झांसी में नकली दवा के रैकेट का भंडाफोड़: टीम को नहीं मिला स्टॉक, बिक्री पर लगी रोक

खबर सार :-
झांसी में एक नकली दवा का नमूना फेल होने पर औषधि विभाग ने थोक विक्रेता के यहां छापा मारा, लेकिन स्टॉक नहीं मिला। कंपनी की सभी दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी गई है। यह दवाएं सस्ती होने के कारण खूब बिक रही थीं, जिससे मरीजों की जान खतरे में थी। चार महीने बाद हुई कार्रवाई ने विभाग पर सवाल उठाए हैं।

झांसी में नकली दवा के रैकेट का भंडाफोड़: टीम को नहीं मिला स्टॉक, बिक्री पर लगी रोक
खबर विस्तार : -

झांसी: ज्यादा मुनाफे के एवज में मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाली दवा कंपनी का नमूना फेल होने पर औषधि टीम ने शुक्रवार को थोक विक्रेता मेडिकल स्टोर पर छापा मारा, लेकिन स्टॉक न मिलने से निराश होना पड़ा। हालांकि, उसी कंपनी की दवाओं के नमूने और लिए गए और जांच के लिए भेज दिए गए, जबकि इस कंपनी की सभी दवाओं की बिक्री पर रोक लगा दी गई। ड्रग विभाग के असिस्टेंट कमिश्नर ने बताया कि राजकीय विश्लेषक लखनऊ से रिपोर्ट प्राप्त हुई कि मार्च 2025 में तत्कालीन औषधि विभाग द्वारा दीनदयाल कॉम्प्लेक्स में शिवशक्ति मेडिकल से एक दवा का नमूना लिया गया था।

हरिद्वार स्थित इस कंपनी का दवा का नमूना जांच में फेल हो गया। दवा का नमूना फेल होने के बाद औषधि प्रशासन ने एक टीम का गठन किया। इस टीम में जालौन औषधि निरीक्षक दिव्यानी, ललितपुर से विनय मिश्रा शामिल हुए और मेडिकल स्टोर व गोदाम पर छापा मारा, लेकिन इस कंपनी की दवा का स्टॉक नहीं मिला। फिलहाल, टीम ने इसी कंपनी की दो दवाओं का नमूना लेकर प्रयोगशाला में भेज दिया है और रिपोर्ट आने तक इस कंपनी की दवा की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।

झांसी नकली दवा: चार महीने पहले का था मामला पूरा मामला

मार्च 2025 का है, जब औषधि निरीक्षक ने शिवशक्ति फार्मा से हरिद्वार में निर्मित कंपनी जेपी हेल्थकेयर की C-MAX LB 200 mg टैबलेट का नमूना लेकर लखनऊ की लैबोरेटरी में जांच के लिए भेजा गया था। रिपोर्ट में दवा का नमूना फेल पाया गया। आश्चर्य तो यह है कि रिपोर्ट आने में इतनी देरी हुई और चार महीने बाद कार्रवाई की गई।

झांसी नकली दवा: सस्ती और ज्यादा बिक्री से बिक रही अधोमानक दवाएं

इस दवा में जो साल्ट है, वह सिफिक्सिम 200 एमजी और लैक्टिक एसिड बेसिलस है, जो कि एंटीबायोटिक के साथ पेट के रोग में भी लाभदायक होती है। इस साल्ट की दवा झांसी तो क्या, पूरे भारत में कहीं भी 350-400 रुपये प्रति सैकड़ा से कम नहीं है, जबकि जेनेरिक में यह रेट है। लेकिन इस साल्ट की दवा मार्केट में 150 और 200 रुपये प्रति सैकड़ा मिल रही है। इस वजह से ऐसी दवाएं मार्केट में बिक रही हैं। कंपटीशन के दौर में सस्ते होने की वजह से इस दवा की बिक्री जमकर हो रही है। सस्ते होने की वजह से यह झांसी के दूर-दराज के इलाकों तक इसकी बिक्री की जा रही है।

सूत्रों के अनुसार, यह दवा कंपनी केवल एंटीबायोटिक ही बनाती है और एंटीबायोटिक दवा सबसे ज्यादा महंगी होती है। इसे सस्ते दामों में बेचकर ज्यादा बिक्री कर मुनाफा कमा लेती है। गड़बड़झाला यह है कि ऐसी अधोमानक दवाएं जो मानक पर खरा नहीं उतरती हैं, इन दवाओं में जो कंपोजीशन लिखा होता है, वह होता ही नहीं है। जबकि सस्ता कंपोजीशन डालकर मार्केट में उतार दिया जाता है। जब तक यह पकड़ में आई, तब तक कंपनी निर्माता करोड़ों टैबलेट्स मार्केट में बेच कर करोड़ों रुपया कमा लेता है। ऐसी कंपनी की दवाएं झांसी ही नहीं, उत्तर प्रदेश में कई वर्षों से बिक रही हैं, लेकिन आश्चर्य है कि औषधि विभाग अभी तक सोया हुआ था। अब जब जागा, तो कार्रवाई की गई। औषधि प्रशासन के सक्रिय रहते हुए भी बगैर मानक पूर्ण दवाएं मार्केट में बिकते रहना सवालिया निशान है।

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