अप्रैल में जारी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की विश्व आर्थिक परिदृश्य (WEO) रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है और 2025 के अंत तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। मार्च तिमाही में मजबूत प्रदर्शन के बावजूद भारत की वित्त वर्ष 2024-25 में सकल घरेलु उत्पाद की वृद्धि दर चार वर्ष के निचले स्तर 6.5% पर आ गई। हालांकि, अर्थव्यवस्था में मार्च की तिमाही में तेजी से वृद्धि हुई और यह एक वर्ष पहले की तुलना में चार तिमाहियों के उच्चतम स्तर 7.4% पर पहुंच गई, वह भी उच्च अमेरिकी टैरिफ और भू-राजनीतिक स्थिति से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के बावजूद। सरकारी व्यय, ग्रामीण मांग और कम ब्याज दरों के कारण देश सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है। भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए मुख्य जोखिमों में शहरी उपभोक्ता मांग में कमी, निजी निवेश में कमी और अस्थिर वैश्विक वातावरण शामिल हैं। परन्तु कर राहत और मुद्रास्फीति में कमी से आने वाले वर्ष में उपभोक्ता व्यय और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
सरकारी व्यय और निजी व्यय में वृद्धि
वैश्विक अनिश्चितताओं और निजी फर्मों द्वारा निवेश में देरी करने की वजह भी जनवरी-मार्च तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि नहीं रोक सकी। इस तिमाही भारत की आर्थिक वृद्धि में तेजी देखने का मिली जो अन्य कारकों के अलावा उच्च सरकारी व्यय से प्रेरित थी। आगे भी सरकारी व्यय संवृद्धि को बढ़ावा देना जारी रखा जाएगा। उच्च संवृद्धि और रिजर्व बैंक द्वारा लाभांश भुगतान से सरकार वित्त वर्ष 2025-26 में व्यय में 0.8 ट्रिलियन रुपये तक की वृद्धि करने की स्थिति में है। यदि इस पूरी राशि का उपयोग पूंजीगत व्यय के लिए किया जाए तो कुल पूंजीगत व्यय बजट में निर्धारित 11.2 ट्रिलियन रुपये से बढ़कर 12.0 ट्रिलियन रुपये हो जाने की संभावना है। जिससे इसकी वृद्धि वर्तमान की स्थिति को देखते हुए लगभग दो गुनी हो जाएगी। यानी 14.2 प्रतिशत हो जाएगी, जबकि के बीच भारत का कॉर्पाेरेट पूंजीगत व्यय अनिश्चित रहने की संभावना है। परन्तु हाल के महीनों में निजी व्यय में वृद्धि दिख रही है।
समग्र उपभोक्ता मांग में वृद्धि
वित्तीय वर्ष 2025-26 में शहरी मांग में उतार-चढ़ाव के बावजूद ग्रामीण मांग ठीक रही है और यह आगे भी आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ग्रामीण भारत में ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री के साथ-साथ उपभोक्ता सामानों की बिक्री भी काफी अच्छी रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में वास्तविक मजदूरी भी बढी है। इस वर्ष मानसून अच्छा रहने से ग्रामीण क्षेत्र में कृषि आय में और इस कारण ग्रामीण क्षेत्र की मांग में वृद्धि होने की पूरी संभावना है। कृषि उत्पादन बढ़ने से मुद्रास्फीति भी निम्न स्तर पर बनी रह सकती है। कुल मिलाकर आने वाले समय में भारत में घरेलू मांग या खपत में उल्लेखनीय सुधार देखा जा सकता है। कोविड के बाद से ही निम्न और मध्यम आय वर्ग के उपभोक्ताओं के आय और व्यय में वृद्धि काफी सुस्त रही है। अब जबकि केंद्रीय बजट में सरकार ने बड़ी आयकर राहत दी है, ब्याज दरें भी लगातार कम हो रही है और अपने निचले स्तरों पर है, मुद्रा स्फीति भी कम हुई है, ऐसे में ग्रामीण मांग के साथ-साथ शहरी मांग में और इस प्रकार समग्र उपभोक्ता मांग में वृद्धि की पूरी संभावना है जोकि आर्थिक समृद्धि को आगे गति प्रदान करेंगे।
सकारात्मक मौद्रिक नीति
