निजीकरण के विरोध में सड़क पर उतरे देश के 27 लाख बिजली कर्मचारी

खबर सार :-
पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की बिजली आपूर्ति व्यवस्था के निजीकरण को लेकर रार बढ़ती जा रही है। निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मियों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। ऊर्जा प्रबंधन भी निजीकरण करने को लेकर कमर कस चुका है। आने वाले दिनों में ऊर्जा प्रबंधन और बिजली कर्मियों के बीच आक्रोश और बढ़ना तय है।

निजीकरण के विरोध में सड़क पर उतरे देश के 27 लाख बिजली कर्मचारी
खबर विस्तार : -

लखनऊ : यूपी के दो डिस्कॉम के 42 जनपदों की बिजली आपूर्ति व्यवस्था के निजीकरण के खिलाफ देश के सभी प्रांतों के बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओ ने बुधवार को नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के आह्वान पर प्रदर्शन किया। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के बैनर तले ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ़ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज, इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया, इंडियन नेशनल इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फेडरेशन और ऑल इंडिया पावर मेंस फेडरेशन ने 09 जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति और राज्य विद्युत परिषद जूनियर इंजीनियर्स संगठन केंद्रीय पदाधिकारियों ने बताया कि यूपी सरकार ने विद्युत वितरण निगमों में घाटे का भ्रामक आंकड़ा प्रस्तुत कर पूर्वांचल व दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण का निर्णय लिया है। इससे प्रदेश के बिजली कर्मियों में भारी आक्रोश है। प्रदेश के बिजली कर्मी बीते 07 माह से लगातार आंदोलनरत हैं, लेकिन खेद का विषय है कि प्रदेश सरकार ने आज तक एक बार भी उनसे वार्ता नहीं की। पदाधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में गलत पावर परचेज एग्रीमेंट के चलते विद्युत वितरण निगमों को निजी बिजली उत्पादन कम्पनियों को बिना एक भी यूनिट बिजली खरीदे 6761 करोड़ रुपए का सालाना भुगतान करना पड़ रहा है।

इसके अलावा निजी घरानों से बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीदने के चलते करीब 10,000 करोड रुपए प्रतिवर्ष का अतिरिक्त भार आ रहा है। प्रदेश में सरकारी विभागों पर 14,400 करोड़ रुपए का बिजली राजस्व का बकाया है। प्रदेश सरकार की नीति के तहत किसानों को मुफ्त बिजली दी जाती है। गरीबी रेखा से नीचे के बिजली उपभोक्ताओं को 03 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली दी जा रही है। वहीं बिजली की लागत 7.85 पैसे प्रति यूनिट है। बुनकरों आदि को भी सब्सिडी दी जाती है। सब्सिडी की धनराशि ही करीब 22,000 करोड़ रुपए है। प्रदेश सरकार इन सबको घाटा बताती है और इसी आधार पर निजीकरण का निर्णय लिया गया है। 

गरीब जनता को लालटेन युग में जा रहा धकेला  

पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि यूपीपीसीएल और शासन के कुछ बड़े अधिकारियों की कुछ चुनिंदा निजी घरानों के साथ मिली भगत है। वे लाखों-करोड़ों रुपए की बिजली की परिसंपत्तियों को कौड़ियों के भाव निजी घरानों को बेचना चाहते हैं। पूर्वांचल में प्रदेश की सबसे गरीब जनता निवास करती है। दक्षिणांचल में बुंदेलखंड क्षेत्र में बहुत गरीब लोग रहते हैं। जहां पर पीने के पानी की भी समस्या है। निजीकरण होने के बाद यहां के उपभोक्ताओं की सब्सिडी समाप्त होने का अर्थ होगा कि उपभोक्ताओं को 10 से 12 रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली खरीदनी पड़ेगी। इस प्रकार से प्रदेश की गरीब जनता को लालटेन युग में धकेला जा रहा है। 
 

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