महाकुंभ से सनातनी विरासत को ‘संजीवनी’
Summary : प्रयागराज में महाकुंभ का दिव्य समापन हो चुका है। सेवा, साधना और सनातन संस्कृति का अद्भुत संगम जनवरी के दूसरे सप्ताह से फरवरी 2025 के आखिरी सप्ताह तक करीब दो माह तक देखने को मिला। सनातन संस्कृति की इस अनमोल धरोहर में करोड़ों श्रद्धालुओं ने पुण्य स्नान, जप-त
अमित झा
प्रयागराज में महाकुंभ का दिव्य समापन हो चुका है। सेवा, साधना और सनातन संस्कृति का अद्भुत संगम जनवरी के दूसरे सप्ताह से फरवरी 2025 के आखिरी सप्ताह तक करीब दो माह तक देखने को मिला। सनातन संस्कृति की इस अनमोल धरोहर में करोड़ों श्रद्धालुओं ने पुण्य स्नान, जप-तप और दान कर अपने जीवन को कृतार्थ किया। करोड़ों श्रद्धालु, संत-महात्मा, अखाड़ों के तपस्वी और देश-विदेश से आए भक्तजन इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बने। चारों ओर गूंजते शिव मंत्र, वेद ऋचाएं, साधुओं की तपस्या, गंगा आरती की दिव्यता और संगम स्नान की पवित्रता, इन सबने प्रयागराज की भूमि को तपोभूमि में परिवर्तित कर दिया। महाकुंभ में 56 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पावन संगम में डुबकी लगाई। इससे पूरे वातावरण में आध्यात्म की तरंगें प्रवाहित हो गईं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ के ऐतिहासिक आयोजन को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की पीठ लोकसभा में भी थपथपाई है। कहा भी कि गंगाजी को धरती पर लाने के लिए एक भागीरथ प्रयास लगा था, वैसा ही महाप्रयास इस महाकुंभ के भव्य आयोजन में भी हमने देखा। उन्होंने लाल किले से सबका प्रयास के महत्व पर जोर दिया था। पूरे विश्व ने महाकुंभ के रूप में भारत के विराट स्वरूप के दर्शन किए। सबका प्रयास का यही साक्षात स्वरूप है। यह जनता-जनार्दन का, जनता-जनार्दन के संकल्पों के लिए, जनता-जनार्दन की श्रद्धा से प्रेरित महाकुंभ था। महाकुंभ में हमने हमारी राष्ट्रीय चेतना के जागरण के विराट दर्शन किए हैं। यह जो राष्ट्रीय चेतना है, यह जो राष्ट्र को नए संकल्पों की तरफ ले जाती है, यह नए संकल्पों की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है। महाकुंभ ने उन शंकाओं-आशंकाओं को भी उचित जवाब दिया है, जो हमारे सामर्थ्य को लेकर कुछ लोगों के मन में रहती है। इतना ही नहीं, देश-दुनिया के लोगों के जेहन में भारत की एक दिलचस्प छवि फिर से बनी है। महाकुंभ के आयोजन और इसके बाद से देश में अलग तरह की चेतना जगती दिखने लगी है। हालांकि, ऐसा अयोध्या में पिछले वर्ष बने राम मंदिर के बाद से ज्यादा ही दिख रहा है, पर महाकुंभ ने देश की अखंडता, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाने में गजब का रोल अदा किया है। महाकुंभ से सनातनी विरासत के और समृद्ध होने और उसे ‘संजीवनी’ मिलने की बात कही जाने लगी है।
पिछले करीब एक दशक का समय सनातनी समाज के लिहाज से एक अलग ही स्तर पर दिखता आया है। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले देश में हिन्दू समाज में अपने सांस्कृतिक गौरव, अस्मिता को लेकर उदासी सी छायी दिखती थी। बहुसंख्यकों को छोड़ वर्ग विशेष के लिए तुष्टिकरण की राजनीति होती नजर आती थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), भाजपा को लगातार निशाने पर रखा जाता था। हकीकत तो यही था कि आरएसएस की स्थापना भारत की आजादी से पहले 1925 में हुई थी। देश में तब भी हिन्दू थे लेकिन वो आरएसएस के साथ नहीं, महात्मा गाँधी के साथ चले। इसके बदले लोगों ने यह देखा कि उनकी जमीन काट कर मुसलमानों को दे दी गयी, वो जमीन जो हजारों साल से हिंदुओं की थी। क्षणिक आवेश के बाद शांत हुआ देश का हिन्दू तब भी गोडसे के साथ नहीं गया, जवाहर लाल नेहरू के साथ गया। आजादी के चार दशक बाद, 