अब आतंकियों को ट्रेनिंग देगी पाकिस्तानी सेना ! जैश, हिजबुल और  लश्कर पर होगा डायरेक्ट कंट्रोल

खबर सार :-
पाकिस्तान की सेना द्वारा जैश, लश्कर और हिजबुल पर सीधे नियंत्रण व आधुनिककरण एक रणनीतिक पुनर्संगठन है। इससे इन समूहों की क्षमताएँ बढ़ सकती हैं और क्षेत्रीय तनाव उभर सकता है। अंतरराष्ट्रीय निगरानी, कूटनीतिक दबाव और सीमा पार इंटेलिजेंस सहयोग अब निर्णायक हो जाएगा ताकि किसी भी उग्रता को निवारणीय तरीके से टाला जा सके।

अब आतंकियों को ट्रेनिंग देगी पाकिस्तानी सेना ! जैश, हिजबुल और  लश्कर पर होगा डायरेक्ट कंट्रोल
खबर विस्तार : -

नई दिल्लीः  हालिया सीमा पार घटनाओं और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद पाकिस्तान की सैन्य और खुफिया व्यवस्थाओं में एक बड़ा बदलाव दर्शायी दे रहा है: जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसी समूहों के प्रशिक्षण, संचालन और हथियारसज्जी पर अब सीधे पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है। खुफिया सूचनाओं और सुरक्षा विश्लेषकों के मुताबिक इस फैसले का मकसद इन समूहों को पारम्परिक हैक-अप से निकालकर आधुनिक, केंद्रीकृत एवं अधिक नियंत्रणीय ढांचे में लाना है ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के बाहरी हमले की स्थिति में पाकिस्तान की भी रणनीतिक मजबूती बनी रहे।

सूत्र बताते हैं कि अब इन समूहों के नए रिक्रूट्स को प्रशिक्षित करने और ऑपरेशनल योजनाओं को लागू कराने के लिए पाकिस्तानी आर्मी के मेजर रैंक के अधिकारियों को प्रत्यक्ष रूप से तैनात किया जा रहा है। इससे पहले कमांडरों और स्थानीय ट्रेनरों का नियंत्रण अधिक स्वायत्त था; अब प्रशिक्षण शिविरों की कड़ी निगरानी, सुरक्षा और तकनीकी सहायता सीधे आर्मी और आईएसआई दोनों दे रहे हैं।

आईएसआई को मिलेगा तकनीकी सहयोग

आईएसआई के तकनीकी सहयोग में इन शिविरों में ड्रोन तकनीक, डिजिटल युद्ध के साधन और उच्च तकनीक वाले हथियारों के समावेश पर जोर दिया जा रहा है। जानकारी के अनुसार हर समूह को आधुनिक उपकरण और प्रशिक्षण देने के लिए वार्षिक वित्तीय व्यवस्था भी की जा रही है, ताकि उन्हें “सीधा प्रभाव डालने” वाला हथियार और तकनीक मुहैया करायी जा सके। इस बदलाव से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि पाकिस्तान अपनी रणनीति को रीफ़ोकस कर रहा है — आतंकी समूहों को सिर्फ छिछले संचालन के जरिये इस्तेमाल करने के बजाय उन्हें उच्च स्तर का उपकरण और नियंत्रण देना।

रणनीति में बदलाव की प्रमुख वजहें

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना की रणनीति में बदलावों के पीछे कई वजहें हैं। पहली वजह सुरक्षा कारणों से इन शिविरों की अधिक संरक्षित व्यवस्था सुनिश्चित करना है ताकि किसी भारतीय सैन्य अभियान के समय फिर से बड़े पैमाने पर तबाही न हो। दूसरी वजह यह है कि पाकिस्तान चाहता है कि उसके जगह-जगह सक्रिय नेटवर्क में से कुछ समूहों के पास सीमा पार प्रभाव और संचालन की क्षमता बनी रहे। तीसरी वजह घरेलू और क्षेत्रीय राजनीतिक-रणनीतिक प्राथमिकताएँ हैं — जैसे बलूचिस्तान में टीटीपी और बीएलए से निपटना और सीपीईसी 2.0 व अन्य भू-राजनीतिक प्रतिबद्धताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

आर्थिक व सुरक्षा वादों का दबाव

पाकिस्तान के चीन और अमेरिका से जुड़े आर्थिक व सुरक्षा वादों के चलते उसे अपनी सुरक्षा गारंटी पर खरा उतरना अनिवार्य दिखता है। यही कारण है कि पाक सेना की प्राथमिकता अब उन समूहों को आधुनिक हथियार और तकनीकी समर्थन देना भी बन गयी है जिनसे वह चीन-पाक आर्थिक परियोजनाओं और विदेशी निवेश के हितों की रक्षा सुनिश्चित कर सके। ऐसे हालात में विदेशों में रहने वाले समर्थकों से चंदा जुटाने और धन के स्रोत सुनिश्चित करने की भी प्रक्रियाएँ तेजी से चल रही हैं।

क्षेत्रीय अस्थिरता का जोखिम बढ़ेगाः सुरक्षा विशेषज्ञ

नैतिक, कानूनी और सुरक्षा विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर राज्य और गैर-राज्य तत्वों के बीच ऐसी गहरी जुड़ाव की स्थितियाँ खुलकर सामने आती हैं तो सीमा पार तनाव, आतंकी घटनाओं और क्षेत्रीय अस्थिरता के जोखिम बढ़ सकते हैं। भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह चुनौती और भी जटिल होगी क्योंकि अब सही-समय पर पहचान और प्रतिक्रिया के लिए इंटेलिजेंस-साझाकरण व कूटनीतिक दबाव की रणनीतियाँ और मजबूत करनी पड़ेंगी।

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