Uttar Pradesh Caste Conflict : उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में हुए जातीय संघर्ष की अनेक घटनाओं ने आम आदमी के साथ-साथ सरकार को भी तनाव में डाल दिया है क्योंकि प्रदेश में सक्रिय तमाम जातीय सेनाएं अपने समाज के मामलों में आर-पार की लड़ाई खुद लड़ना चाह रही हैं। जिन मामलों का निपटारा कभी स्थानीय स्तर पर हुआ करता था, अब उस पर जातीय सेना के कार्यकर्ता आगे आकर समाज और सरकार को नई चुनौती दे रहे हैं। पिछले तीन महीने में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं तो यही इशारा कर रही हैं।
सपा के राज्यसभा सदस्य सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में एक चर्चा में राणा सांगा को देशद्रोही बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने 1526 में मुगल शासक बाबर को भारत में आमंत्रित किया था। सुमन ने कहा कि आज भारतीय मुसलमानों को बाबर का वंशज कहा जाता है तो दूसरे समुदाय को भी राणा सांगा जैसे गद्दार के वंशज के रूप में देखा जाना चाहिए। भाजपा और करणी सेना के समर्थकों ने इसका विरोध किया। 26 मार्च को करणी सेना के तमाम कार्यकर्ता सांसद के आगरा स्थित आवास पर तोड़फोड़ कर घर में घुसने का प्रयास किया। मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा, 12 अप्रैल को करणी सेना के हजारों कार्यकर्ताओं ने आगरा में अस्त्र-शस्त्र का खुला प्रदर्शन करते हुए मार्च निकाला। उनकी मांग थी कि सांसद माफी मांगे। करणी सेना के इस मार्च का समापन आगरा के रामगढ़ी मैदान में ’’रक्त स्वाभिमान सम्मेलन ’’ के रूप में हुआ। किसी अनहोनी से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा 10 हजार से अधिक पुलिसकर्मी लगाए गए, लगभग 500 स्थानों पर नाकेबंदी और पूरे शहर की ड्रोन से निगरानी की गई। सुखद यही रहा कि कोई अप्रिय घटना नहीं घटी लेकिन जब तक कार्यकर्ताओं ने आगरा खाली नहीं किया, स्थानीय लोगों के साथ प्रशासन की सांस अटकी रही।
आगरा का मामला अभी चल ही रहा था कि इटावा के दांदरपुर गांव में 21 जून को भागवत कथा कहने आए कथावाचकों को जाति छिपाने के आरोप में सवर्ण जाति के लोगों ने मारा-पीटा, चोटी कटवाई और यजमान महिला के पैर पर नाक रगड़वाई। मामला संज्ञान में आते ही पुलिस ने नामजद एफआईआर दर्ज करके चार लोगों को गिरफ्तार किया। इसी बीच शिकायत के आधार पर कथावाचकों पर भी छेड़खानी के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया। कथावाचकों के यादव जाति से जुड़े होने के कारण तीव्र प्रतिक्रिया हुई। सपा प्रमुख ने कथावाचकों को लखनऊ बुलाकर 21-21 हजार की राशि देकर सम्मानित किया तथा 51-51 हजार दिए जाने का आश्वासन दिया। इसी बीच इंडियन रिफॉर्मर्स ऑर्गनाइजेशन और ‘अहीर रेजीमेंट’ संगठन के अध्यक्ष गगन यादव घटना को लेकर सक्रिय हुए। गगन यादव के आवाहन पर 26 जून को अहीर रेजीमेंट और यादव महासभा के हजारों कार्यकर्ताओं ने पहले बकेवर थाने का घेराव करके कथावाचकों पर दर्ज मुकदमे को वापस लेने का दबाव बनाया। पुलिस ने वहां से खदेड़ा तो आगरा हाइवे पर जाम लगा दिया। उन्मादी भीड़ दांदरपुर गांव में घुसने का प्रयास कर रही थी। पुलिस के हस्तक्षेप पर भीड़ उग्र होकर ईंट पत्थर फेंकने लगी, पुलिस की कई गाड़ियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। पुलिस ने किसी प्रकार उपद्रवियों पर काबू पाया।
