संभल से सिकंदरा तक 'गाजी मेले' पर गाज
Summary : उत्तर प्रदेश में ’’गाजी मियां’’ के नाम से चर्चित सैयद सालार मसूद गाजी से जुड़े तमाम स्थानों पर लगने वाले मेलों पर अब संकट खड़ा हो गया है। पहले संभल जनपद में होली के बाद लगने वाले नेजा मेले के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई तो अब प्रयागराज के सिकंदरा कस्बे में ह
हरि मंगल
उत्तर प्रदेश में 'गाजी मियां' के नाम से चर्चित सैयद सालार मसूद गाजी से जुड़े तमाम स्थानों पर लगने वाले मेलों पर अब संकट खड़ा हो गया है। पहले संभल जनपद में होली के बाद लगने वाले नेजा मेले के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई तो अब प्रयागराज के सिकंदरा कस्बे में हर रविवार को लगने वाले रौजा मेला स्थल पर 23 मार्च रविवार को ताला लटका मिला। वहां फूल माला, प्रसाद और मुर्गे की दुकान वाले गायब मिले। बताया गया कि एक दिन पहले ही पुलिस प्रशासन ने आयोजकों को बता दिया था कि मेले के आयोजन पर सरकार की ओर से मनाही कर दी गई है। बहराइच में गाजी मियां की मजार पर और भदोही सहित कुछ अन्य स्थानों पर लगने वाले इस प्रकार के मेलों के आयोजन पर भी रोक लगाने के लिये तमाम हिन्दू संगठन आवाज बुलंद कर रहे हैं। प्रदेश में गाजी मियां को महिमामंडित करके अनेकों स्थानों पर एक लम्बे अर्से से मेला का आयोजन हो रहा है, जहां बड़ी संख्या में हिन्दू समाज के लोग भी भागीदारी कर रहे हैं। दरअसल, इस प्रकार के मेलों के आयोजक समाज के गरीब, असहाय, अशिक्षित लोगों को उनकी दैनिक समस्याओं, गंभीर बीमारियों को भूत-प्रेत से जोड़ कर मुफ्त में निजात दिलाने का आश्वासन देकर लम्बे अर्से से लूटते आ रहे है। यद्यपि सालार महमूद गाजी के नृशंस और क्रूर कृत्यों को उजागर करते हुए हिन्दू समाज के साथ तमाम संगठन इस प्रकार के आयोजन का लम्बी अवधि से विरोध करते आ रहे हैं लेकिन धर्म और परम्परा का वास्ता देकर किसी सरकार ने अब तक इस पर रोक लगाने की हिम्मत नहीं दिखाई है। गाजी मियां के नाम पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी करने वाले हिन्दू समाज के लोगों ने कभी भी सालार मसूद के उन हिन्दू और राष्ट्रद्रोही कारनामों को जानने का प्रयास नहीं किया। सच तो यह है कि उसे संत के रुप में प्रस्तुत करने के लिए प्रायोजित महिमामंडन के मायाजाल में तमाम हिंदू इतने मुग्ध हुए हैं कि वह जानबूझ कर अंजान बन गए। अब विवाद बढ़ा है, तो एक बार फिर सालार मसूद गाजी का कृत्य सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर छाया हुआ है।
भारतीय इतिहास में सामान्य जानकारी रखने वाले हर व्यक्ति को अफगानिस्तान के गजनी के शासक महमूद गजनवी के बारे में जानकारी है। भारत पर मात्र 26 वर्ष में 17 बार हमला करके सोमनाथ मदिंर के वैभव को लूटने और हिन्दुओं का कत्लेआम करने के लिए कुख्यात गजनवी का साथ देने में जिस व्यक्ति नाम आता है, वह सैयद सालार मसूद गाजी है, जो उसका भांजा और सेनापति भी था। सैयद सालार मसूद गाजी के जन्म स्थान को लेकर भी विरोधाभाष है। माना जाता है कि सैयद सालार का जन्म 11वीं सदी के प्रारम्भ में ही 10 फरवरी, 1014 को राजस्थान के अजमेर में हुआ था जबकि तमाम इतिहासकारों का कहना है कि उसका जन्म अफगानिस्तान में हुआ था और वह अपने मामा महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। गाजी के जीवन चरित्र का खुलासा करती किताब ’द लाइफ एंड़ टाइम्स ऑफ सुलतान महमूद आफ गाजना’ में कहा गया है कि गजनी के नेतृत्व में 1026 में सैयद सालार मसूद गाजी ने सबसे बड़ा हमला सोमनाथ मंदिर पर किया था। इस हमले से पहले उसने रास्ते में पड़ने वाले हिन्दू मन्दिरों, रियासतों का विध्वंस करते हुए हिन्दुओं का कत्लेआम किया। सोमनाथ और उसके आस-पास की