Sector Bank NPA : सरकारी बैंकों के बट्टे खाते में गए बीते दस वर्ष में 12 लाख करोड़ का कर्ज

खबर सार :-
Sector Bank NPA : सरकारी बैंकों ने 2015-16 से 2024-25 के बीच 12 लाख करोड़ से अधिक के कर्ज़ बट्टे खाते में डाले हैं। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक लेखा प्रक्रिया है, कर्ज़ माफ़ी नहीं। जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने वालों से वसूली जारी है। पिछले पाँच वर्षों में अधिकांश बैंकों में राइट-ऑफ कम हुआ है, पर SBI और केनरा बैंक में बढ़ा है। यह बैंकिंग क्षेत्र की बड़ी चुनौतियो को दर्शाता है।

Sector Bank NPA : सरकारी बैंकों के बट्टे खाते में गए बीते दस वर्ष में 12 लाख करोड़ का कर्ज
खबर विस्तार : -

Sector Bank NPA : सरकारी बैंकों द्वारा कर्ज को बट्टे खाते में डालने का मुद्दा अक्सर चर्चा का विषय रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार ने खुलासा किया कि पिछले एक दशक में, यानी वित्तीय वर्ष 2015-16 से 2024-25 के बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज़ को बट्टे खाते में डाला है। बेशक यह आंकड़ा चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन इसके पीछे की कहानी और प्रक्रिया को समझना ज़रूरी है।

Sector Bank NPA : बट्टे खाते का मतलब और उसका प्रभाव

अक्सर लोग बट्टे खाते में डालना (Write&off) को कर्ज माफी समझ लेते हैं, लेकिन यह  धारणा है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में स्पष्ट किया कि यह एक तकनीकी लेखा प्रक्रिया है। इसका मतलब यह निकालना कतई गलत है कि उधारकर्ता का कर्ज माफ कर दिया गया है। इसके विपरीत, कर्जदार की देनदारी बनी रहती है और बैंक इन कर्ज़ों की वसूली के लिए लगातार प्रयासरत रहे है। यह प्रक्रिया भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के दिशानिर्देशों के अनुरूप होती है, जिसमें ऐसे कर्ज़ों को बैलेंस शीट से हटा दिया जाता है जिनकी वसूली की संभावना बहुत कम हो जाती है, आमतौर पर चार साल बाद।

Sector Bank NPA : आंकड़ों की जुबानीः कितनी बड़ी है समस्या?

आंकड़ों पर गौर करें तो, 2015-16 से 2024-25 तक सार्वजनिक बैंकों ने कुल 12,08,828 करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाला है। इसमें से बड़ा हिस्सा, 5.82 लाख करोड़ रुपये से अधिक, तो केवल पिछले पांच वित्तीय वर्षों (2020-21 से 2024-25) में ही बट्टे खाते में डाला गया। यह बताता है कि हाल के वर्षों में इस प्रवृत्ति में तेज़ी देखी जा रही है।

Sector Bank NPA : जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने वाले और वसूली के प्रयास

इस बड़ी राशि में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा उन लोगों का भी है जिन्हें जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया। जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों को Wilful Defaulter घोषित किया गया है। 31 मार्च 2025 तक, ऐसे 1,629 उधारकर्ता थे जिन पर 1.62 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बकाया थी। सरकार इन कर्ज़ों की वसूली के लिए सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल असेट्स एंड इन्फोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट और दिवालिया कानून (इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड, 2016) जैसे सख्त प्रावधानों का इस्तेमाल कर रही है। इसके अतिरिक्त, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत 15,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति भी जब्त की जा चुकी है, जो दर्शाता है कि सरकार वसूली के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रही है।

Sector Bank NPA : बैंकों की बदलती तस्वीर

यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले पांच वर्षों में 12 में से 10 सार्वजनिक बैंकों द्वारा किए गए राइट-ऑफ में कमी दिखाई दी है। यह एक सकारात्मक संकेत है जो बैंकों के बेहतर जोखिम प्रबंधन और वसूली प्रयासों को दिखा रहा है। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2024-25 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और केनरा बैंक में इसी अवधि के दौरान राइट-ऑफ में वृद्धि दर्ज की गई है। यह इन बैंकों के सामने विशिष्ट चुनौतियों या उनकी बड़ी ऋण पुस्तिका के आकार को दर्शा रहा है।

Sector Bank NPA : बैंकिंग क्षेत्र में मानव संसाधन का महत्व

एक बिल्कुल ही अलग संदर्भ में, सरकार ने यह भी बताया कि पिछले पांच वर्षों में सार्वजनिक बैंकों ने लगभग 1.5 लाख कर्मचारियों की भर्ती की है, और वर्तमान में 48,570 और पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है। यह दर्शाता है कि बढ़ते काम और चुनौतियों के बीच, बैंकिंग क्षेत्र में मानव संसाधन की आवश्यकता को समझा जा रहा है, जो अंततः बेहतर ग्राहक सेवा और अधिक कुशल संचालन में मदद करेगा.

कुल मिलाकर, बट्टे खाते में डाले गए कर्ज़ की बड़ी राशि चिंताजनक लग सकती है, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह एक गतिशील प्रक्रिया है जहां बैंक लगातार वसूली के प्रयास कर रहे हैं। सरकार और नियामक एजेंसियां भी इस मुद्दे से निपटने के लिए विभिन्न कानूनी और प्रशासनिक उपाय अपना रही हैं ताकि भारतीय बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और विश्वसनीयता बनी रहे।

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