प्रयागराज में भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने करणी सेना और अहीर रेजीमेंट के हिंसक प्रदर्शन को कहीं पीछे छोड़ते हुए लगभग तीन घंटे बवाल काटा। मामला आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर को सर्किट हाउस में रोके जाने का था। भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को कौशांबी के लोहदा और प्रयागराज के करछना क्षेत्र के इसौटा लाहंगपुर गांव के पीड़ित दलित परिवारों से मिलने जाना था लेकिन प्रशासन ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर रोक दिया। सांसद सर्किट हाउस में ही अपने कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठे रहे। करछना में भीम आर्मी प्रमुख के इंतजार में दोपहर से ही कार्यकर्ता जुटने लगे थे लेकिन जैसे ही उनको सांसद को रोके जाने की खबर लगी, वे उग्र हो गए। कस्बे के भडेवरा बाजार में हजारों की संख्या में जुटे भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने खुला तांडव किया। पहले पुलिस पर हमला बोलकर भगा दिया फिर स्थानीय दुकानों में तोड़फोड़ कर मारपीट की। इसके बाद रास्ते में आने जाने वाले सार्वजनिक और प्राइवेट वाहनों को रोककर तोड़फोड़ की, सवारियों के साथ अभद्रता और मारपीट की। उपद्रव की इस घटना में पुलिस के वाहनों सहित दर्जनभर वाहन क्षतिग्रस्त किए गए, 15 मोटरसाइकिलें फूंक दी गईं। बड़ी संख्या में पुलिस, पीएसी बल के साथ स्थानीय दुकानदारों के खदेड़ने पर उपद्रवी भागे।
मात्र तीन महीने में जातीय सेना के तीन हिंसक आंदोलनों ने प्रदेश के सामाजिक ढांचे की नींव हिला दी है क्योंकि प्रदेश में जातीय संघर्ष की घटनाएं राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में नहीं आती थीं। प्रदेश कुछ वर्ष पूर्व तक सांप्रदायिक दंगों के लिए जाना जाता रहा है, छोटी-छोटी घटनाएं सांप्रदायिक हिंसा का कारण बन जाती थीं लेकिन भाजपा सरकार आने के बाद सांप्रदायिक झगड़े इतिहास बन गए हैं। गांव समाज की छोटी-छोटी घटनाएं जो स्थानीय स्तर पर हल हो जाती थीं अब जातीय संघर्ष का रूप ले रही हैं। अब कुछ लोग प्रदेश की तुलना 1990 के दशक में बिहार के जातीय संघर्ष से करने लगे हैं। उल्लेखनीय है कि बिहार में शुरू हुए जातीय संघर्ष की परिणति सामूहिक नरसंहार में बदल गई थी।
प्रदेश में हाल में घट रही इन घटनाओं को अब सियासत से जोड़ा जा रहा है। भाजपा के कट्टर हिंदुत्व की लाइन पर चलने से जातिगत राजनीति पर आश्रित अधिकांश राजनीतिक दल 2017 से ही बेदम हैं। उनके पास भाजपा को तोड़ने के लिए एक ही अस्त्र है कि हिंदुओं की एकता में सेंधमारी की जाए और फिलहाल विपक्ष उसी पर चलता दिखाई पड़ रहा है। आगरा की घटना को देखें तो सपा अपने सांसद के साथ खुलकर खड़ी रही और राणा सांगा विवाद को पीछे ढकेल कर सपा ने संदेश दिया कि यह दलित पर करणी सेना का अत्याचार है। आगरा दलित राजनीति का केंद्र है और करणी सेना वहीं दलित सांसद के विरुद्ध अस्त्र-शस्त्र के प्रदर्शन के साथ मार्च कर रही है। इटावा घटना में भी सपा ने पीडीए समीकरण को साधने के लिए कथावाचकों को सम्मानित करके उनसे हुई अभद्रता को यादव समाज के अपमान से जोड़ा। दलितों को साधने के लिए कहा कि वर्चस्ववादी जो काम पहले दलितों के साथ करते थे वही अब पिछड़ों के साथ हो रहा है। प्रयागराज में भीम आर्मी ने दलित एकता का प्रदर्शन करके स्थानीय लोगों में यह संदेश दिया कि अब वे दो-दो हाथ करने को तैयार हैं।
जातीय सेना के हिंसक प्रदर्शन को लेकर सरकार भी गंभीर है। इटावा घटना के बाद मुख्यमंत्री ने इटावा के एसएसपी के साथ कौशांबी के एसपी को कड़ी फटकार लगाई। योगी ने साफ शब्दों में कहा कि कुछ लोग प्रदेश में जातीय हिंसा फैलाना चाह रहे हैं और पुलिस इसे रोक नहीं पा रही है। इसके बाद इटावा और अब प्रयागराज पुलिस एक्शन में है। उपद्रवियों की पहचान करके गिरफ्तार किया जा रहा है। प्रयागराज के एडिशनल सीपी क्राइम डॉ. अजयपाल शर्मा ने कहा कि हिंसा में शामिल लोगों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाएगी। इन पर लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करके गैंगस्टर और बाद में रासुका लगाने की कार्रवाई की जाएगी। इटावा में संपत्तियों के नुकसान की भरपाई उपद्रवियों से वसूलने की तैयारी है।
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