रियासतों को लूटने के बाद वह आगे बढ़ा। सन 1030 में वह उप्र के बाराबंकी के सतरिख से लूटपाट करता हुआ श्रावस्ती पहुंचा, जहां राजा सुहेलदेव का शासन था। राजा सुहेलदेव ने आस-पास के छोटे-बड़े 21 राजाओं तथा वनवासियों को साथ लेकर 1034 में बहराइच में सैयद सालार मसूद की सेना पर बड़ा हमला किया और 15 जून 1034 को इस आक्रांता को मार गिराया। उसकी सेना भी भाग गई तो तमाम मुसलमानों ने उसकी इच्छा के अनुरुप शव को बहराइच जिला मुख्यालय के पास संघा परासी नामक स्थान पर चितौरा झील के समीप दफना दिया। कहा जाता है कि उसने अपने मात्र 20 वर्ष की आयु में हजारों हिंदुओं का कत्लेआम किया, जिसके लिए उसे गाजी (धार्मिक योद्धा) की उपाधि दी गई।
समय के साथ उसकी कब्र को मजार का रुप दे दिया गया। उसकी मौत के लगभग 200 वर्ष बाद दिल्ली में सत्तासीन मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने 1250 में कब्र को मकबरे में बदल दिया। बताया जाता है कि मुगल शासक फिरोजशाह तुगलक भी गाजी के कारनामों को जानकर बहुत प्रभावित हुआ और मकबरे के बगल में कई गुंबदों के साथ सुन्दर द्वार का निर्माण कराया। बस इसके बाद गाजी की कब्रगाह दरगाह के रुप में विख्यात हो गई। उस दरगाह पर सालाना जलसे और उर्स होने लगे। स्थानीय लोगों ने उसे संत बाले मियां, ’हठीला’ नाम से प्रचारित कर दिया। बताया जाता है कि सालार मसूद आज के उप्र में प्रवेश करके बहराइच तक पहुंचा था। इस बीच उसकी सेना ने जहां-जहां पड़ाव डाला था, वहां के मुस्लिम समाज ने उसको महिमामंडित करते हुए मेले का आयोजन शुरु कराया। इसके दो फायदे हुए एक तो गाजी की आक्रांता वाली छवि धूमिल पड़ गई और दूसरा मेले से अवैध कमाई होने लगी। आज नौचंदी मेला, पुरनपुर मेला, थांमला का मेला, संभल का नेजा मेला, बहराइच का मेला, प्रयागराज में सिकंदरा का मेला तथा भदोही का मेला गाजी मियां के नाम पर लगने वाले प्रमुख मेलों में शामिल है। कहा तो यहां तक जाता है कि बहराइच में लगने वाले मेले में तमाम ऐसे लोग भी आए, जो वहां से एक ईंट लेकर गये और अपने गांव कस्बे में उसे गाजी मियां की विरासत बता कर मेला लगवाना शुरू कर दिया। इस तरह करीब 1,900 जगहों पर गाजी मियां के नाम पर मेले लगने की बात कही जाती है। एक और उल्लेखनीय तथ्य यह है कि अनेक स्थानों पर साप्ताहिक मेले लगते हैं जबकि विशेष मेलों का आयोजन होली के बाद, मार्च से जून तक आयोजित किए जाते है क्योंकि तब तक किसानों, मजदूरों की फसलें तैयार होकर कट चुकी होती है और उनके पास चढावा के लिए पर्याप्त पैसे आ जाते हैं। इस बार होली के बाद संभल में लगने वाले नेजा मेले के आयोजन को प्रशासन ने रोक दिया, जिसका असर अब अन्य मेले के आयोजन पर पड़ रहा है।
संभल के सदर कोतवाली के चमन सराय मोहल्ले में होली के बाद नेजा मेला लगाए जाने की परम्परा वर्षों पुरानी है, लेकिन इसका विरोध भी हिन्दू संगठन से जुड़े लोग करते आ रहे हैं। इस वर्ष 18 मार्च को मेला के लिए नेजा यानी बांस या बड़ी बल्ली गाड़ने का कार्यक्रम तय किया गया था। इसके अंतर्गत एक ऊंची लकड़ी की बल्ली में हरे रंग का झंड़ा लगा कर जमीन में गाड़ दिया जाता है, जो सैयद सालार मसूद की विरासत का प्रतीक है। आयोजन में आने वाले लोग इस विरासत के सम्मान की पूजा करते थे और सम्मान में मनौती और उसके पूर्ण होने की की कामना में अच्छी राशि का चढ़ावा चढ़ा कर जाते थे। इस वर्ष मेला 25 से 27 मार्च तक आयोजित होना था लेकिन नेजा मेला आयोजन समिति के सदस्यों ने जब अपर पुलिस अधीक्षक से आयोजन की अनुमति मांगी तो उन्होंने समिति से पूछा कि यह मेला किसके नाम पर आयोजित किया जाता है ? जबाब में गाजी मियां का नाम आते ही उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि इतिहास के अनुसार, वो आक्रमणकारी महमूद गजनवी का सेनापति था। उसने सोमनाथ को लूटा था और देश में कत्लेआम किया था, यह इतिहास में दर्ज है। किसी भी लुटेरे की याद में यहां कोई आयोजन नहीं होगा। अगर किसी ने ऐसी कोशिश की तो उसके विरुद्ध कठोर कार्यवाही होगी। बताया जाता है कि इस प्रकार के कुल छह नेजा मेले संभल, अमरोहा, बहराइच, भदोही, बाराबंकी ओर मुरादाबाद में लगते आ रहे हैं।
