अमेरिका हथियारों की सप्लाई के एवज में यूक्रेन के भविष्य को अपने पास रखने जा रहा है। ट्रंप ने जिस ‘अखंड अमेरिका’ का प्रारूप पेश किया है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इससे अनेक देशों की संप्रभुता खतरे में है। जो नया नक्शा पेश किया गया है, उसमें कनाडा को अमेरिका का 51 राज्य दिखलाया गया है।

‘इंडिया फर्स्ट’

‘अमेरिका फर्स्ट’ के बरक्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘इंडिया फर्स्ट’ की बात कही है। ट्रंप और मोदी की कार्यशैली में समानता है। दोनों में दोस्ती की दुनिया में चर्चा है। लैक्स फ्रीडमैन के पॉडकास्ट में पीएम मोदी ने कहा भी कि ‘उनके लिए अमेरिका फर्स्ट है। मेरे लिए इंडिया फर्स्ट। इसलिए हम दोनों की जोड़ी जम जाती है। हम अच्छी तरह से घुल मिल जाते हैं।’ अमेरिका के लिए उनके हित प्रधान है। भारत भी अपने हितों को नजर अंदाज नहीं कर सकता है। वैसे दोनों देशों की आर्थिक स्थिति में जमीन और आसमान का फर्क है। जहां 30 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका की इकोनॉमी 30 ट्रिलि - 226017यन डॉलर की है, वहीं 140 करोड़ की आबादी वाले भारत की इकोनॉमी 4 ट्रिलियन डॉलर है। ऐसे में अमेरिका की भूमिका बड़े भाई या डिक्टेट करने की रही है। 

अमेरिका का चीन के साथ सीधा ट्रेड वॉर है। इसकी वजह से रूस और भारत दोनों उसके लिए महत्व रखते हैं। जो बायडन के कार्यकाल में अमेरिका का रूस से तनातनी थी। ट्रंप ने पुतिन के साथ दोस्ती की पेगे बढ़ाई है। भारत भी उसके लिए महत्व रखता है। अमेरिका खुफिया विभाग की चीफ तुलसी गाबार्ड भारत आती हैं तो उनका स्वर बदल जाता है। वह कहती हैं कि ‘अमेरिका फर्स्ट की नीति को अकेला अमेरिका समझना सही नहीं होगा। हर एक नेता की जिम्मेदारी है कि वह अपने लोगों के हितों को प्राथमिकता देते हुए नीतियां बनाए।’ अर्थात भारत अपने हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता है।  यही है ‘इंडिया फर्स्ट’।

अमेरिका चीन के साथ अपने ‘ट्रेड वार’ के लिए रूस और भारत को साधने में लगा है। वहीं भारत भी ‘अमेरिका फर्स्ट’ का मुकाबला चीन और उसके साथ आर्थिक सरोकारों को बढ़ाकर करना चाहता है। चीन के साथ सीमा पर हुई झड़पों, विवादों और कटुता के बाद भी रिश्ते को पटरी पर लाने की दोनों तरफ से कोशिश हो रही है। 

पिछले साल अक्टूबर में रूस में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की शिखर वार्ता तथा उसके बाद अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच पेइचिंग में हुई बातचीत उदाहरण है। इधर चीनी नेताओं के बयानों में सौहाद्र्रता दिखी है। प्रश्न है कि क्या ट्रंप की नीतियां चीन और भारत को करीब ले आ रही हैं? यह देखना बाकी है कि ट्रंप के सत्तारोहण और उनकी घोषणाओं के बाद दुनिया में क्या नया घटित होता है?