1980 में भाजपा बनी लेकिन देश का हिन्दू तब भी भाजपा के साथ नही था, इंदिरा गांधी के साथ था। राजीव गांधी के साथ था। तब संसद भवन, राष्ट्रपति भवन में रोजा इफ्तार होता था। हिन्दू ने कोई ऐतराज नहीं किया। वह तो अपने घर में माता को चुनरी चढ़ा कर खुश था। हज के लिए सब्सिडी दी जा रही थी, हिन्दू तब अमरनाथ वैष्णो देवी की यात्रा में आतंकियों की गोली खा कर भी खुश था। ट्रेनों में, पार्कों में, बसों में, सड़कों को घेर कर नमाज होती थी। बेचारा हिन्दू खुद को बचा के कच्ची पगडंडी से घर-ऑफिस निकल जाता था।
दिल्ली में सीएए, एनआरसी के विरोध में महीनों धरना चला। हिन्दू 15-20 किमी चक्कर लगाकर घर-ऑफिस जाता था लेकिन फ्रीबिज के चक्कर में अरविंद केजरीवाल को जीत दिलाई। भीषण दंगों का दंश झेला। पूरे देश में वक्फ की आड़ में अनगिनत मस्जिदें बन रही थीं, हिन्दू को कोई ऐतराज नहीं था। वो तो तब अस्पताल मांग रहा था। जगह-जगह मजारें बना कर जमीन कब्जाई जा रही थी, हिन्दू उन्हीं मजारों पर माथा टेककर अपने बच्चों के लिए स्कूल मांग रहा था। फिर एक दिन हिंदुओं ने अपने आराध्य श्रीराम जी का अपना एक मंदिर वापस मांग लिया लेकिन कुछ लोग रावण की तरह अभिमान में डूबे थे। रावण ने कहा था- सीता वापस नहीं करूंगा, ये राम और इसकी वानर सेना क्या ही कर लेगी। कलयुग के रावणों को भी लगा, मन्दिर वापस नहीं करेंगे, ये काल्पनिक राम और इसकी वानर सेना क्या ही कर लेगी। बाबर न तो अयोध्या में पैदा हुआ था और न अयोध्या में मरा था। उसके नाम से मस्जिद देश में कहीं भी बन सकती थी। देश में हजारों-लाखों मस्जिदों के बनने पर भी हिन्दू को ऐतराज नहीं था। उसे चाहिए था तो बस एक मंदिर, लेकिन उसे मिला क्या ? माथे पर लगाने के लिए रामभक्तों के रक्त से सनी अयोध्या की मिट्टी, अर्चन के लिए खून से लाल सरयू का जल, अर्पण के लिए ट्रेन की बोगी में जली हुई रामभक्तों की लाशें। अभी तक स्कूल, अस्पताल, नौकरी के सपनों में खोया बहुसंख्यक हिन्दू जिद पर अड़ गया। उसका स्वाभिमान जाग गया। उसकी अपेक्षा बढ़ गई है। उसकी महत्वाकांक्षा जग गई है। वो उठ खड़ा हुआ, एकजुट हुआ और अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक बने रहने का अभिशाप उसने एक झटके में उखाड़ फेंका। बात सिर्फ एक मंदिर की थी, आज वो अपना हर मन्दिर वापस लेने की जिद पकड़ बैठा है। हिंदुओं ने वह कर दिखाया है, जो संसार की कोई भी सभ्यता नहीं कर पाई। न यहूदी अपने धार्मिक स्थल वापस ले पाए, न ईसाई और न पारसी और ना ही मुसलमान यहूदियों या ईसाइयों से अपने धार्मिक स्थल वापस ले पाए लेकिन हिंदुओं ने इनके जबड़े में हाथ डाल कर अपने आराध्य का घर वापस ले लिया। वे कहने भी लगे हैं कि अयोध्या तो झांकी है। अभी बहुत कुछ बाकी है। पिछले कुछ सालों में हिन्दू समाज में एक बड़ा परिवर्तन आया है। पहले युवा सनातनी पीढ़ी का झुकाव धर्म के प्रति कम होता था लेकिन अब यह बदल रहा है। आज का सनातन युवा अपने धर्म के प्रति अधिक जागरूक हो गया है। आप वाराणसी के घाट पर चले जाएं या देवघर के मंदिर या वैष्णे देवी माता के मंदिर चले जाएं, वहां आपको युवा अधिक संख्या में दिखेंगे। आज वाराणसी के घाटों पर संध्या आरती में औसतन 50 हजार से अधिक लोग होते हैं। इसमें अधिकतर लोग 45 की उम्र से कम के होते हैं और ये लोग केवल खुद ही नहीं होते हैं, बल्कि अपने बच्चों के साथ होते हैं। अब अपेक्षाकृत युवा अधिक तीर्थ यात्रा पर जा रहे हैं। आज का युवा छुट्टी मनाने गोवा भी जायेगा और बनारस तथा अयोध्या भी जायेगा। पहले हर हिन्दू त्यौहार पर वामपंथी प्रहार करते थे लेकिन आज का सनातनी युवा इतना जागरूक हो गया है कि हिन्दू समाज के खिलाफ उठने वाली आवाज कमजोर हो गयी है।
