जातिगत जनगणना के साये में बिहार चुनाव

खबर सार : -
बिहार में चुनाव अभी 6 माह दूर है लेकिन चुनावी समीकरण आकार लेने लगे हैं। राजग ने नीतीश के नेतृत्व में चुनावी संवाद शुरु कर दिया है तो राजग को टक्कर देने वाले राजद के तेजस्वी यादव चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं। कांग्रेस की खामोशी, ओवैसी की फुफकार और प्रशांत किशोर की रणनीति ने उन्हें बेचैन कर दिया है।

खबर विस्तार : -

हरि मंगल

बिहार विधानसभा का चुनाव भले ही 6 माह बाद अक्टूबर-नवम्बर में सम्भावित है लेकिन उसके लिए शतरंज की गोटियां अभी से ही बैठायी जाने लगी है। नीतीश कुमार अपनी सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार की उपलब्धियों के सहारे वापसी की तैयारी में है, तो तेजस्वी यादव अपने पुराने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने में लगे हैं, जिससे एंटी इनकंबेंसी का लाभ लेकर नीतीश सरकार को बेदखल कर सके लेकिन वर्तमान परिवेश में ऐसा होता नहीं दिखायी पड़ रहा है। बिहार की सियासत पर नजर डालें तो 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 125 सीटें जीत कर सरकार बनाई। राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों का महागठबंधन 110 सीटों पर सिमट गया था। इस चुनाव की सबसे अहम बात यह थी कि भाजपा ने जदयू सहित अन्य दलों से गठबंधन करके नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था लेकिन जब परिणाम आए तो भाजपा  74 और जदयू मात्र 43 सीट ही पा सकी। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री की सीट पर भाजपा का दावा होना चाहिए था लेकिन भाजपा ने पद का मोह त्याग कर गठबंधन के ’भरोसे’ को कायम रखते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी।

नीतीश के चेहरे पर चुनाव

उप्र के बाद बिहार उन प्रमुख राज्यों में से एक है, जो केन्द्र की सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है इसलिए 2025 के विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के मुख्य घटक भाजपा सहित सभी दल पूरी ताकत से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार का चुनाव भी नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ने की तैयारी की जा रही है। भाजपा ने नीतीश की जदयू के नेतृत्व में चुनाव लड़ना स्वीकार किया है। इसके साथ ही अब विभिन्न मंचों पर संवाद और संदेश दिए जा रहे हैं। भाजपा इस चुनाव को लेकर कितना गम्भीर है, इसे समझने के लिए हाल ही में घटी कुछ घटनाओं पर नजर डालते है। 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों की हत्या के बाद प्रधानमंत्री की पहली सार्वजनिक प्रतिक्रिया 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी जिले में आई। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के कार्यक्रम में आए प्रधानमंत्री ने तेवर दिखाते हुए कहा कि हम बिहार की धरती से पूरी दुनिया को बताना चाहता हूं कि भारत हर आतंकवादी और उनके आकाओं की पहचान करेगा, उन्हें खोजेगा और उन्हें सजा देगा। हम उन्हें धरती के किसी कोने तक खदेड़ेंगे। प्रधानमंत्री के इस संदेश को देश और विदेश की मीडिया में बिहार से जोड़ कर देखा गया। प्रधानमंत्री की इस प्रतिक्रिया ने उन राजनैतिक विरोधियों को चित कर दिया, जो पहलगाम को मुद्दा बना कर केन्द्र सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे थे।

जाति आधारित जनगणना

अभी विपक्ष इस सदमे से बाहर आने की सोचता, तब तक केन्द्र सरकार ने 30 अप्रैल को कहा कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित जनगणना करायी जायेगी। विपक्ष केन्द्र सरकार से इतने बड़े निर्णय की उम्मीद नहीं कर रहा था। जातिगत वोटों पर आधारित दल इसे बिहार के चुनाव में भुनाने की रणनीति बना रहे थे। इसी बहाने वह भाजपा गठबंधन में दरार या सेंध लगाने के फिराक में भी थे क्योंकि उप्र में सपा और बिहार में राजद जैसे दल जाति आधारित राजनीति के लिए जाने जाते है जबकि बिहार का अतिपिछड़ा वर्ग पिछले लम्बे समय से नीतीश कुमार की जदयू के साथ जुड़ा हुआ है। नीतीश कुमार सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कई घटक दल जाति आधारित जनगणना की मांग करते आ रहे थे। इस घोषणा के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा परिवर्तन आएगा और तमाम दलों के पास तो झंड़ा और पोस्टर लगाने वाले नहीं मिलेंगे। केन्द्र सरकार बिहार चुनाव को कितनी गम्भीरता से ले रही है, इसका अनुमान केन्द्रीय बजट की घोषणा में भी दिखा था। एक ओर बिहार में मखाना उद्योग को बढ़ावा देने के लिये मखाना बोर्ड के गठन की मंजूरी दी गई तो दूसरी ओर छात्रों को साधने का प्रयास किया गया। 2014 के बाद स्थापित 05 आईआईटी कॉलेजों में अतिरिक्त संसाधन की व्यवस्था की स्वीकृति दी गई, जिससे 6,500 और छात्रों को वहां शिक्षा मिल सकेगी। इसमें पटना आईआईटी का विस्तार भी शामिल है। इलके अलावा तमाम प्रकार की योजनायें बिहार के हिस्से में आईं। 