संभल की तरह ही मुरादाबाद की बिलारी तहसील के गांव थांवला में भी होली के बाद नेजा मेला लगता था लेकिन इस वर्ष सनातन जागरण मंच सहित अनेकों हिन्दू संगठनां ने उपजिलाधिकारी बिलारी को ज्ञापन देकर थांवला गांव में लगने वाले नेजा मेले पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। प्रबल विरोध को देखते हुए आयोजक शांत होकर बैठे हैं। प्रशासन का कहना है कि मेले की अनुमति मांगने अभी तक कोई नहीं आया है। थांवला से सैयद सालार मसूद का कोई सीधा सरोकार नहीं है। श्रावस्ती की ओर जाते समय उसने फौज के साथ इस स्थान पर अपना पड़ाव डाला था।
बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी को दफनाया गया था। एक अर्से बाद में मुगल शासकों ने उसकी कब्र को दरगाह के रुप में परिवर्तित कर दिया था और वहां धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन किए जाने लगे। पिछले एक लम्बे अर्से से गाजी की मजार दरगाह शरीफ में ’जेठ मेले’ का आयोजन होता आ रहा है, जो पूरे एक माह तक चलता है। संभल के बाद बहराइच में होने वाले विरोध के दृष्टिगत इस वर्ष आयोजक ’वक्फ दरगाह शरीफ प्रबंधन’ ने जेठ मेले के वार्षिक ठेकों की नीलामी को अपरिहार्य कारणों का हवाला देते हुए अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया। प्रभारी प्रबंधक अलीमुल हक की ओर से जारी नोटिस में कहा गया है कि यजदमाही तहबाजारी के वार्षिक ठेके के साथ-साथ वर्ष 25-26 के लिए शीरीनी, चादर, फूल, अर्जी कौड़ी और मुंडन के ठेकों की नीलामी को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जाता है। जानकारों का कहना है कि यह सब कुछ प्रशासन के दबाव में किया गया है और अब मेले का आयोजन असम्भव सा प्रतीत हो रहा है। 20 मार्च को बहराइच गए मुख्यमंत्री ने भी बिना नाम लिए कहा कि आक्रांताओं का महिमामंडन देशद्रोह की नींव को पुख्ता करना है। उन्होंने युद्ध में गाजी को मारने वाले महाराजा सुहेलदेव की वीरता की प्रशंसा करते हुए बहराइच की पहचान बताया था।
प्रयागराज के सिकंदरा कस्बे में भी गाजी मियां का मेला प्रत्येक रविवार को लम्बी अवधि से लग रहा है। यहां भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं। वैशाख माह की पूर्णिमा को यहां भी दो दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। सिकंदरा में एक ही परिसर में कुल 6,000 हैं, जिसमें बड़े पुरुष, जोधा परिहार, बाबा बरहना, पहरु बाबा, सती अमीना और मुख्य गाजी मिया की मजार है। इस मेले पर रोक लगाने के लिए तमाम संगठन आवाज उठाते रहे हैं। युवा विकास पार्टी के अध्यक्ष संजीव मिश्रा ने भी मुख्यमंत्री सहित तमाम जनप्रतिनिधियों को पत्र भेज कर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी। 23 मार्च रविवार को वहां ताला लगा दिया गया और दुकानदारों को भगा दिया गया। यद्यपि आयोजकों ने लोगों को बताया कि मरम्मत का कार्य चल रहा है, इसलिए ताला बंद करा दिया गया है लेकिन सूत्रों का कहना है कि रात्रि में ही पुलिस ने आयोजकों को मेले पर रोक लगाने का आदेश सुना दिया था।