पिछले दिनों देश में एक फिल्म रिलीज हुई-छावा। महाराष्ट्र ही नहीं, देश के महानायक छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज और मुगल बादशाह औरंगजेब के बीच संघर्ष को आधार बनाकर तैयार की गयी इस फिल्म ने देश भर में अलग ही चेतना पैदा कर दी है। पहले तो बाबरी मस्जिद को हटाकर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से देश का बड़ा तबका जहां गौरवान्वित महसूस कर रहा था, वह छावा फिल्म के असर से मुगलिया सल्तनत के इतिहास को लेकर सुलग उठा। स्थिति तो यह बन आई कि महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को खोद कर हटाने की मांग उठनी शुरू हो गयी। नागपुर (महाराष्ट्र) में इसे लेकर मुस्लिम तबके के कुछ लोग दंगे पर उतर आए। अब इस पर सियासत भी जारी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ को एक भव्य “एकता का महायज्ञ“ कहा है। महाकुंभ के सफल आयोजन की सराहना करते कहा है कि पिछले वर्ष अयोध्या के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में हम सभी ने यह महसूस किया था कि कैसे देश अगले 1,000 वर्षों के लिए तैयार हो रहा है। इसके ठीक एक साल बाद महाकुंभ के इस आयोजन ने हम सभी के इस विचार को और दृढ़ किया है। देश की यह सामूहिक चेतना देश का सामर्थ्य बताती है कि किसी भी राष्ट्र के जीवन में, मानव जीवन के इतिहास में भी अनेक ऐसे मोड़ आते हैं, जो सदियों के लिए, आने वाली पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन जाते हैं। हमारे देश के इतिहास में भी ऐसे पल आए हैं, जिन्होंने देश को नई दिशा दी, देश को झकझोर कर जागृत कर दिया। भक्ति आंदोलन के कालखंड में हमने देखा कैसे देश के कोने-कोने में आध्यात्मिक चेतना उभरी। स्वामी विवेकानंदजी ने शिकागो में एक सदी पहले जो भाषण दिया, वह भारत की आध्यात्मिक चेतना का जयघोष था, उसने भारतीयों के आत्मसम्मान को जगा दिया था। हमारी आजादी के आंदोलन में भी अनेक ऐसे पड़ाव आए हैं। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हो, वीर भगत सिंह की शहादत का समय हो, नेताजी सुभाष बाबू का दिल्ली चलो का जयघोष हो, गांधी जी का दांडी मार्च हो, ऐसे ही पड़ावों से प्रेरणा पाकर भारत ने आजादी हासिल की। प्रयागराज महाकुंभ को भी ऐसे ही एक अहम पड़ाव के रूप में प्रधानमंत्री देखते हैं और उसमें उन्हें जागृत होते हुए देश का प्रतिबिंब नजर आता है।
प्रयागराज में महाकुंभ के जबर्दस्त आयोजन को प्रधानमंत्री ने खूब सराहा है। खुद भी उन्होंने डुबकी लगाई। इसने मेले में भगदड़, अगलगी और दूसरी भ्रामक खबरों को किनारे कर दिया। खूब लोग जुटे। प्रयागराज में उमड़ी भीड़ किसी देश के प्रधानमंत्री के प्रति अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति का विश्वास जाहिर कर रही थी। इस विश्वास के पीछे कहीं न कहीं प्रधानमंत्री मोदी का आध्यात्मिक पक्ष भी दिखा था। दरअसल नरेंद्र मोदी खुद कर्म के साथ-साथ ईश्वर पर भी अटूट विश्वास रखने वालों में से रहे हैं। उनकी आस्था की स्पष्टता इसी से जाहिर होती है कि उन्होंने कुंभ के निर्विघ्न, सफल आयोजन के लिए भगवान सोमनाथ से मन्नत मांगी थी और कुंभ के संपन्न होते ही प्रधानमंत्री सबसे पहले भगवान सोमनाथ के दर्शन करने पहुंचे। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, “प्रयागराज में एकता का महाकुंभ, करोड़ों देशवासियों के प्रयास से संपन्न हुआ। मैंने एक सेवक की भांति अंतर्मन में संकल्प लिया था कि महाकुंभ के उपरांत द्वादश ज्योतिर्लिंग में से प्रथम ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ का पूजन-अर्चन करूंगा। सोमनाथ दादा की कृपा से वह संकल्प पूरा हुआ है। प्रधानमंत्री के इस ट्वीट ने दर्शाया है कि वह कितने ईश्वरवादी हैं। यही वजह है कि देश का आम आदमी मोदी से जुड़ाव महसूस करता है कि देश का प्रधानमंत्री भी उन्हीं