प्रो. उमेश प्रताप सिंह
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने बड़ा राजनयिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता। यह पहली बार है, जब इस संधि को रोका गया है। भारत अब पाकिस्तान के साथ पानी की जानकारी साझा करना बंद कर सकता है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के इस्तेमाल पर भारत पर कोई रोक नहीं होगी। भारत अब पश्चिमी नदियों ’सिंधु, झेलम और चिनाब’ पर पानी जमा भी कर सकता है। इसका सबसे पहला असर यह हुआ है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सिंधु नदी पर छह नई नहरों के सभी काम रोकने की घोषणा कर दी। यह पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के लिए एक करारा तमाचा है, जिन्होंने 15 फरवरी को नदियों के जल बंटवारे के लिए विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान ने एतिहासिक सिंधु जल संधि की थी। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। सिंधु नदी प्रणाली में कुल छह नदियां शामिल हैं, जिनमें तीन पूर्वी नदियां रावी, ब्यास, सतलुज और तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, झेलम, चिनाब हैं। इस समझौते के तहत भारत को पूर्वी नदियों का नियंत्रण और उपयोग का अधिकार मिला है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का नियंत्रण मिला है। पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर पहुंचती हैं। संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए करने की अनुमति है।
इस संधि के तहत भारत को इंडस बेसिन का 20 प्रतिशत पानी ही मिलता था। भारत को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 13.4 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई की अनुमति है, जिसमें अभी तक सिर्फ 6.42 लाख एकड़ भूमि ही सिंचित हो रही है और भारत को 3.60 मिलियन एकड़-फुट जल संग्रहण की भी अनुमति है, लेकिन संग्रहण क्षमता अभी बहुत कम विकसित है। भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-रिवर पनबिजली परियोजनाएं बनाने की अनुमति है लेकिन ऐसी परियोजनाएं बनें, जिनमें पानी का भंडारण और डिज़ाइन ऐसा हो कि पाक को पानी मिल सके। भारत ने पश्चिमी नदियों पर किशनगंगा और रातले बांध बनाए हैं, जिन पर पाकिस्तान को ऐतराज रहा है। इन बांधों के डिज़ाइन और भंडारण को लेकर पाक का विरोध है। विवादों के समाधान के लिए एक स्थायी सिंधु जल आयोग बना। सिंधु आयोग की वर्ष में कम से कम एक बैठक होनी होती है। पश्चिमी नदियों पर बने बांध किशनगंगा और रातले पर भी पाक से विवाद है। जल-बंटवारे को लेकर देशों के बीच अनसुलझे प्रश्नों या मतभेदों जैसे- तकनीकी मतभेद के मामले में कोई भी पक्ष निर्णय लेने के लिये तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति के लिए विश्व बैंक से संपर्क कर सकता है।
पाकिस्तान को इंडस बेसिन का 80 प्रतिशत पानी मिलता था। पाकिस्तान ने सिन्धु जल प्रणाली का उपयोग करके अपनी कृषि को, विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांत में, कफिव्माज्बुत किया है। अब इस आपूर्ति के रोके जाने के बाद करोड़ों लोगों के जीवन, कृषि और पीने के पानी पर भारी प्रभाव पड़ेगा। यह पाकिस्तान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा संकट बन सकता है। 24 करोड़ की आबादी वाले देश पाकिस्तान के लिए ये तीन नदियां 16 मिलियन हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि, या कुल क्षेत्रफल का 80 प्रतिशत की सिंचाई करती हैं। पाकिस्तान में सिंधु, चिनाब, बोलन, हारो, काबुल, झेलम, रावी, पुंछ और कुन्हार नदियां बहती हैं। इसके अतिरिक्त भी यहां कई प्रमुख नदियों का प्रवाह होता है, मगर लाइफलाइन सिंधु नदी है। इस नदी का अधिकांश भाग पाकिस्तान को ही मिलता है। इसके साथ ही घरों में पीने के पानी से लेकर कृषि के लिए इस नदी का अधिकांश पानी ही इस्तेमाल किया जाता है। इस नदी को पाकिस्तान की राष्ट्रीय नदी का भी दर्जा प्राप्त है। इसके अलावा, सिंधु नदी से जुड़े कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पाकिस्तान में हैं। पानी की कमी से इनका उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे ऊर्जा संकट गहराएगा। पाकिस्तान में पहले से ही ऊर्जा संकट बड़ी समस्या बनी हुई है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध क्षेत्रों के निवासी इस नदी प्रणाली पर पीने के पानी के लिए निर्भर हैं। रोक लगने से पीने के पानी की किल्लत भी हो जाएगी।
