Sultanpur Mahila Hospital: जिला महिला अस्पताल में बंद पड़ा शौचालय, खुले में शौच जाने को मजबूर तीमारदार

खबर सार : -
Sultanpur Mahila Hospital: सुलतानपुर के जिला महिला अस्पताल में बंद शौचालयों से मरीजों और तीमारदारों को भारी परेशानी, खुले शौच या पैसे देकर उपयोग करना बन गया मजबूरी। नगर पालिका का एकमात्र शौचालय वसूली का केंद्र।

खबर विस्तार : -

Sultanpur Mahila Hospital:  राजकीय मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. सलिल श्रीवास्तव द्वारा दावा किया गया था कि जिला महिला चिकित्सालय में सभी आवश्यक सुविधाएं मरीजों के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। अस्पताल परिसर के सभी शौचालयों पर ताले जड़े गए हैं और मरीजों के परिजनों तथा तीमारदारों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में परिसर में केवल नगर पालिका परिषद द्वारा संचालित एकमात्र शौचालय चालू है, जिसे सुविधा केंद्र कम और ‘वसूली केंद्र’ ज्यादा बना दिया गया है। इस सार्वजनिक शौचालय के उपयोग के लिए शुल्क वसूला जा रहा हैकृजो कि न केवल अस्पतालों में मुफ्त सुविधाओं की नीति के खिलाफ है, बल्कि मरीजों की गरिमा के भी विरुद्ध है।

स्वच्छ भारत मिशन के तहत तय मानकों की भी खुली अवहेलना

सबसे ज्यादा परेशानी प्रसव वार्ड में भर्ती प्रसूताओं और उनके परिजनों को हो रही है। महिलाओं को बार-बार शौचालय की आवश्यकता होती है, लेकिन या तो उन्हें शुल्क देना पड़ता है या खुले में जाना पड़ता है, जो उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान तीनों के लिए संकट बन चुका है। तीमारदारों में शामिल बुजुर्ग, विकलांग व्यक्ति और छोटे बच्चों के साथ आई महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हैं। अस्पताल की दीवार से सटी झाड़ियों के पीछे अथवा आसपास की खाली जगहों का उपयोग करना अब मजबूरी बन गया है। यह स्थिति न सिर्फ अमानवीय है बल्कि अस्पताल की स्वच्छ भारत मिशन के तहत तय मानकों की भी खुली अवहेलना है। जब इस विषय पर अस्पताल कर्मचारियों से पूछा गया तो उन्होंने साफ किया कि यह जिम्मेदारी नगर पालिका की है, जबकि नगर पालिका के कर्मचारी इसे ‘नियमित व्यवस्था’ बताकर पल्ला झाड़ते नज़र आए। 

जिम्मेदार एक दूसरे की तरफ उछाल रहे गेंद

स्थानीय नागरिकों ने सवाल उठाया है कि जहां एक ओर सरकार महिलाओं की गरिमा और स्वच्छता के लिए योजनाएं चला रही है, वहीं अस्पताल जैसी संवेदनशील जगहों पर बुनियादी ज़रूरतें भी उपेक्षा का शिकार हैं। स्थिति यह है कि अस्पताल प्रशासन, नगर पालिका और स्वास्थ्य विभाग की तिकड़ी में जिम्मेदारी की गेंद एक-दूसरे के पाले में उछाली जा रही है, और भुगतना केवल आम मरीज और उनके परिजनों को पड़ रहा है।

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