मूल्यों को लेकर आगे बढ़ रहा है, जिन मूल्यों को इस देश का अधिसंख्यक अपना जीवन आधार मानता है। कुंभ में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ बीते कुछ वर्षों में देश में बढ़ती आध्यात्मिक चेतना का भी जीता-जागता उदाहरण है। इसके पीछे कहीं न कहीं मौजूदा सरकार के तीर्थ स्थलों के विकास को लेकर लिए गए फैसले और तमाम धार्मिक स्थलों के पुनरुद्धार को लेकर दृढ़ता के साथ आगे बढ़ना है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मोदी की लगातार हो रहीं तीर्थ यात्राएं भी आम जन में आध्यात्मिक चेतना जागृत कर रही हैं। बीते कुछ महीने के दौरान ही प्रधानमंत्री की धार्मिक यात्राओं पर गौर करें तो बढ़ते स्प्रिचुअल टूरिज्म के ‘ब्रांड एंबेसडर’ के तौर पर उनकी छवि नजर आती है। 20 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने रामेश्वरम में ‘अंगी तीर्थ’ समुद्र तट पर पवित्र स्नान किया था। समुद्र में डुबकी लगाने के बाद भगवान रामनाथस्वामी मंदिर में पूजा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 फरवरी 2024 को गुजरात के द्वारका में समुद्र में गहरे पानी के अंदर, उस स्थान पर प्रार्थना की थी, जहां जलमग्न द्वारका नगरी है। इतना ही नहीं, वह अपने साथ भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करने के लिए समुद्र के अंदर मोर पंख लेकर गए थे। मोदी ने मई 2024 में लोकसभा चुनाव के लिए तीसरी बार नामांकन दाखिल करने से पहले वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती की थी। इतना ही नहीं, महाकुंभ के आयोजन से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी ने 13 दिसंबर 2024 को संगम तट पर गंगा की आरती की थी। कुल मिलाकर पीएम मोदी की महाकुंभ के सफल आयोजन की ‘मन्नत’ भले ही पूरी हो गई है लेकिन उनके आस्थावान होने के चलते देश में जागृत हो रही आध्यात्मिक चेतना के बड़े परिणाम अभी से आना शुरू हो गए हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तरकाशी जिले स्थित मां गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा में पूजा अर्चना की। मुखबा माँ गंगा का मायका कहा जाता है। उत्तराखण्ड दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि देवभूमि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। मैंने काशी में कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है, लेकिन अब मुझे लगता है कि मां गंगा ने मुझे अब गोद ले लिया है। दरअसल, पिछले सवा तीन साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखण्ड में यह 13वां दौरा था। नरेंद्र मोदी का यह दौरा उत्तराखण्ड में पर्यटन को नई दिशा दे रहा है। प्रधानमंत्री ने आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए उत्तराखण्ड में 12 महीने पर्यटन पर जोर दिया। इसके अलावा पीएम मोदी ने अपील की कि कॉर्पोरेट मीटिंग और डेस्टिनेशन वेडिंग देवभूमि में करें। उनकी इस अपील से उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था को बूस्ट मिलना तय है। तमाम तरह के व्यावसायिक अवसरों के साथ ही नौकरी की भी संभावनाएं बढ़ेंगी।
राम मंदिर के उद्घाटन और इसके बाद महाकुंभ के भव्य आयोजन ने एक व्यापक हिंदू पुनर्जागरण को प्रेरित किया है। इसे सांस्कृतिक गर्व और हिंदू दर्शन में बढ़ती रुचि के रूप में देखा जा सकता है। इसने वैश्विक हिंदू प्रवासी समुदाय को एकजुट कर, उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति एक नवीन आत्मविश्वास प्रदान किया है। अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम तथा ऑस्ट्रेलिया सहित विभिन्न देशों में मंदिरों एवं सांस्कृतिक संस्थानों द्वारा भव्य समारोहों का आयोजन किया गया, जिससे इस मंदिर का वैश्विक महत्व उजागर