सिंधु जल संधि, जिसे सफल माना जाता है, हमेशा से विवादित रही है। भारत को इससे कई परियोजनाओं में देरी और तनाव का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान ने सलाल और तुलबुल जैसी परियोजनाओं में अड़ंगा लगाया। किशनगंगा और रतले विवाद अभी भी अनसुलझे हैं। भारत ने संधि में बदलाव के लिए नोटिस जारी किया है। 1965 में फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा, तब से अब तक भारत के खिलाफ पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है, मगर भारत ने फिर भी इन नदियों का पानी कभी नहीं रोका था। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े। यह समझौता भारत-पाक संबंधों में स्थिरता का प्रतीक रहा है और इसे विश्व की सबसे सफल जल संधियों में से एक माना जाता था परन्तु भारत के दृष्टिकोण से यह संधि असंतुलित और अनुचित रही है। इसने पकिस्तान को असंगत रूप से लाभ पहुंचाया है। जल का 80 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में चला गया, जबकि शेष 20 प्रतिशत जल भारत के उपयोग के लिए छोड़ दिया गया। यह संधि ने भारत के प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को, भारत की जल भण्डारण और सिंचाई क्षमता को सीमित किया है। वस्तुतः, भारत अपनी पूर्वी नदियों के आवंटित जल का भी पूर्ण उपयोग नहीं कर पाया है। पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज के साथ इस परियोजना का उद्घाटन किया था।
भारत अब पाकिस्तान के साथ पानी की जानकारी साझा करना बंद कर देगा। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के इस्तेमाल पर भारत पर कोई रोक नहीं होगी। भारत अब पश्चिमी नदियों ’सिंधु, झेलम और चिनाब’ पर पानी जमा भी कर सकता है। सच कहा जाए तो एक हफ्ते या एक महीने में ज़मीन पर ज्यादा कुछ नहीं बदलने वाला है। संधि को स्थगित रखने से निचले तटवर्ती पाकिस्तान में पानी का बहाव बंद नहीं होगा। पश्चिमी नदियों के पानी को तो छोड़ ही दें, रावी का पानी भी जो पाकिस्तान में जाता है और जो संधि के तहत भारत का हिस्सा है, बिना किसी बाधा के बहता रहेगा। उन्हें सिर्फ महीनों और सालों की मेहनत और इंजीनियरिंग संरचनाओं के निर्माण में भारी मात्रा में पैसा लगाकर ही वश में किया जा सकता है। भारत ने तीन पश्चिमी नदियों पर चार प्रोजक्ट की योजना बनाई है। इनमें से दो चालू हो चुकी हैं और दो के लिए तैयारी चल रही है। भारत ने पाकिस्तान के हिस्से वाली चिनाब पर बगलिहार बांध और रतले प्रोजक्ट की शुरूआत की है।
चिनाब की एक दूसरी सहायक नदी मरुसुदर पर पाकल दुल प्रोजक्ट और झेलम की सहायक नदी नीलम पर किशनगंगा प्रोजक्ट शुरू की गई है। इनमें से सिर्फ बगलिहार बांध और किशनगंगा प्रोजक्ट ही चालू है। ऐसे में अगर भारत पाकिस्तान के हिस्से वाली तीनों नदियों का पानी पूरी रोकती है तो उसमें 5 से 10 साल का समय लग सकता है क्योंकि भारत को इन तीनों नदियों से मिलने वाले लाखों क्यूसेक पानी के इस्तेमाल के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा। जो हो सकता है, वह यह नहीं है कि अभी कुल प्रवाह मात्रा में कमी आएगी बल्कि संधि के अक्षरों में छोटे-मोटे बदलाव किए जा सकते हैं। दोनों पक्षों के सिंधु आयुक्तों वाले स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की वार्षिक बैठकों को रोकना, नदी के प्रवाह से संबंधित सभी डेटा को रोकना और इस तरह के अन्य कदम अब तुरंत शुरू होने की संभावना है। इसका असर अभी पाकिस्तान पर नहीं पड़ सकता है लेकिन तीन महीने बाद बरसात के मौसम में और छह महीने बाद सर्दियों के दौरान कम जल प्रवाह के मौसम में डेटा की अनुपस्थिति का असर पाकिस्तान पर बहुत ज़्यादा पड़ सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह अवसर है कि वह अब इन नदियों के जल का पूर्ण उपयोग करके अपनी लंबित परियोजनाओं को पूरा करे। इससे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पानी की कमी को भी दूर करने में मदद मिलेगी।
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