वोटर अधिकार यात्रा: विवादास्पद नेताओं की भागीदारी से राजग को मिला मुद्दा

Photo of writer Hari Hari Mangal
बिहार की सियासत में क्रांतिकारी बदलाव की उम्मीद लेकर राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन के घटक दलों द्वारा आयोजित ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का समापन हो चुका है। इस यात्रा के बाद  इंडिया गठबंधन को बिहार की जनता ‘अधिकार’ सौंपेगी इसका पता तो इस वर्ष के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद ही चलेगा लेकिन यात्रा समाप्त कर दिल्ली लौटे चुके राहुल गांधी जब इस यात्रा की उपलब्धियों की समीक्षा करेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि बिहार में वह अपने साथ- साथ आरजेडी का भी खेल बिगाड़ चुके हैं। राज्य में सत्तारूढ़ राजग गठबंधन को तमाम ऐसे मुद्दे सौंप आये हैं जिनकी काट खोज पाना अब बहुत सहज नहीं होगा।

वोटर अधिकार यात्रा: विवादास्पद नेताओं की भागीदारी से राजग को मिला मुद्दा

चुनाव आयोग ने जब 24 जून 2025 को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का निर्णय लिया तो उसे विपक्ष के इतने बड़े विरोध की उम्मीद नहीं थी क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था। पहले संसद में हो हल्ला फिर सर्वोच्च न्यायालय में दस्तक लेकिन कहीं बात नहीं बनी तो कांग्रेस की अगुवायी वाले इंडिया ब्लाक के घटक दलों ने इस मुद्दे को जनता बीच ले जाने और बिहार में मतदाताओं को जागरुक करने के नाम पर ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की रणनीति बनायी। 17 अगस्त को सासाराम से प्रारम्भ हुयी यह यात्रा 1 सितम्बर को पटना में समाप्त हुई। इस अवधि में राज्य के 24 जिलों के 50 विधानसभा क्षेत्रों से यह यात्रा गुजरी। यात्रा का नेतृ्त्व राहुल गांधी के साथ आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव कर रहे थे लेकिन साथ में पप्पू यादव और वीआईपी के मुकेश सहनी जैसे तमाम स्थानीय नेताओं के साथ दक्षिण भारत के कई राजनेता भी शामिल हुये। 

कांग्रेस को खोई जमीन की तलाश 

राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली गई इस यात्रा का फोकस चुनाव आयोग द्वारा काटे गये 65 लाख मतदाताओं के नाम को लेकर था जिसे विपक्ष द्वारा ’वोट चोरी’ का नाम दिया है। यात्रा में तमाम नारों के बीच ‘वोट चोर-गद्दी छोड़’ जैसे नारे लगे और बैनर, पोस्टर लगाये गये। इंडिया ब्लाक के घटक दल इस यात्रा का उद्देश्य भले ही मतदाताओं की जागरुकता से जोड़ रहे हंै लेकिन राजनीतिक समीक्षक इसे चुनाव से पूर्व कांग्रेस के शक्ति प्रदर्शन का पूर्वाभ्यास मान रहे हैं। राहुल गांधी इस यात्रा को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साहित और गम्भीर नजर आये इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण बिहार की राजनीति में खुद को स्थापित करना माना जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 9.5 प्रतिशत वोट के साथ 19 सीटें मिली थीं। इस चुनाव में भी कांग्रेस अभी बहुत बेहतर नहीं है अर्थात बिहार में कांग्रेस के पास खोने के लिये बहुत कुछ नहीं है। उन्हें पता है कि कांग्रेस अपने बलबूते सत्ता में नहीं आ सकती है इसलिये  राहुल गांधी का प्रयास अपने कोर वोट बैंक,मुस्लिम और दलित, को वापस लाना है जिस पर फिलहाल आरजेडी ने कब्जा कर रखा है। 

राहुल गांधी ने इस यात्रा के बहाने अपने को गठबंधन के सर्वमान्य और निर्विवाद नेता के रूप में भी प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। अपनी सर्वमान्यता प्रदर्शित करने के लिये  कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टाालिन, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बिहार बुलाया, या़त्रा का भागीदार बनाया और उनके साथ मंच साझा किया। इतना ही नहीं यात्रा की लोकप्रियता बढ़ाने के लिये प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं ताकि भीड़ बढ़ सके। कई स्थानों पर इन सबका असर दिखा, लोग रैलियों में पहुंचे, नारे लगाये, राहुल गांधी से हाथ मिलाया और चले गये। 

