भारत में मुंह के कैंसर की बढ़ती चुनौती: शराब और धुआं रहित तंबाकू सबसे बड़ा कारण

खबर सार :-
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि भारत में मुंह के कैंसर की बढ़ती समस्या के पीछे शराब और धुआं रहित तंबाकू का बड़ा योगदान है। खासतौर पर स्थानीय शराब और चबाने वाले तंबाकू का संयुक्त सेवन अत्यंत खतरनाक साबित हो रहा है। समय रहते जागरूकता, रोकथाम और सख्त सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियां अपनाई जाएं, तभी इस गंभीर बीमारी के बढ़ते बोझ को कम किया जा सकता है।

भारत में मुंह के कैंसर की बढ़ती चुनौती: शराब और धुआं रहित तंबाकू सबसे बड़ा कारण
खबर विस्तार : -

Cancer Disease: भारत में मुंह के कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह शराब तथा धुआं रहित तंबाकू उत्पादों का सेवन सामने आया है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, देश में मुंह के कैंसर के करीब 62 प्रतिशत मामलों के लिए शराब और गुटखा, खैनी, पान जैसे तंबाकू उत्पाद जिम्मेदार हैं। यह शोध महाराष्ट्र स्थित सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी और होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

शराब और तंबाकू का खतरनाक मेल

अध्ययन में पाया गया कि शराब का सेवन अकेले ही मुंह के कैंसर का खतरा बढ़ाता है, लेकिन जब इसे चबाने वाले तंबाकू के साथ मिलाया जाता है तो जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। शोध के मुताबिक, दिन में 2 ग्राम से कम बीयर पीने से भी बक्कल म्यूकोसा कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। वहीं, लगभग 9 ग्राम शराब—जो एक मानक ड्रिंक के बराबर मानी जाती है—से मुंह के कैंसर का खतरा करीब 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।

स्थानीय शराब ज्यादा खतरनाक

रिसर्च में यह भी सामने आया कि स्थानीय स्तर पर बनी शराब, जैसे अपोंग, बांग्ला, चुल्ली, देसी दारू और महुआ, ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है। इन पेयों में मेथनॉल और एसीटैल्डिहाइड जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है। आंकड़ों के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय ब्रांड की शराब पीने वालों में मुंह के कैंसर का खतरा 72 प्रतिशत तक बढ़ा, जबकि स्थानीय शराब पीने वालों में यह आंकड़ा 87 प्रतिशत तक पहुंच गया।

बक्कल म्यूकोसा कैंसर पर विशेष प्रभाव

भारत में मुंह के कैंसर का सबसे आम रूप बक्कल म्यूकोसा कैंसर है, जो गालों और होठों की अंदरूनी मुलायम परत को प्रभावित करता है। बीएमजे ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, देश में बक्कल म्यूकोसा कैंसर के करीब 11.5 प्रतिशत मामले केवल शराब के सेवन से जुड़े हैं। मेघालय, असम और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी दर 14 प्रतिशत तक दर्ज की गई है।

शरीर पर शराब का जैविक असर

ग्रेस सारा जॉर्ज के नेतृत्व वाली रिसर्च टीम के अनुसार, शराब में मौजूद इथेनॉल मुंह की अंदरूनी परत की वसा (फैट) को नुकसान पहुंचाता है। इससे यह परत कमजोर हो जाती है और तंबाकू उत्पादों में मौजूद अन्य कैंसरकारी तत्वों के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाती है। यही कारण है कि शराब और तंबाकू का संयुक्त सेवन मुंह के कैंसर के खतरे को तेजी से बढ़ाता है।

युवा आयु वर्ग भी चपेट में

अध्ययन के लिए 2010 से 2021 के बीच पांच केंद्रों से 1,803 कैंसर मरीजों और 1,903 स्वस्थ लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। अधिकांश प्रतिभागियों की उम्र 35 से 54 वर्ष के बीच थी, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि करीब 46 प्रतिशत मरीज 25 से 45 वर्ष की आयु के थे। इससे स्पष्ट है कि यह बीमारी अब अपेक्षाकृत युवा आबादी को भी प्रभावित कर रही है।

चिंताजनक राष्ट्रीय आंकड़े

मुंह का कैंसर भारत में दूसरा सबसे आम कैंसर बन चुका है। अनुमान है कि हर साल देश में लगभग 1.43 लाख नए मामले सामने आते हैं और करीब 80 हजार लोगों की मौत होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हर एक लाख भारतीय पुरुषों में से लगभग 15 इस बीमारी से प्रभावित हैं। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि केवल 43 प्रतिशत मरीज ही पांच साल या उससे अधिक समय तक जीवित रह पाते हैं।

कोई सुरक्षित सीमा नहीं

शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि शराब पीने की कोई सुरक्षित सीमा नहीं है। जो लोग शराब नहीं पीते, उनकी तुलना में शराब पीने वालों में मुंह के कैंसर का खतरा 68 प्रतिशत अधिक पाया गया। टीम का मानना है कि इस गंभीर बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए शराब और तंबाकू के उपयोग को रोकने हेतु सख्त जनस्वास्थ्य कदम उठाने की जरूरत है।

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