जौनपुद जनपद के शाहगंज तहसील अंतर्गत आने वाले खेतासराय कस्बे में गाजी मियां के नाम पर एकदिवसीय बड़ा मेला लगता है, जिसके लिए महीनों पहले से ही तैयारी शुरु होती है। इसे स्थानीय लोग गुरखेत का मेला भी कहते है। इस वर्ष 8 मई को यह मेला लगना है लेकिन प्रदेश भर में हिन्दू संगठनों के विरोध और प्रशासन के कठोर कदम को देखते हुए आयोजक शांत है। यहां का आयोजन मुजावर, डफाली या पुजेर जैसे कुछ नामधारी लोगों के पास है। यहां गाजी की कोई स्थाई मजार नहीं है। मेले से एक दिन पहले रात्रि में मुजावर या डफाली ’मनेछा’ गांव से बांस में हरा झंड़ा लगा कर, जिसे लहबर के नाम से जाना जाता है, पहले से तय गुरखेत के मैदान पर गाड देते हैं। आने वाले लोग इसे गाजी मियां की विरासत का प्रतीक मानकर मन्नतें मानते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहां की पूजा को कनूरी नाम से जाना जाता है, जिसके अंतर्गत लोग गाड़े गए बांस में 50-100 या अधिक की रकम को अपनी मन्नत के साथ बांध देते हैं फिर मुजावर के माध्यम से मिट्टी के बर्तन में चने की दाल, बैंगन की सब्जी, चावल और बाटी बनाकर प्रसाद के रुप में चढ़ाया जाता है। यहां मुर्गे, बकरे जैसे जानवरों की लोग बलि भी देते रहे हैं। मुजावर लोगों से कहता है कि आपकी मन्नत और पैसा बहराइच में गाजी मियां की दरगाह को सौंप दिया जाएगा लेकिन जानकार बताते हैं कि यही पैसा मुजावरों की कमाई है। प्रशासन का कहना है कि अभी तक कोई भी व्यक्ति मेले के लिए अनुमति मांगने नहीं आया है। यदि कोई आएगा, तो शासन के निर्देशों के अनुरुप कार्यवाही होगी।
भदोही जनपद के मर्याद पट्टी कस्बे में लगने वाले 5 दिवसीय मेले का विरोध करते हुये हिन्दू जागरण मंच ने मुख्यमंत्री ज्ञापन दिया है। हिन्दू जागरण मंच के काशी प्रांत के भदोही जिला संयोजक रामेश्वर सिंह ने अपने पत्र में कहा है कि सोमनाथ मन्दिर के विध्वंसक,आक्रांता और हिन्दुओं के हत्यारे तथा मां बहनों की अस्मत से खिलवाड़ करने वाले सैयद सालार मसूद गाजी के नाम पर लगने वाले मेले का हम लोग विरोध और बंद कराने की मांग करते है। संयोजक ने आरोप लगाया है कि मेले में गांव, कस्बे और दूरदराज से आने वाली महिलाओं को झांसे में लेकर मजार पर चादर चढवाया जाता है और धीरे धीरे उनका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता है। आरोप है कि लव जेहाद के भी मामले सामने आये है। मामले की गम्भीरता को देखते हुये जिलाधिकारी द्वारा खुफिया जांच करायी जा रही है। इसी बीच आरोप लगा है कि मजार का निर्माण भी अवैध रुप से कराया गया है। फिलहाल भदोही में भी कोई आयोजक सामने आने को तैयार नहीं है।
सैयद सालार मसूद के सम्मान में लगने वाले मेले के आयोजन को लेकर भाजपा जहां खुलकर विरोध कर रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ साफ शब्दों में कह रहे हैं कि किसी भी आक्रांता का महिमामंडन स्वीकार नहीं किया जाएगा, वहीं अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सिर्फ इतिहास के पन्ने पल्ट रही है। अखिलेश के बयान पर भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि सपा ने सत्ता में रहते हुए गाजी की मजार को सजाने का कार्य किया है। उसे जब भी अवसर मिला, उसने आतंकवादियों, आक्रांताओं को महिमामंडित किया और देश विरोधी ताकतों को प्रश्रय दिया। राजभर ने तो इस आक्रांता से जुड़े बहराइच और श्रावस्ती मेले पर भी रोक लगाने की मांग की है। सैयद सालार मसूद गाजी और उसके पिता अबू सैयद सालार साहू गाजी को लेकर तमाम मनगढंत किस्से-कहानियां उनके अनुयायियों की जुबान पर रहती है। एक कहानी के अनुसार सालार मसूद ने जोहरा बीबी नामक महिला से शादी की थी, जो बचपन से अंधी थी लेकिन सालार मसूद ने उसे अपने प्रभाव से ठीक कर दिया। उनके पिता को बड़ा संत बताते हुए उन्हें बूढे बाबा के रुप में प्रचारित किया गया जबकि सच यह है कि यह मुस्लिम शासक हिंदुओं के साथ-साथ उनके मूर्ति पूजा और मन्दिरों के कट्टर विरोधी थे।
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