दक्षिण के नेताओं की भागीदारी पड़ रही भारी

राहुल गांधी की इस यात्रा में दक्षिण भारत के तीन राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री शामिल हुये हंै। सबसे पहले 24 अगस्त को कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार तो 26 अगस्त को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और फिर 27 अगस्त को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन यात्रा में शामिल हुये। रेड्डी और स्टालिन को लेकर प्रदेश भाजपा राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर हमलावर है। भाजपा ने कहा है कि आखिर बिहार के हिन्दी भाषी मेहनतकश लोगों के विरुद्ध अपमानजनक और आपत्तिजनक बातें करने वाली पार्टी के नेताओं को कांग्रेस बिहार में प्रचार के लिये क्यों बुला रही है। रेड्डी बिहार के डीएनए पर सवाल उठा चुकें है तो स्टालिन की पार्टी हिन्दी से लेकर हिन्दू तक और बिहार सहित उत्तर भारतीयों को नीचा दिखाने वाले बयान दे चुकी है। दरअसल दिसम्बर 2023 में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने पत्रकारों से कहा था कि तेलंगाना के प्रथम मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव में बिहारी जीन है, वह बिहार के रहने वाले है जबकि मेरा डीएनए तेलंगाना का है। तेलंगाना के डीएनए की गुणवत्ता बिहार के डीएनए से बेहतर है।

इसी प्रकार डीएमके नेता एमके स्टालिन मई 2021 से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री है। 2023 में डीएमके नेता दयानिधि मारन का एक बयान वायरल हुआ जिसमें वह कह रहे थे कि बिहार और उत्त्र प्रदेश के हिन्दी भाषी लोग तमिलनाडु में घर बनाते हैं और शौचालय साफ करते हंै। मुख्यमंत्री के बेटे और राज्य में खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया जैसी  बीमारी बताते हुये उसके उन्मूलन की बात कही थी। स्टाालिन के इस बयान पर सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें फटकार लगाते हुये माफी मांगने के लिये कहा था। इतना ही नहीं आरोप है कि तमिलनाडु में कुछ माह पहले बिहार के बच्चों को पीट पीट कर मारा गया, भगाया गया लेकिन तब मुख्यमंत्री खामोश बने रहे और अब राहुल गांधी के लिये वोट मांगने बिहार आये हैं।
  इसी यात्रा के बीच प्रियंका गांधी को लेकर भी एक वीडिओ  वायरल हुआ जिसमें पंजाब के पूर्व के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपने भाषण में कह रहे हंै कि यूपी बिहार के लोगों को पंजाब में घुसने नहीं दिया जायेगा और इस पर प्रियंका गांधी ताली बजा रहीं हैं। इस बयान से बिहार और उत्तर प्रदेश के उन मजदूरों की भावनायें आहत हुई जो मजदूरी के लिये पंजाब जाते हैं। 

राजग को मिला स्वाभिमान का मुद्दा

दक्षिण भारत में सत्तासीन दलों के नेताओं के यात्रा में शामिल होने के बाद से ही बिहार की सियासत में उबाल आ गया है। सत्तारूढ़ राजग इसे बिहार के स्वाभिमान पर हमला बताते हुये सवाल उठा रहा है। जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने भी कहा कि इन्हें कौन पूछता है, बिहार के लोगों को गाली देने वाले रेड्डी की क्या औकात है? कांग्रेस और इंडिया गठबंधन बिहार और बिहारियों के स्वाभिमान से खिलवाड़ कर रही है।

राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले कहते हैं कि वोटर अधिकार यात्रा के शुरूआती दिनों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने बिहार में वोट चोरी मुद्दे पर खासा माहौल बनाया और सत्तारूढ़ जदयू और भाजपाई बेवस नजर आये लेकिन बिहार के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले दक्षिण भारतीय नेताओं के यात्रा में शामिल करने ,उन्हें सम्मानित करने के बाद से माहौल में अचानक बदलाव आ गया। अब इंडिया गठबंधन के लोग भी यह सोच कर हैरान हैं कि रेड्डी या स्टालिन का बिहार की राजनीति से कभी कोई सरोकार नहीं रहा है, इनका कोई जनाधार भी नहीं है फिर इन विवादास्पद नेताओं को क्यों बुलाया गया। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी की इस चूक ने राजग के हाथ बिहार के मान-सम्मान और स्वाभिमान का ऐसा मुद्दा सौंप दिया है जिसे वह विधानसभा चुनाव तक किसी न किसी प्रकार जिंदा रखना चाहेगी और इंडिया गठबंधन के पास उसकी कोई काट नहीं होगी।

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