विपक्षी दलों की बेनतीजा बैठक

दूसरी ओर राजद सहित विपक्षी दलों के महागठबंधन में तालमेल बनाने के लिए अभी बैठकों का दौर जारी है। 4 मई को भी पटना में महागठबंधन की तीसरी बड़ी बैठक हुई, जिसमें सहयोगी दलों के विधायक, सांसद और प्रमुख कार्यकर्ता शामिल हुए। बैठक का मुख्य बिन्दु सीटों के बटवारे को लेकर सामंजस्य बनाना था लेकिन सामजंस्य को लेकर पूंछे गये सवाल पर बार-बार यह सफाई दी गई कि कहीं कोई विवाद नहीं है। समन्वय से संवाद हो रहा है। सीएम चेहरा कौन होगा, इसको लेकर कोई भी बोलने को तैयार नहीं है। तेजस्वी यादव अब स्वयं कहने लगे हैं कि जो चेहरा आज है, वहीं चुनाव में भी रहेगा यानी वह स्वयं मुख्यमंत्री का चेहरा हांगे। कहने का आशय यह है कि ’’मान न मान मै तेरा मेहमान’’ वाली कहावत महागठबंधन में सीधे चरितार्थ हो रही है। बिहार में भी कांग्रेस दिल्ली वाले नाटक का रिप्ले करना चाह रही है। पिछले महीने कांग्रेस के राष्ट्रीय एवं पूर्वोत्तर प्रभारी अजय कुमार चौधरी बिहार के दौरे पर आए तो एक पटाखा दगा गये। उन्होंने कहा कि पार्टी प्रदेश की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। इसके लिए टिकाऊ और जिताऊ प्रत्याशियों का सर्वे चल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी पार्टी बिहार महागठबंधन का हिस्सा है लेकिन इसके बावजूद पार्टी नये प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार के नेतृत्व में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। महागठबंधन का हिस्सा और सभी सीटों पर चुनाव के सवाल पर कहा कि ऐसा महागठबंधन की मजबूती के लिए किया जा रहा है। इस बयान के बाद बिहार महागठबंधन में दरार साफ दिखने लगी है, जिसका असर तेजस्वी यादव के राजद पर पड़ेगा और परिणाम दिल्ली जैसा आए तो कुछ आश्चर्य नहीं होगा। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस की ब्लैकमेल की राजनीति है। महागठबंधन में चल रही चर्चा में इस बार कांग्रेस को कम सीटें देने की बात चल रही है क्योंकि पिछले चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थी लेकिन वह मात्र 19 सीटें ही जीत पाई। तेजस्वी अब सीटें कम करना चाह रहे है तो कांग्रेस दबाव बनाने के लिए ऐसा कह रही है। 

ओवैसी और प्रशांत किशोर बढ़ा रहे सिरदर्द

एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी तो तेजस्वी यादव से खासे नाराज है और अपनी यह नाराजगी वह सार्वजनिक मंचों से भी प्रकट करते हैं। इस नाराजगी का कारण सर्वविदित है। तेजस्वी ने औवैसी के कुल पांच विधायकों में से चार विधायकों को अपने साथ मिला लिया। हाल ही में बिहार के दौरे पर आए ओवैसी ने मंच से कहा कि 04 भागे तो 24 आयेंगे। जिन्होंने इनको भगाया है, हम उनको बिहार से भगा देंगे। भागने वाले 4 बुजदिल और जमीरफरोश थे, उनको खरीदने वाला भी जमीरफरोश है। ओवैसी की यह नाराजगी तेजस्वी यादव के लिये भारी पड़ेगी। प्रख्यात राजनैतिक विश्लेषक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़़ने की बात कह रहे हैं। पिछड़े और दलितों के मसीहा कहे जाने वाले पीके यदि ऐसा करते हैं, तो वह जितना वोट काटेंगे, उसमें राजद और उनके सहयोगियों का बड़ा हिस्सा होगा। आने वाले समय में राजनीति की दिशा किस ओर होगी, कौन सा गठबंधन चलेगा, कौन बिगड़ेगा, यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी लेकिन जो आहट सुनाई पड़ रही है, वह प्रमुख विपक्षी दल राजद के नेता तेजस्वी यादव के लिए सुखद नहीं जान पड़ रही है।
 

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