भारतीय रिजर्व बैंक की नई मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में तेज समृद्धि के लिए एक बेहतरीन उत्प्रेरक का कार्य करेगी। रेपो दर में 50 आधार अंकों की कटौती के साथ-साथ नगदी रिजर्व अनुपात में 100 आधार अंकों की कटौती एक साहसिक और बेहद सक्रिय व सकरात्मक कदम है। फरवरी 2025 से अब तक रेपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती हुई है। यह भारतीय रिजर्व बैंक की भविष्य की नीति की स्पष्टता को बताता है, अर्थव्यवस्था में मांग और आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने, उसे पूरी तरह से समर्थन देने के लिए यह रिजर्व बैंक की प्रतिबद्धता का एक सशक्त संकेत है, विशेष रूप से ऐसे समय में जबकि वैश्विक स्तर पर अनेक प्रकार की अनिश्चितताएं और तनाव हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था भी चुनौतियों से जूझ रही है।
चूंकि आने वाले समय में मुद्रास्फीति के कम रहने का अनुमान है इसलिए रिजर्व बैंक के कदमों से उधार लेने की लागत में कमी होने और निम्न आय और वंचित लोगों को सस्ता ऋण उपलब्ध होने से अर्थव्यवस्था में एक अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा, घरेलू उपभोग में वृद्धि के साथ-साथ ऋण की मांग में वृद्धि होगी, निवेश बढ़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसे समय में सीआरआर में कटौती करना जबकि वित्तीय प्रणाली में पहले से ही काफी तरलता उपलब्ध है, इस बात का द्योतक है कि रिजर्व बैक अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों को संरचनात्मक रूप से कम करने और ऋण मांग को बढ़ावा देने की नीति पर कायम रहेगा जिससे कि घरेलू व्यय और निवेश बढे और अर्थव्यवस्था की सवृद्धि नयी ऊचाईयों को छुए।
रिजर्व बैंक की ऐतिहासिक मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में ऋण और निवेश में जल्दी तीव्र वृद्धि की शुरुआत करने का आधार तैयार करती है। मौद्रिक नीति का एक संकेत यह भी है कि मुद्रा स्फीति फिलहाल चिंता का विषय नहीं है इसलिए भविष्य में कुछ और भी इस प्रकार की कटौतियां हो सकती हैं जोकि आर्थिक समृद्धि की गति को तेज करने में सहायक होगी।
अंत में,
इसराइल और ईरान में युद्ध भड़कने के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। परंतु जब तक तेल का भाव 80-85 डॉलर से कम है, बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है, यहां तक की वृद्धि अर्थव्यवस्था झेल सकने की स्थिति में है। इससे अधिक बढ़ने तेल कीमतें बढ़ने पर अर्थव्यवस्था पर थोडा असर पड़ेगा। वैसे खराब से खराब स्थिति में भी भारत में आर्थिक समृद्ध की दर इस वित्तीय वर्ष में भी 6 से 6.5 प्रतिशत तक बनी रहेगी। इस समय सरकार और रिजर्व बैंक दोनों आर्थिक समृद्ध बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं, दोनों की नीतियां इसके लिए सहायक है, दोनों में तालमेल अच्छा है। अच्छी बात यह है कि समय मुद्रा स्फीति भी नियंत्रण में है। रिजर्व बैंक अपनी नीतियों से अर्थव्यवस्था में तरलता बढाकर अभी समृद्ध में सहायता देता रहेगा,वहीं लोकसभा चुनाव के कारण सरकार के व्यय में जो कमी आई थी वह अब हाल के महीनो में तेजी से बड़ा है।अब निजी क्षेत्र का निवेश भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है जिसकी आवश्यकता पिछले तीन-चार वर्षो से महसूस की जा रही थी। वस्तुत: समृद्धि को रफ्तार यहीं से मिलनी है, तभी रोजगार सृजन भी बढ़ेगा। अभी भी बैंकिंग क्रेडिट की वृद्धि थोड़ी कम है शहरी मांग में भी थोड़ी कमी है परन्तु वर्ष के अगले छमाही में इन दोनों में सुधार के संकेत है।
प्रोफेसर, अर्थशास्त्र विभाग
ईसीसी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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