‘टॉक्सिसिटी न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है’: विशेषज्ञों की सलाह

खबर सार : -
टॉक्सिसिटी न केवल मानसिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। जानिए इसके प्रकार, प्रभाव और इससे बचने के उपाय, विशेषज्ञों की राय के साथ।

खबर विस्तार : -

लखनऊ: आज के समय में लोग अपनी मानसिक और शारीरिक सेहत को प्राथमिकता दे रहे हैं और इससे जुड़ी समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कड़ी में, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या टॉक्सिसिटी के बारे में चर्चा करना जरूरी हो जाता है। टॉक्सिसिटी न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि हमारे आसपास के लोगों और माहौल को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। विशेषज्ञों के अनुसार, टॉक्सिसिटी से निपटने के लिए सकारात्मक सोच, स्वस्थ जीवनशैली और सही माहौल का होना आवश्यक है।  

’क्या होती है टॉक्सिसिटी?’  

लखनऊ विश्वविद्यालय के साइकोलॉजी विभाग की हेड डॉ अर्चना शुक्ला के अनुसार टॉक्सिसिटी का अर्थ है टॉक्सिक शब्द वातावरण से आया है। जिस तरह से वातावरण पाल्यूशन से टॉक्सिक हो जाता है, जैसे पानी दूषित हो गया हवा दूषित हो गई। जब वातावरण टॉक्सिक हो जाता है तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है उसी तरह जब मानसिक रूप से व्यक्ति प्रदूषित हो जाए तो उसका भी खामियाजा व्यक्ति को भगुतना पड़ता है। 
ऐसा व्यवहार, विचार या जीवनशैली जो आपकी मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह न केवल तनाव, चिंता, असुरक्षा और गुस्से को जन्म देती है बल्कि आपके आसपास के लोगों को भी प्रभावित कर सकती है। डॉ शुक्ला ने कहा कि हमारे विचार और आदतें भी टॉक्सिसिटी को जन्म देती हैं। केवल हमारा व्यवहार ही नहीं, बल्कि हमारा पर्यावरण और सोशल मीडिया भी मानसिक विषाक्तता को बढ़ाते हैं। टॉक्सिसिटी को कम करने के लिए स्वस्थ आदतों, सकारात्मक सोच और सही लोगों के साथ समय बिताना जरूरी है।  

टॉक्सिसिटी के प्रकार और उनके प्रभाव  

शारीरिक टॉक्सिसिटी शरीर की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। अस्वस्थ खानपान, कम पानी पीना, शारीरिक गतिविधियों की कमी और अनियमित नींद इस समस्या को बढ़ाते हैं। इससे बचने के लिए हेल्दी डाइट अपनाना, अधिक पानी पीना, हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करना और सात से आठ घंटे की नींद लेना जरूरी होता है।  
मानसिक टॉक्सिसिटी उन विचारों से जुड़ी होती है जो व्यक्ति के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। अधिक सोचना, हर परिस्थिति में बुरा ही सोचना और अवास्तविक अपेक्षाएं रखना इस समस्या को बढ़ाते हैं। इसे दूर करने के लिए योग और मेडिटेशन को अपनी दिनचर्या में शामिल करना, प्रकृति के साथ समय बिताना और अच्छी किताबें पढ़ना मददगार साबित होता है।  
भावनात्मक टॉक्सिसिटी से ग्रसित व्यक्ति में गुस्सा जल्दी आता है। गुस्सा अनियंत्रित हो सकता है। छोटी छोटी बातों में दूसरों से उलझना, जो उसे मिला है उससे संतुष्ट नहीं होना, खुद को कम आंकने लगता है और अपनी भावनाओं को ठीक से व्यक्त नहीं कर पाता। इसके चलते वह हमेशा असफलता और रिजेक्शन के डर में जीता है। इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपनी भावनाओं को साझा करे, खुद को स्वीकार करे और आत्मसम्मान बनाए रखे।  डॉ शुक्ला के अनुसार इस परिस्थित से बचने के लिए सबसे अधिक जरूरत है कि समय समय पर व्यक्ति अपने अदंर झांके और आत्म चिंतन करें। हमेशा दूसरों पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति से बचे और अपने खुद के किरदार की गलतियों को मान कर उन्हें सुधारें। जब व्यक्ति अपने अंदर झांकेगा तो उससे अपनी कमजोरिया, और अपनी मजबूती का एहसास होने लगता है। व्यक्ति पर्यावरणीय टॉक्सिसिटी का असर भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। गंदगी और प्रदूषण भरा माहौल, हर समय तनावपूर्ण स्थिति में रहना और हरी-भरी जगहों से दूर रहना इस समस्या को जन्म देता है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति अपने घर और कार्यस्थल पर पौधे लगाए, जहां भी काम करता है वहां सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखे और एक स्वच्छ एवं व्यवस्थित माहौल में रहने की आदत डाले। दूसरी विधि इस परिस्थिति से बचने की है जैसा हमारे ग्रन्थों में कहा गया है आत्म नियत्रंण। सोशल टॉक्सिसिटी भी जीवन में तनाव बढ़ाने का एक बड़ा कारण बन सकती है। सोशल मीडिया की लत, नकारात्मक लोगों के साथ ज्यादा समय बिताना और दूसरों की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा दखल देना मानसिक शांति को प्रभावित करता है। इससे बचने के लिए सोशल मीडिया का सीमित उपयोग करना, अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताना और अपनी सामाजिक सीमाएं तय करना जरूरी है।  

’टॉक्सिसिटी को दूर करने के उपाय’  

विशेषज्ञों का मानना है कि टॉक्सिसिटी को खत्म करने के लिए सबसे जरूरी है कि व्यक्ति अपनी सीमाएं तय करे, खुद को स्वीकार करे और बेवजह की अपेक्षाएं न रखे। जब कोई व्यक्ति खुद के प्रति सच्चा होता है, तो उसका मानसिक तनाव कम हो जाता है। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसलिए टॉक्सिसिटी से बचने के लिए अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताना, खुलकर हंसना, अच्छा संगीत सुनना और हेल्दी डाइट अपनाना जरूरी होता है। अगर कोई व्यक्ति टॉक्सिसिटी से ग्रसित महसूस करता है, तो उसे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाने की जरूरत होती है। ओवरथिंकिंग को रोकना, माइंडफुलनेस को अपनाना, सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग से बचना और खुद को मानसिक रूप से मजबूत बनाना बेहद जरूरी होता है। अगर समस्या अधिक महसूस हो रही हो तो किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना फायदेमंद साबित हो सकता है। 

__________________________________________________________________________________________________________________________

टॉक्सिसिटी को खत्म करने के लिए सबसे जरूरी है कि हम खुद स्वीकार करें हम जैसे हैं हम खुद को उसी रूप में स्वीकारें खुद को बदलने की कोशिश न करें। स्वयं से बेवजह की अपेक्षाएं न रखें। जब हम खुद के प्रति सच्चे होते हैं, तो हमारा मानसिक तनाव कम हो जाता है। मेंटल और फिजिकल हेल्थ एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। टॉक्सिसिटी से बचने के लिए अच्छे और सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताएं, हंसें, अच्छा म्यूजिक सुनें और हेल्दी डाइट अपनाएं। जरूरत पड़ने पर किसी एक्सपर्ट से सलाह लें।

डॉ. अर्चना शुक्ला, हेड, डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी, एलयू
 

अन्य प्रमुख खबरें