RBI Big Decision: आरबीआई की को-लेंडिंग गाइडलाइंस में संशोधन, पारदर्शिता और निगरानी बढ़ेगी

खबर सार :-
रिजर्ब बैंक आफ इंडिया ने को लेंडिंग गाइड लाइंस में संशोधन किए हैं। इसका मकसद बैंकों का कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निगरानी बढ़ाना है। तो आइए जानें क्या है नये बदलाव........

RBI Big Decision: आरबीआई की को-लेंडिंग गाइडलाइंस में संशोधन, पारदर्शिता और निगरानी बढ़ेगी
खबर विस्तार : -

नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के बीच को-लेंडिंग व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बुधवार को जारी संशोधित दिशानिर्देशों में आरबीआई ने स्पष्ट किया कि अब केवल प्राथमिक क्षेत्र (Priority Sector) के लोन ही नहीं, बल्कि सभी प्रकार के ऋण (Loans) नियामकीय निगरानी के दायरे में लाए जाएंगे।

इस कदम का मुख्य उद्देश्य ऋण प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देना और को-लेंडिंग मॉडल को सभी पक्षों के लिए अधिक विश्वसनीय बनाना है। अब बैंकों और एनबीएफसी दोनों को अपने खातों में हर लोन का कम से कम 10 प्रतिशत हिस्सा रखना होगा, जो पहले एनबीएफसी के लिए 20 प्रतिशत  था। इस संशोधन से खासकर मध्यम और छोटे आकार की NBFCs को राहत मिलेगी, जो अब कम पूंजी में भी को-लेंडिंग कर सकेंगी।

एनबीएफसी के पास अब बैंक फंडिंग की होगी बेहतर पहुंच

क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, यह परिवर्तन बैंक और एनबीएफसी दोनों के लिए फायदेमंद होगा। एनबीएफसी के पास अब बैंक फंडिंग की बेहतर पहुंच होगी, जबकि बैंक उन क्षेत्रों तक पहुंच सकेंगे जहां उनका खुद का नेटवर्क सीमित है। इससे उधारकर्ताओं को बेहतर लोन सेवाएं और टर्म्स मिल सकेंगे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि को-लेंडिंग एसेट्स का कुल मूल्य 31 मार्च 2025 तक 1.1 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है, जो इस मॉडल की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

क्रिसिल रेटिंग्स की निदेशक मालविका भोटिका ने कहा कि संशोधित दिशानिर्देशों की प्रयोज्यता सभी विनियमित संस्थाओं (REs) और लोन के प्रकार (सुरक्षित-असुरक्षित दोनों) पर लागू होगी। इससे NBFCs को दीर्घकालिक विकास के अवसर प्राप्त होंगे और उनका वित्तीय जोखिम प्रबंधन भी मजबूत होगा। इसके अलावा, नए नियमों के अंतर्गत डिस्क्लोजर आवश्यकताओं को भी कड़ा किया गया है। अब को-लेंडिंग करने वाली संस्थाओं को तिमाही या वार्षिक रूप से निम्नलिखित जानकारियां साझा करनी होंगी:

  • भागीदार संस्थाओं की सूची
  • भारित औसत ब्याज दर
  • ली गई या चुकाई गई फीस
  • डिफॉल्ट लॉस गारंटी (DLG) का विवरण

इन बदलावों का उद्देश्य है कि सभी हितधारकों – निवेशक, उधारकर्ता और नियामक – को समय पर और सटीक जानकारी मिल सके। इससे फाइनेंशियल सिस्टम में विश्वास और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। RBI का यह निर्णय बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक और ठोस कदम माना जा रहा है, जो भारत की फाइनेंशियल इन्क्लूजन नीति को भी बल देगा। आने वाले समय में इससे ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में भी ऋण की उपलब्धता आसान और पारदर्शी बन सकती है।

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