अवध विश्वविद्यालय से सीख लेने की जरूरत, आधुनिक संयंत्र देगा प्रदूषण की जानकारी

खबर सार :-
यदि स्थानीय समुदायों, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होने लगें तो विभाग अन्य शैक्षणिक संस्थानों, नगर निकायों से सहयोग कर आम लोगों को प्रदूषण से राहत दिलाने में मदद कर सकता है।

अवध विश्वविद्यालय से सीख लेने की जरूरत, आधुनिक संयंत्र देगा प्रदूषण की जानकारी
खबर विस्तार : -

अयोध्या, डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की पहल पर वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए आधुनिक संयंत्र प्रशासनिक भवन परिसर में स्थापित कर दिया गया है। पर्यावरण विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. विनोद चौधरी ने जानकारी दी है कि अयोध्या में वायु प्रदूषण की समस्या लगातार खराब होती जा रही है। इसका असर न केवल मानव स्वास्थ्य पर बल्कि पर्यावरण, वनस्पतियों, जलवायु और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र पर दिखने लगा है। इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने एक अत्याधुनिक वायु गुणवत्ता और मौसम निगरानी तंत्र की शुरुआत करने में सफलता हासिल की है। विश्वविद्यालय के कुलपति कर्नल डॉ. बिजेंद्र सिंह की इस पहल से विश्वविद्यालय के प्रशासनिक परिसर में एक नवीन निरंतर वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन तैयार कराया है।

इस प्रणाली के माध्यम से अब विश्वविद्यालय न केवल क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता का सटीक मूल्यांकन कर पाएगा, बल्कि इससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर जनजागरूकता भी बढ़ा सकेगा। इसके साथ ही नीति निर्धारण के लिए भी ठोस प्रयास किए जा सकेंगे। डॉ. चौधरी ने बताया कि यह पहल विश्वविद्यालय की अनुसंधान क्षमताओं को नई दिशा देने के अलावा समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाती है। वायु प्रदूषण की समस्या को केवल आंकड़ों से नहीं सुधारा जा सकता है। इसे रणनीति और सामूहिक प्रयास से ही हल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यह निगरानी तंत्र पूरे वर्ष 24 घंटे सक्रिय रहकर काम करेगा। यह वास्तविक समय में वायु प्रदूषकों और मौसमीय मापदंडों की निगरानी करेगा। इस प्रणाली में एक डिजिटल डैशबोर्ड भी शामिल किया गया है। यह आमजन के लिए भी आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए जाएंगे। इससे नागरिक अपने आसपास की वायु गुणवत्ता के बारे में जान सकेंगे।

कई प्रमुख वायु प्रदूषकों की निगरानी हो रही

निगरानी तंत्र में कई प्रमुख वायु प्रदूषकों की निगरानी हो रही है। उन्हांने बताया कि पीएम 1.0, पीएम 2.5 और पीएम 10 ये सूक्ष्म कण वायु में विद्यमान हो चुके हैं। यह सीधे स्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं। इनका प्रमुख स्रोत वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्य, औद्योगिक उत्सर्जन और घरेलू ईंधन का दहन है। कार्बन मोनोक्साइड, (ओज़ोन) नाइट्रोजन ऑक्साइड्स सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स, और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के परस्पर क्रिया से सूर्य के प्रकाश में बनता है। इससे ऊपरी वातावरण में लाभ मिलता है, लेकिन धरातलीय स्तर पर हानिकारक हो सकता है। इसलिए बदलते परिवेश में इनकी निगरानी बहुत जरूरी है। इस तंत्र के माध्यम से कई मौसमीय मापदंडों की निगरानी की जाएगी। ये आंकड़े मौसम के अनुसार परिस्थितियों के विश्लेषण और वायु गुणवत्ता पर उनके प्रभाव को समझने में मदद करेंगे। डॉ. चौधरी ने कहा कि हमारा उद्देश्य केवल वैज्ञानिक आंकड़े जुटाना नहीं है, बल्कि लोगों को उनके आसपास वातावरण के प्रति जागरूक बनाना भी है।

अगर आम नागरिक यह जान सकें कि किस समय वायु गुणवत्ता खराब है, तो वे व्यक्तिगत स्तर पर आवश्यक सावधानियाँ बरतने लगेंगे। कुछ उपाय बच्चों और बुजुर्गों के लिए जरूरी होते हैं। जैसे कि बाहर निकलने से रोकना, वाहनों का कम उपयोग, या घरेलू स्रोतों से उत्पन्न धुएं को नियंत्रित करना, लेकिन जब यह पता होगा कि मौसम में विद्यमान प्रदूषण कितना घातक है? विभाग द्वारा समय-समय पर वायु गुणवत्ता सूचकांक पर आधारित बुलेटिन भी जारी करने का निर्णय लिया जाएगा। साथ ही स्थानीय समुदायों, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। विभाग अन्य शैक्षणिक संस्थानों, नगर निकायों से सहयोग करने में आगे रहेगा। अभी यह भी कहा जा रहा है कि भविष्य में विभिन्न स्थानों पर ऐसे निगरानी तंत्र स्थापित कर एक वायु गुणवत्ता नेटवर्क तैयार किया जाएगा। इससे पूरे अयोध्या मंडल की पर्यावरणीय स्थिति का समग्र चित्र सामने लाने में मदद मिलने लगेगी। 
 

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