हुआ। इसने हिंदू धर्म की अंतर्राष्ट्रीय पहचान को सुदृढ़ किया है। यह इसके सांस्कृतिक पुनरुत्थान एवं लचीलेपन का प्रतीक बन गया है। इसे एक परिवर्तनकारी पहल के रूप में व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई है, जिसमें आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक गहराई निहित है। हिंदू संस्कृति के प्रति बढ़ती रुचि का प्रत्यक्ष प्रमाण भारत में धार्मिक पर्यटन में हुई उल्लेखनीय वृद्धि है, जिसमें अयोध्या, बनारस, प्रयाग एक प्रमुख वैश्विक तीर्थ स्थल के रूप में उभरा है। अकेले वर्ष 2024 में केवल अयोध्या ने 137.7 मिलियन से अधिक आगंतुकों का स्वागत किया। इससे स्थानीय व्यवसायों, आतिथ्य क्षेत्र एवं खुदरा उद्योगों को अभूतपूर्व प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2024 में राम मंदिर अयोध्या में आने वाले पर्यटकों की संख्या ताजमहल से अधिक हो गई। इससे अयोध्या की प्रतिष्ठा विश्व स्तर के धार्मिक स्थलों मक्का एवं वेटिकन के समकक्ष स्थापित हो गई। बनारस और प्रयागराज के साथ भी ऐसी ही स्थिति बन चुकी है।
अयोध्या, बनारस, प्रयागराज की तरह मथुरा भी प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों के रूप में उभर रहा है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, “भारत में आध्यात्मिक स्थलों” से संबंधित ऑनलाइन खोजों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। पवित्र स्थलों पर घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है, जिसे राम मंदिर के उद्घाटन ने और अधिक गति प्रदान की है। राम मंदिर निर्माण, महाकुंभ के आयोजन ने न केवल आर्थिक लाभ उत्पन्न किए हैं, बल्कि प्राचीन परंपराओं के प्रति जनमानस की रुचि को भी पुनर्जीवित किया है। इससे वैदिक शिक्षा, संस्कृत अध्ययन, योग, आयुर्वेद तथा भारतीय शास्त्रीय कलाओं जैसी पारंपरिक विधाओं में नए सिरे से जागरूकता उत्पन्न हुई है। इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने पवित्र ग्रंथों जैसे रामायण एवं वेदों के अध्ययन को भी बढ़ावा दिया है। शिक्षण पहलों एवं कार्यशालाओं को वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त हो रही है। संस्कृत पाठ प्रतियोगिताओं तथा रामायण-आधारित संगीत एवं नृत्य प्रस्तुतियों की बढ़ती लोकप्रियता, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान को दर्शाती है। महाराष्ट्र दीपोत्सव जैसे उत्सव, जिनमें लाखों दीप प्रज्वलित किए गए, ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। हिंदू परंपराओं के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व को विश्व पटल पर सुदृढ़ किया है। राम मंदिर निर्माण, महाकुंभ उस महान सभ्यता की स्थायी शक्ति का एक सशक्त प्रमाण है, जो अपनी प्राचीन जड़ों में गहराई से स्थापित है और आत्मविश्वास के साथ अपने भविष्य का निर्माण कर रही हैं। इसने संपूर्ण विश्व के हिंदू समुदाय को एक सूत्र में पिरोते हुए, अपनी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण एवं उसके उत्सव के प्रति एक नवीन प्रतिबद्धता को जन्म दिया है। यह सांस्कृतिक पुनर्जागरण केवल एक सामुदायिक विजय का प्रतीक नहीं है, अपितु यह एक ऐसी समृद्ध सभ्यता के नवोन्मेष का प्रतीक है, जो संपूर्ण मानवता के लिए निरंतर प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। आने वाली पीढ़ियों के लिए, जब वे राम मंदिर के पावन प्रांगण में प्रवेश करेंगी, तो वे संघर्ष, संकल्प और गौरवशाली धरोहर को आत्मसात करेंगी। इसी तरह महाकुंभ की समृद्ध परंपराओं के आयोजन से वे हिंदू धर्म, संस्कृति एवं पहचान के शाश्वत मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित होंगी।
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