दत्तात्रेय होसबाले ने “मानव सेवा-माधव सेवा, जनसेवा-जनार्दन सेवा” का दिया मूलमंत्र
Summary : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, गोमतीनगर विस्तार के ऑडिटोरियम में सोमवार को श्री गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा 5.0 के कार्यकर्ता सम्मान समारोह का भव्य आयोजन हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, गोमतीनगर विस्तार के ऑडिटोरियम में सोमवार को श्री गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा 5.0 के कार्यकर्ता सम्मान समारोह का भव्य आयोजन हुआ। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस समारोह में समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले कार्यकर्ताओं को सम्मानित किया गया और भारत की सेवा परंपरा को रेखांकित किया गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत की भूमि सेवा की भूमि है। यहाँ की पहचान सेवा और त्याग से है। प्रार्थना करने वाले मुख से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं वे हाथ, जो सेवा कार्य में जुटे हैं। उन्होंने “मानव सेवा-माधव सेवा, जनसेवा-जनार्दन सेवा” के मूलमंत्र को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह सम्मान समारोह केवल पुरस्कार वितरण नहीं, बल्कि समाज के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है। उन्होंने गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा के तहत सुदूर जनजातीय क्षेत्रों में चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करने वाले डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं की प्रशंसा की। होसबाले ने कहा कि यह यात्रा 2019 से वंचित समुदायों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाने का पवित्र कार्य कर रही है, जो वंदनीय है।
उन्होंने नेशनल मेडिकोज ऑर्गनाइजेशन (एनएमओ) के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह संगठन युवा चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों को जनसेवा के लिए प्रेरित कर रहा है। उन्होंने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में डॉ. हेडगेवार अस्पताल का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां कम वेतन में भी डॉक्टर समाज के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि सेवा में कोई भेदभाव नहीं होता। कोरोना महामारी के दौरान समाज ने गरीबों और मजदूरों की सेवा में जिस तरह एकजुटता दिखाई, वह भारत की सेवा भावना का जीवंत उदाहरण है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में भारत की ऋषि परंपरा और सांस्कृतिक एकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य की शंकर दिग्विजय यात्रा ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बाँधा था। इसी तरह, गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा यात्रा भारत-नेपाल सीमा पर बसे जनजातीय समुदायों के बीच एकता और सेवा का संदेश फैला रही है। उन्होंने बताया कि 2017 से पहले थारू, मुसहर, कोल, गोंड और वनटांगिया जैसी जनजातियों को मूलभूत सुविधाएँ, जैसे राशन कार्ड, बिजली, सड़क और स्वास्थ्य सेवाएँ, उपलब्ध नहीं थीं। उनकी सरकार ने इन समुदायों को राजस्व ग्राम का दर्जा देकर विकास की मुख्यधारा से जोड़ा। सीएम योगी ने कहा, कि 2017 के बाद इन गाँवों में सड़क, बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित किए गए। आयुष्मान योजना, पेंशन और आवास जैसी योजनाओं ने इनके जीवन को बदल दिया। उन्होंने इस यात्रा को राष्ट्र निर्माण और सामाजिक एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।भारत-नेपाल सीमा पर मैत्री का संदेश मुख्यमंत्री ने गुरु गोरखनाथ स्वास्थ्य सेवा न्यास और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान को सराहा। उन्होंने कहा कि यह यात्रा केवल स्वास्थ्य सेवा तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और भावनात्मक मैत्री को मजबूत कर रही है। उन्होंने अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ और नानाजी देशमुख को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इन महान व्यक्तित्वों की प्रेरणा से यह सेवा कार्य संभव हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत होसबाले और सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा भगवान धन्वंतरी, भारत माता, गुरु गोरखनाथ और स्वामी विवेकानंद के चित्रों पर पुष्पार्पण के साथ हुई। समारोह में नेशनल मेडिकोज ऑर्गनाइजेशन और श्री गुरु गोरखनाथ सेवा न्यास के कार्यकर्ताओं को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और प्रेरक गीत भी प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने उपस्थित लोगों में उत्साह का संचार किया। यह समारोह न केवल स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों का उत्सव था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को मजबूत करने का एक संदेश भी था। दत्तात्रेय होसबाले ने अंत में सभी से आह्वान किया कि समाज के प्रति अपनत्व और कृतज्ञता की भावना को अपनाकर सेवा कार्य को और विस्तार दें। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस यात्रा को आदि शंकराचार्य की परंपरा से जोड़ते हुए इसे राष्ट्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया।
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