नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने सोमवार को पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में 2-2 रुपए की वृद्धि की घोषणा कर दी है, जो मंगलवार से प्रभावी हो जाएगी। हालांकि, वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में भारी गिरावट होने के कारण पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में कोई वृद्धि नहीं होगी। कच्चे तेल की कम कीमतों के कारण इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम जैसी तेल रिफाइनिंग और मार्केटिंग कंपनियों के लिए उत्पादन लागत कम हो जाएगी और उनके खुदरा मार्जिन में बढ़ोत्तरी भी होगी। ऐसा करके सरकार उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ बढ़ाए बिना उत्पाद शुल्क वृद्धि से अधिक राजस्व जुटाने में सक्षम होगी।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि पीएसयू ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने सूचित किया जाता है कि उत्पाद शुल्क दरों में वृद्धि के बाद पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में कोई वृद्धि नहीं की जाएगी। आदेश के अनुसार पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर 13 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपए प्रति लीटर कर दिया गया है। इस फैसले का उद्देश्य वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में चार साल के निचले स्तर पर गिरावट के कारण अधिक राजस्व प्राप्त करना है। बता दें, बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड अप्रैल 2021 के बाद से 2025 में सबसे कम 63 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 59.57 डॉलर पर आ गया है। नतीजतन दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा आयातक भारत तेल की कीमतों में गिरावट के कारण लाभ में है।
तेल की कीमतों में गिरावट का दौर सोमवार को भी जारी रहा, जो करीब 4 प्रतिशत तक दर्ज किया गया, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव ने मंदी की आशंकाओं को जन्म दिया है, जिससे कच्चे तेल की मांग में गिरावट आएगी, जबकि ओपेक से जुड़े तेल कार्टेल ने सप्लाई बढ़ाने का फैसला किया है। ब्रेंट फ्यूचर्स 2.43 डॉलर या 3.7 प्रतिशत गिरकर 63.15 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया और यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड फ्यूचर्स 3.9 प्रतिशत गिरकर 59.57 डॉलर पर आ गया।
दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश सऊदी अरब ने रविवार को मई में एशियाई खरीदारों के लिए कच्चे तेल की कीमतों में 2.3 डॉलर प्रति बैरल तक की कटौती की घोषणा की थी। तेल की कीमतों में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है, क्योंकि देश अपनी कच्चे तेल की जरूरत का करीब 85 फीसदी आयात करता है और तेल की कीमतों में किसी भी गिरावट से देश के आयात बिल में कमी आती है। इससे चालू खाता घाटा (सीएडी) कम होता है और रुपया मजबूत होता है।
भारत में तेल की कीमतों को लेकर बाहरी संतुलन को मजबूत करने के अलावा, तेल की कीमतों में गिरावट से घरेलू बाजार में पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतें भी कम होती हैं, जिससे देश में मुद्रास्फीति कम होती है। सरकार ने यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पश्चिमी दबाव के बावजूद तेल कंपनियों को रियायती कीमतों पर रूसी कच्चा तेल खरीदने की अनुमति देकर देश के तेल आयात बिल को कम करने में भी मदद की है। अमेरिका और यूरोप के मॉस्को पर लगाए गए अनेकों प्रतिबंधों के बावजूद मोदी सरकार रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने में दृढ़ रही है। रूस अब इराक और सऊदी अरब की जगह भारत को कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बन गया है। भारत वास्तव में रूस के समुद्री तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जो भारत के कुल तेल आयात का लगभग 38 प्रतिशत है।
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