Mother's Day: मां बनना ईश्वर का वरदान, बच्चे की परवरिश में नींद तक की देनी पड़ती है कुर्बानी

खबर सार : -
Mother's Day 2025 : मां सिर्फ़ एक शब्द नहीं है। यह जीवन का एक ऐसा एहसास है जिसमें बहुत कुछ समाया हुआ है। दुनिया के हर इंसान के लिए सबसे प्यारा और खास रिश्ता मां का होता है। मां वो हैं जो अपने बच्चों के लिए खुद को खपा देती है, भूला देती है।

खबर विस्तार : -

Mother's Day 2025 : मां सिर्फ़ एक शब्द नहीं है। यह जीवन का एक ऐसा एहसास है जिसमें बहुत कुछ समाया हुआ है। दुनिया के हर इंसान के लिए सबसे प्यारा और खास रिश्ता मां का होता है। मां सिर्फ़ हमारे शरीर को ही नहीं बल्कि हमारे मन, हमारे व्यक्तित्व, हमारे आत्मविश्वास को भी आकार देती है। मां वो हैं जो अपने बच्चों के लिए खुद को खपा देती है, भूला देती है। मां दुनिया में वो इंसान है जिसके कदमों में स्वर्ग होता है। दुनिया में सिर्फ़ मां ही है जो बिना किसी स्वार्थ के प्रेम करती है। 

Mother's Day: मां बनते ही बदल जाती है महिला का पूरी जिंदगी 

मां बनना ईश्वर द्वारा एक महिला को दिया गया सबसे बड़ा वरदान है। मां बनते ही जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है, दिनचर्या, प्राथमिकताएं और सबसे ज्यादा नींद से आपका रिश्ता टूट जाता है। मां बनने के साथ ही शरीर में कई बदलाव भी आते हैं। स्किन पर भी असर पड़ता है। ऐसे में क्या करना चाहिए? दादी-नानी के नुस्खे कारगर हैं, लेकिन इसके साथ ही आधुनिक पैथी में भी इसका इलाज है।

प्रसव के बाद चिड़चिड़ापन और थकान बनी रहती है। इसका एक कारण नींद की कुर्बानी भी है। रातें बच्चों की देखभाल करने, उन्हें जगाने, खिलाने, डायपर बदलने और ये जानने की कोशिश में निकल जाती है कि कहीं कुछ गलत तो नहीं कर रही। ये गंभीर मनोदशा विकार है जो गर्भावस्था के दौरान या बच्चे के जन्म के बाद करीब एक साल तक 7 में से 1 महिला को इस स्थिति से गुजरना पड़ता है। प्रसव के अवसाद हार्मोनल परिवर्तन, आनुवंशिक प्रवृत्ति और पर्यावरणीय कारक उतन्न होते हैं।

प्रसव के 42 दिन तक महिला की देखभल बेहद जरुरी

आयुर्वेद प्रसवोत्तर अवधि को नई मां के लिए एक महत्वपूर्ण चरण मानता है। आयुर्वेद की माने तो प्रसव के बाद के पहले 42 दिन एक महिला के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। इस अवधि के दौरान, मां को प्रसव से उबरने, ताकत हासिल करने और हार्मोनल संतुलन को बहाल करने में मदद करने के लिए विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। ठीक वैसे ही जैसे हमारी दादी-नानी करती रही हैं। 

आयुर्वेद में प्रसव के बाद मां की देखभाल आवश्यक है, क्योंकि गर्भावस्था और प्रसव के कारण वात में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, जिससे थकान, पाचन संबंधी समस्याएं, शरीर में दर्द और भावनात्मक असंतुलन होता है। अगर उचित देखभाल नहीं की जाती है, तो बहुत परेशानी हो सकती है। इस दौरान नींद महत्वपूर्ण है। मॉडर्न पैथी भी कुछ ऐसा ही कहती है। 

क्या कहना है प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेष डॉ. मंजूषा गोयल का

मदर्स डे के खास मौके पर दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग की प्रमुख सलाहकार डॉ. मंजूषा गोयल का कहना है कि नींद न आने के पीछे कई कारण हैं। बात सिर्फ थकान की नहीं है। जब नींद पूरी नहीं होती तो इसका असर पूरे शरीर और दिमाग पर पड़ता है। चिड़चिड़ापन बढ़ता है, मन बेचैन रहता है, छोटी-छोटी बातों में उलझन होती है।

धीरे-धीरे यह थकान आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, मूड और सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करती है। यहां तक ​​कि दिल की सेहत और मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ सकता है। इसलिए नई मांओं के लिए जरूरी है कि जब भी मौका मिले थोड़ा आराम करें।

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