लखनऊ के मड़ियांव में लापता युवक की नाले में मिली लाश, परिजनों ने पत्नी और पुलिस दोनों पर जताया शक

Summary : लखनऊ शहर के मड़ियांव थाना क्षेत्र में उस वक्त सनसनी फैल गई जब 12 अप्रैल से लापता एक युवक का शव स्थानीय नाले में उतरता हुआ मिला।

लखनऊ: शहर के मड़ियांव थाना क्षेत्र में उस वक्त सनसनी फैल गई जब 12 अप्रैल से लापता एक युवक का शव स्थानीय नाले में उतरता हुआ मिला। शव की पहचान 27 वर्षीय रोहित कुमार के रूप में हुई है, जिसकी शादी महज पांच महीने पहले ही हुई थी। परिजनों ने इस मौत को केवल दुर्घटना मानने से इनकार करते हुए न केवल पत्नी पर गंभीर आरोप लगाए हैं, बल्कि पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं।

शादी के बाद से ही परेशान था रोहित

परिजनों का कहना है कि रोहित की पत्नी शादी के बाद भी किसी और युवक से बातचीत करती थी, जिसको लेकर घर में अक्सर झगड़े होते थे। रोहित ने कई बार परिवारवालों से यह बात साझा की थी कि उसकी पत्नी का व्यवहार संदिग्ध है और वह उससे मानसिक रूप से परेशान रहता है। यह भी बताया गया कि बीते कुछ दिनों से उसका बर्ताव और भी चुप्पा और तनावपूर्ण हो गया था।

पुलिस ने गम्भीरता से नहीं लिया रोहित के लापता होने की खबर

12 अप्रैल की रात रोहित अचानक लापता हो गया। परिजनों ने तुरंत इसकी सूचना मड़ियांव थाने में दी, लेकिन पुलिस ने शुरू में इसे गंभीरता से नहीं लिया। परिजन लगातार थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने न तो कॉल डिटेल्स खंगाले, न ही कोई ठोस खोजबीन की। इसके छह दिन बाद, 18 अप्रैल को स्थानीय लोगों ने एक नाले में सड़ी-गली लाश देखी, जिसकी सूचना पुलिस को दी गई। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को बाहर निकाला और उसकी पहचान रोहित कुमार के रूप में की। घटना से आक्रोशित परिजनों का कहना है कि यदि पुलिस समय पर कार्रवाई करती, तो शायद रोहित की जान बचाई जा सकती थी। रोहित के पिता ने यह भी आरोप लगाया कि यह कोई साधारण आत्महत्या या दुर्घटना नहीं, बल्कि एक साजिश हो सकती है, जिसकी जड़ें उसकी पत्नी के कथित रिश्तों से जुड़ी हैं।

कार्यवाही न होने के कारण उजड़ गया एक मां का दामन...

मड़ियांव के घैला क्षेत्र में जिस दर्दनाक घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया, उसके पीछे सबसे बड़ा सवाल यही है — अगर समय रहते पुलिस ने कार्यवाही की होती, तो क्या आज एक मां की गोद सूनी होती? मृतक रोहित कुमार के पिता ने घैला चौकी इंचार्ज पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि बेटे के लापता होने की जानकारी देने के बाद भी चौकी इंचार्ज ने न कोई प्राथमिकता दी, न ही कोई प्रभावी कदम उठाया।

“अगर मेरी बात सुनी गई होती, अगर समय पर कार्रवाई की जाती, तो आज मेरा बेटा जिंदा होता,” यह कहते हुए रोहित के पिता की आँखें नम हो गईं। उनका कहना है कि शिकायत के बावजूद चौकी में केवल टालमटोल किया गया और उनकी पुकार अनसुनी रही। अब यह बेबस पिता उच्च अधिकारियों से न्याय की गुहार लगा रहा है। उसकी मांग है कि जिनकी लापरवाही से एक ज़िंदा बेटे की लाश मिली, उन पर सख्त कार्रवाई हो। एक पिता की टूटती उम्मीदें और एक मां का उजड़ता दामन यही सवाल करता है—क्या सिस्टम की चुप्पी किसी की जान से बड़ी हो सकती है?

 मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने फिलहाल शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और जांच शुरू कर दी है। पुलिस का कहना है कि सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए छानबीन की जा रही है और मोबाइल कॉल डिटेल्स की भी जांच की जाएगी। हालांकि, रोहित की मौत ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब परिवार किसी व्यक्ति की गुमशुदगी की रिपोर्ट करता है, तो क्या पुलिस उसे गंभीरता से लेती है? और क्या वैवाहिक जीवन में आ रहे तनाव को नज़रअंदाज़ करना कभी-कभी जानलेवा साबित हो सकता है?
 

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