अयोध्या: प्रगतिशील लेखक संघ, जनपद इकाई अयोध्या ने प्रेस क्लब मे प्रगतिशील लेखक संघ के नब्बे वर्ष पूरे होने पर “प्रगतिशील आंदोलन: अतीत, वर्तमान और भविष्य” विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित किया, जिसके मुख्य अतिथि और मुख्य वक्त थे महामंत्री प्रलेस, उत्तर प्रदेश संजयवास्तव। सभा की अध्यक्षता शहर के वरिष्ठ कवि एवं प्रलेस जनपद इकाई के अध्यक्ष स्वप्निलवास्तान ने किया। गोष्ठी का संचालन कॉमरेड अशोक कुमार तिवारी ने किया।
मुख्य वक्ता संजयवास्तव ने प्रलेस की निर्माण प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि बीसवीं शती के प्रारंभ में स्थापित हुआ भारतीय प्रगतिशील लेखकों का एक समूह है। यह लेखक समूह अपने लेखन से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता का समर्थन करता है और कुरीतियों अन्याय व पिछड़ेपन का विरोध करता है। इसकी स्थापना 1935 में लंदन में हुई। इसके प्रणेता सज्जाद ज़हीर थे। अखिल भारतीय हिन्दी प्रगतिशील लेखक संघ का प्रथम सम्मेलन लखनऊ में 1936 आयोजित हुआ, जिसकी अध्यक्षता 'प्रेमचन्द जी' ने की थी। उन्होंने कहा, साहित्य की अभिजात्य संस्कृति ने आम जनता को साहित्य से दूर कर दिया है। अभिजात्य साहित्य ने राजा-महाराजाओं का इतिहास लिखा वह कभी भी आम जनता की समस्याओं से जुड़ा नहीं रहा। साहित्य आम जनता का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग आधुनिकतावादी हैं तथा प्रगतिशील विचारों को मानने वाले हैं उनको अर्बन नक्सल कहकर प्रचारित किया जाता है। राजनीति वर्ग में वर्ग बनाकर केवल उनका प्रयोग करना चाहती हैं। भले ही समाज में इसके लिए नफरत ही क्यों न घोलना पड़े।
विचार गोष्ठी में साहित्यकार डॉ. विशालवास्तव ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि प्रगतिशील आंदोलन आजादी के पहले से चल रहा है। उस समय की चुनौतियां अलग थीं। आज के समय प्रगतिशील लेखकों के सामने अलग तरह की चुनौती है।
वामपंथी नेता सूर्यकांत पाण्डेय ने कहा कि विकास के साथ समस्याएं भी पैदा हुई हैं। समस्याओं का निराकरण ही प्रगतिशीलता है। जो प्रगतिशीलता में बाधक हैं उनको सत्ता से हटाकर प्रगतिशीलता को आगे बढ़ाना चाहिए।
समालोचक प्रो. रघुवंशमणि ने बताया कि प्रगतिशील लेखक संघ का घोषणापत्र 1935 में लंदन में ज़हीर, तासीर, आनंद, सेनगुप्ता और ज्योति घोष द्वारा तैयार किया गया था। ज़हीर ने घोषणापत्र के अनुमोदित संस्करण को भारत में लेखकों और मित्रों को भेजा, जिनमें केएम अशरफ, अब्दुल अलीम, महमूद-उज़-ज़फ़र, रशीद जहाँ, हीरेन मुखर्जी और प्रेमचंद शामिल थे। प्रेमचंद ने घोषणापत्र का हिंदी में अनुवाद किया और इसे 1935 में हंस के अक्टूबर संस्करण में प्रकाशित किया, जबकि घोषणापत्र का अंग्रेजी संस्करण लेफ्ट रिव्यू के फरवरी 1936 के अंक में प्रकाशित हुआ। उन्होंने कहा, प्रगतिशील आंदोलन राजनीतिक आंदोलन नहीं है। राजनीतिक मकड़जाल विभाजन की तरफ ले जाता है। प्रगतिशील विचार हमें एक रहने की प्रेरणा देते हैं।
मोतीलाल तिवारी ने कहा कि प्रगतिशीलता यदि सृजनशीलता की तरफ ले जाये तभी हम प्रगतिशील हैं।
साहित्यकार डॉ. आरडी आनन्द ने कहा कि मौजूदा समय में पूंजीवाद सूचनाओं को संचालित कर रहा है। जिससे आम लोगों की सूचनाएं परिदृश्य से गायब होती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि जब अंधेरा घना हो जाता है तो उसका अर्थ है कि सूरज निकलने वाला है। जहां साहित्यकारों और उनके संगठनों को संगठित होकर कार्य करना चाहिए था वहीं प्रलेस से छिटक कर जलेस, जन संस्कृति मंच, दलित साहित्य संघ, आंबेडकर साहित्य संघ और बहुजन साहित्य संघ जैसे संगठनों में हम विभक्त हो गए। हमें पुनः अपने को संगठित करके वैश्विक पूंजीवाद को शिकस्त देना होगा।
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुमन गुप्ता ने कहा कि वर्तमान को हम सभी लोग देख रहे हैं। जब प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई थी तब भारत में अलग तरह की चुनौती थी। आज प्रगतिशील लेखक संघ के आगे अलग तरह की चुनौती है।
कवि एवं शिक्षक डॉ. अनिल सिंह ने कहा कि जिस परिवेश में हम रह रहे हैं उसमें लोगों को पढ़ाई-लिखाई तथा पढ़े-लिखे लोगों से दिक्कत है। आजादी की संकल्पनाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना हुई थी।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निलवास्तव ने कहा कि इस मुश्किल दौर में हमें अपनी भूमिका को रेखांकित करना होगा। प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना मुंशी प्रेमचन्द ने आजादी के मूल्यों को संजोने के लिए की थी।
विचार गोष्ठी को वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह तथा निर्मल त्रिपाठी ने भी संबोधित किया। विचार गोष्ठी में कथाकार सआदत हसन मंटो को भी वक्ताओं द्वारा उनके जन्मदिन पर याद किया गया। मंटो की कहानी टोबा टेक सिंह के किरदार का जिक्र भी वक्ताओं द्वारा आज के परिवेश में किया गया। अंत में, इप्टा के अध्यक्ष बहुप्रतिष्ठित साथी अयोध्या प्रसाद तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभा को बर्खास्त किया।
इस अवसर पर पूर्व विधायक हुबराज, डॉ. विंध्यमणि त्रिपाठी, रामतीरथ पाठक, अयोध्या प्रसाद तिवारी, सत्यभान सिंह जनवादी, मुजम्मिल फिदा, अवधराम यादव, अतीक अहमद, ओमप्रकाश यादव, अनिरुद्ध प्रताप मौर्य, अवधेश निषाद सहित कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।
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